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श्री दशलक्षण मण्डल विधान।
पै यह शक्ति अपेक्षा वचन प्रमान है।
यह सम्भाव सत्य जजौं थिति आन है। __ॐ ह्रीं श्री सम्भावना-सत्यधर्माङ्गायायँ नि. स्वाहा। जीव अनन्त अनादि नजर आवै नहीं।
द्रव्य अमूर्ती पांच नरक सुरकी मही॥ ये नहि देखें नयन सूत्रसौं जानिये।
__ भाव सत्य सो जानि जजों मन आनिये॥
ॐ ह्रीं श्री भावसत्यधर्माङ्गायावँ नि. म्वाहा। किसी वस्तुकी उपमा जाको लाइये।
ज्यों दानी नर देख कल्पद्रुम गाइये। याको उपमा सत्य नाम जानौं सही।
सो मैं पूजौं भक्ति नाय मस्तक मही॥
ॐ ह्रीं श्री उपमा-सत्यधर्माङ्गायाऱ्या नि. स्वाहा। इत्यादिक बहु भेद सत्य के जानिये।
कहे देव जिनराय अपनी वानिये ॥ सो मैं मन वच काय शुद्ध थुति गायजी।
पूजौँ सत्य सुधर्म अरथ कर लाइजी॥ ॐ ह्रीं श्री सत्य-धर्माङ्गायाय नि. स्वाहा।
जयमाला (बेसरी छन्द) सत्य धरम जग पूज्य बताया, सत्य श्रेष्ठव्रत जिनधुनि गाया। सत्य धरम भवदधिको नावा, सो सत धर्म जजौं शुध भावा॥
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