Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 31
________________ | २९ *************************************** श्री दशलक्षण मण्डल विधान। पै यह शक्ति अपेक्षा वचन प्रमान है। यह सम्भाव सत्य जजौं थिति आन है। __ॐ ह्रीं श्री सम्भावना-सत्यधर्माङ्गायायँ नि. स्वाहा। जीव अनन्त अनादि नजर आवै नहीं। द्रव्य अमूर्ती पांच नरक सुरकी मही॥ ये नहि देखें नयन सूत्रसौं जानिये। __ भाव सत्य सो जानि जजों मन आनिये॥ ॐ ह्रीं श्री भावसत्यधर्माङ्गायावँ नि. म्वाहा। किसी वस्तुकी उपमा जाको लाइये। ज्यों दानी नर देख कल्पद्रुम गाइये। याको उपमा सत्य नाम जानौं सही। सो मैं पूजौं भक्ति नाय मस्तक मही॥ ॐ ह्रीं श्री उपमा-सत्यधर्माङ्गायाऱ्या नि. स्वाहा। इत्यादिक बहु भेद सत्य के जानिये। कहे देव जिनराय अपनी वानिये ॥ सो मैं मन वच काय शुद्ध थुति गायजी। पूजौँ सत्य सुधर्म अरथ कर लाइजी॥ ॐ ह्रीं श्री सत्य-धर्माङ्गायाय नि. स्वाहा। जयमाला (बेसरी छन्द) सत्य धरम जग पूज्य बताया, सत्य श्रेष्ठव्रत जिनधुनि गाया। सत्य धरम भवदधिको नावा, सो सत धर्म जजौं शुध भावा॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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