Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 26
________________ २४] श्री दशलक्षण मण्डल विधान। *************************************** उत्तम सत्य धर्म पूजा.. अडिल्ल छन्द सत्य सरीसो धर्म जगत में है नहीं, सत्य धरम परभाव लहै शिव की मही। . तारौं भव दुख हरण सत्य वृष भाइये, यहां थापि मैं जजौं सत्य मन लाइये। ॐ ह्रीं श्री उत्तमसत्यधर्माङ्गा अत्र अवतर२ संवौषट् । अत्र तिष्ठर ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भवर वषट्। अथाष्टकं - त्रिभङ्गी छन्द जो झूठ विनाशै जग विसवासै, पुण्य प्रकाशै हितदानी। सब दोष निवारै समता धारै शिवपुर कारै गुण थानी॥ जग आदरकारी मोह निवारी, आनंदधारी जग मानौ। एसो सति धर्मा काटत कर्मा, जल ले परमा जजि जानौ॥ ___ ॐ ह्रीं सत्यधर्माङ्गाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्व.। सति सो वृष नाही या जग माहीं, पूज्य कहाही शिव थानी। सब औगुण धोवै पाप बिलोवै, धर्म मिलावै दुख हानी॥ पावत शिवनारी मुनिजन प्यारी, सुख करतारी भवि मानौ। एसो सति धर्मा काटत कर्मा,गंध ले परमा जजि जानौ॥ ॐ ह्रीं श्री सत्यधर्माङ्गाय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्व.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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