Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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श्री दशलक्षण मण्डल विधान। जानि सब अथिर उरभाव निर्मल करै।
पूजि शौच धर्मको जु शौच थानक धरै॥११॥ ॐ ह्रीं श्री तनसम्बन्धीभोगवांछा-विहीन-शौचधर्माङ्गायायँ नि.। रतन नवधादि भरपूर घर में सही।
कोटि नित दान देते सु क्षय हो नहीं। जानि सब अथिर उरभाव निर्मल करै। __पूजि शौच धर्मको जु शौच थानक धरै॥१२॥
ॐ ह्रीं श्री धनवांछा-विहीन-शौचधर्माङ्गायावँ नि.। रूपमें शची समान नारी घरमें घनी।
शीश आज्ञा धरै प्रीत रस में सनी॥ जानि सब अथिर उरभाव निर्मल करै।
पूजि शौच धर्मको जु शौच थानक धरै ॥१३॥ ___ॐ ह्रीं श्री वनिताभोगवांछा-विहीन-शौचधर्माङ्गायायँ नि. । कामदेव के समान पुत्र रूप धारजी
विनयवान सर्व बलवन्त तेज सारजी॥ जानि सब अथिर उरभाव निर्मल करै।
पूजि शौच धर्मको जु शौच थानक धरै॥१४॥ ___ ॐ ह्रीं श्री पुत्र भोगवांछा-विहीन-शौचधर्माङ्गायायँ नि.। भ्रात बहु विनय जुत आनि-पालक सही।
संग तिन भोग भोगी जीव साता लही॥ जानि सब अथिर उरभाव निर्मल करै।
पूजि शौच धर्मको जु शौच थानक धरै॥१५॥ ॐ ह्रीं श्री भ्रातृसुखवांछा-विहीन-शौचधर्माङ्गायायँ नि.।
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