Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 27
________________ *************************************** श्री दशलक्षण मण्डल विधान। ......[२५ या सत्य समानौ रतन न आनौ, सम्यक दानौ शिवकारी। भवदधिको नावा अशुभ गमावा, सरल स्वभावा दुखहारी॥ सिधलोक नसैनी शिवसुख दैनी, ध्यावत जैनी अनलानौ। एसो सति धर्मा काटत कर्मा, अक्षत ले परमा जजिजानो॥ ॐ ह्रीं सत्यधर्माङ्गाय-अक्षयपदप्राप्तयेऽक्षतान् निर्व.। सति सौ नहिं मिन्ता मिटन चिन्ता, अघ अरिहन्ता जसदाई। सति जगत पियारो भव उद्धारो दुख जलतारो थुति गाई॥ याको मुनि ध्यावै शिवसुख पावै, पाप गमावै भव हानौ एसो सति धर्मा काटत कर्मा, पुष्पं परना जजि जानौ॥ ____ॐ ह्रीं श्री सत्यधर्माङ्गाय यामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्व.। सति धर्म सु पूजै सब अघ धूजै, शिवमग सूजै अधिकाई। यातै वृष सारा काज संवारा, अशुभं विहारा सिद्धि दाई॥ सति सारा नीका सुखदा जीका, शिवमग टीका शुभआनौ। एसो सति धर्मा काटत कर्मा, ले चरु परमा जजि जानौ॥ ____ ॐ ह्रीं श्री सत्यधर्माङ्गाय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं नि.। सति धर्म उजाला जग का पाला, विभ्रम टाला धर्म करा। यह ज्ञान उजालै अशुभ सु टालै, संजम पालै झूठ हरा॥ सति प्रिति उपावै वैर गमावै, जो थुति लावै उर ज्ञानौं। एसो सति धर्मा काटत कर्मा, दीपक परमा जजि जानौ॥ ॐ ह्रीं श्री सत्यधर्माङ्गाय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्व.। सति धर्म प्रभावै मुनि शिव जावै, जगजस गावै थुतिलाई। सति धर्म जु मूला अघ-क्षय थूला, झूठ कुसूला दहभाई॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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