Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ [३७ *************************************** **श्री दशलक्षण मण्डल विधान****** शौच भावमें नांहि कषाया, शौच भाव सब जग काभाया। शौच धर्मका शरण गहारा, जजौं शौच यह धर्म हमारा॥ शौच धर्मको मुनिगण सेवैं,ताफल स्वयं सिद्ध थललेवें। शौच धर्म समता रस धारा, जजौं शौच यह धर्म हमारा॥ शौच समान और नहिं मिंता,शौच भाव टारै सब चिंता। शौच सदा सब जियका प्यारा,शौच जजौं यह धर्म हमारा॥ दोहा शौच सार संसार में करै पवित्र जु भाव। तातें धारो शौचको, भलो मिलो यह दाव॥.. ॐ ह्रीं श्री उत्तम शौचधर्माङ्गाय-पूर्णायँ नि. स्वाहा। इति उत्तम शौच धर्म पूजा। परस्परोपग्रहो जीवानाम् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76