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श्री दशलक्षण मण्डल विधान।
[२७ *************************************** हास्य सत्य को नाशनहार, तातै सहै महा दुख भार। हास्य रहित सब धर्म कहाय, सो सत धर्म जजौं थुति गाय॥
ॐ ह्रीं श्री हास्याचाररहित-सत्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.।। जिन आज्ञा बिन भाखै बैन, पूर्वापर वच ठीक कहै न। एसे दोष रहित सति भाय, सो सत धर्म जजौ थुति गाय॥ ___ॐ ह्रीं श्री जिनाज्ञालंघनातिचाररहित-सत्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.।
गीता छन्द जा देशमें जिस वस्तुको तिस मानिए सो सति सही। जिम भातकी गुजरात मालवदेश में चोखा क ही॥ करनाटकमें कूलू कहैं द्राविड मे चौरु बखानिये। इमजानि जनपद सत्यको जजि हर्ष उरमें आनिये ।। ॐ ह्रीं श्री जनपद-सत्यधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.।
अडिल्ल छन्द बहु नर ताको कहैं तिसो ही मानिये।
रंक नाम लक्ष्मीधर जाही बखानिये ॥ तो यह रूढी नाम सत्य संवृत कही। - या नयतें सत जानि जजौं सत वृष सही।
ॐ ह्रीं श्री संवृतसत्य-धर्माङ्गायायँ नि. स्वाहा। काहु नर आकार तथा पशु के सही।
चित्र काष्ठ में थापि नाम नर पशु कही। यह थाषम सत भेद शास्त्र में गाइयो।
ताकों सत वृष जानि जजौं मन लाइयो। - ॐ ह्रीं श्री स्थापनसत्य-धर्माङ्गायावँ नि. स्वाहा।
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