Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 35
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान। [३३ .************************************** जानि सब अथिर उरभाव निर्मल करै। पूजि शौच धर्मको जु शौच थानक धरै॥२॥ ॐ ह्रीं श्री चक्रिपदभोग-वांछा-विहीन-शौचधर्माङ्गायायँ नि.। खण्ड तिनको जु राज नारि बहु जानिये। चारि विधि सैन सुर नर खगादि मानिये॥ जान सब अथिर उरभाव निर्मल करै। पूजि शौच धर्मको जु शौच थानक धरै॥३॥ ॐ ह्रीं श्री नारायणपदभोगवांछा-विहीन-शौचधर्माङ्गायायँ नि.। कामदेवको सुरूप देखि देव मन हरे। भोग वांछित सकल देव सेवा करें। जानि सब अथिर उरभाव निर्मल करै। पूजि शौच धर्मको जु शौच थानक धरै॥४॥ ॐ ह्रीं श्री कामदेवपदभोगवांछा-विहीन-शौचधर्माङ्गायायँ नि.। आठ पर कार सपरस विषै जानिये। द्रव्य क्षेत्रकाल अनुसारं भाव मानिये॥ जानि सब अथिर उरभाव निर्मल करै। पूजि शौच धर्मको जु शौच थानक धरै॥५॥ ॐ ह्रीं श्री स्पर्शनेन्द्रिय-भोगवांछा-विहीन-शौचधर्माङ्गायायँ नि.। पांच परकार रस जानि शुभ सारजी। भोग वांछै सभी जगत दुखकारजी। जानि सब अथिर उरभाव निर्मल करै। पूजि शौच धर्मको जु शौच थानक धरै॥६॥ ॐ ह्रीं श्री रसनेन्द्रियभोगवांछा-विहीन-शौचधर्माङ्गायायँ नि.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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