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श्री दशलक्षण मण्डल विधान।
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जाकों जगमें नाम प्रसिद्ध बखानिये।
सोई ताको नाम सत्य सों मानिये ॥ नाम सत्य सो जानि वानि जिन इमि कही।
ताको मन वच काय जजौं शुभ सुखमही॥ __ ॐ ह्रीं श्री नामसत्य-धर्माङ्गायायँ नि. स्वाहा। पीत श्याम अरु रक्त श्वेत गोरा सही।
रूपवान इत्यादि अंग बहुतें कही। रूप सत्य सो जानि कह्यों जिनवानिजी।
ऐसो सत्य सु जानि जजौं सुखदानजी॥
ॐ ह्रीं श्री रूपसत्य-धर्माङ्गायायँ नि. स्वाहा। कही वस्तु यह यातें छोटी है सही।
यातें है यह बडी अपेक्षा इमि कही। याको नाम प्रतिति सत्य सो जानिये।
ताको भी है जजौं भक्ति उर आनिये॥
ॐ ह्रीं श्री अपेक्षासत्य-धर्माङ्गायायँ नि. स्वाहा। जो नरपतिको पुत्र ताहि राजा कहै।
सो नैगमनय जानि सत्य तातै यहै । यहीसत्य व्योहार जिनेश्वर धुनि कही।
मैं जजिहौं कर भक्ति नाय मस्तक सही॥ ॐ ह्रीं श्री व्यवहार-सत्य-धर्माङ्गायावँ नि. स्वाहा। शक्ति इन्द्रमें इसी लोक उलटा करै।।
सो तो लोक अनादि उलटि कैसे धरै ।
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