Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 33
________________ ******** श्री दशलक्षण मण्डल विधान । ***************************** [३१ उत्तम शौच धर्म पूजा बेसरी छन्द । शौच धर्म पर चाह निवारै, तनतैं हू ममता निरवारै । जग वांछा तजि निर्मल भावा, शौच धर्म पूजों कर चावा ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्माङ्गाय अत्र अवतर२ संवौषट् अत्र तिष्ठर ठः ठः । अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् । अथाष्टकम् - पद्धड़ी छन्द । जल क्षीरसमुद्रको सुभग लाय, धरि कनकपात्र में भक्तिभाय । न धरन मिटै वह फल सुजान, मैं शौच धर्म जजि हर्ष आन । ॐ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्माङ्गाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि. । बसि बावन चंदन नीर आन, अलि गुंजत मानों करत गान । धरि कनकपियाले भक्तिजान, मैं शौच धर्म जजि हर्ष आन ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्माङ्गाय संसारतापविनाशनाय चंदनं नि. । उज्जवलअखंड शुभ गंध दाय, अक्षतअनूप लखिशशिलजाय । कनपात्र विषै धरि भक्ति आन, मैं शौच धर्म जजि हर्षआन ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्माङ्गाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि. । ने फूल कल्पद्रुमके मनोग, आसक्त भ्रमर थित करत भोग । तिन गुथि मालउर भक्ति ठान, मैं शौच धर्म जजि हर्ष आन ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्माङ्गाय कामबाण विध्वंशनाय पुष्पं नि. । शुभ मोदक आदि अनेक भाय, रसना रंजन नैवेद्य लाय । धरि पुरट थालमें भक्ति ठान, मैं शौच धर्म जजि हर्ष आन ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्माङ्गाय - क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं नि. । Jain Education International For Personal & Private Use Only 1 www.jainelibrary.org

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