________________
३०]
श्री दशलक्षण मण्डल विधान।
***************************************
सत्य धरम वर अंग प्रवीना, सत्य धरम ज्यों कंचन मीना। सत्य धर्मका सबको चावा, सो सत धर्म जजौं शुभ भावा। सत्य धरम का राखनहारा, सत्य धरम मुनिजनको प्यारा। सत्य शिरोमणि धर्म कहावा, सो सत धर्म जजौं शुभ भावा॥ सत्य समान और नहिं मिंता, सत्य धर्म मेटे भव चिंता। सत्य करै अघतै निरदावा, सो सत धर्म जजौं शुध भावा॥ सत्य धरम अपयश क्षयकारी, सत्य सुरक्षा करैं हमारी। सतहीका सुरनर जस गावा, सो सत धर्म जजौं शुध भावा॥ सत्य सहित सब सार्थक धर्मा, तासौ कटैं चिरंतन कर्मा। सत्य समान और नहि ठावा, सो सत धर्म जजौं शुध भावा। सत्य जगतमें पूजा पावै, सत्य धरम शिव राह बतावै। सत्य जजौं सति धर्म लहावा, सो सत धर्म जजौं शुध भावा॥ धर्म सरोवर में सत नीरा, सत्य धर्म खोवै सब पीरा। सत्य धर्म सों कुगति न पावा, सो सत धर्म जजौं शुधभावा॥
दोहा सत सागर में जे रमें, ते वृष नायक जोय। जजै धर्म सतको सही, मन वच काया सोय। ॐ ह्रीं श्री उत्तमसत्यधर्माङ्गाय पूर्णायँ नि.।
इति उत्तम सत्य धर्म पूजा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org