Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 24
________________ २२ ] ******** श्री दशलक्षण मण्डल विधान । ******************* **** अतिशय क्षेत्र सु तीरथ ठामा, यात्री गण कै पूरैं कामा । तिसथल सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृषजजि शिवधावै ॥ ॐ ह्रीं श्री अतिशय क्षेत्रपद- नमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । शिखरसम्मेद आदि सिद्ध थाना, तहँमुनि लियशिव कर्म नशाना । तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै ॥ ॐ ह्रीं श्री सिद्ध क्षेत्रपद- नमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । विगर किये जिनबिंब अनूपा, लक्षण चिह्न जानि जिन रूपा । तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै ॥ ॐ ह्रीं श्री अकृत्रिम - जिनचैत्यपद - नमनार्जव - धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । कृत्रिम जे जिन बिंब बिराजे, विनय सहित पुन दायक छाजै तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै । ॐ ह्रीं श्री कृत्रिम - जिनचैत्यपद - नमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । इत्यादिक बहु क्षेत्र सुथाना, पूजनीक तीरथ अघ हाना तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै । ॐ ह्रीं श्री सकलपूज्यस्थानकपदद- नमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । जयमाला दोहा Jain Education International - सरल भाव सारै सरस, सुरनर पूज्य महान । तातै तजनी कुटिलता, आरजव भाव लहान ॥ बेसरी छन्द सरल भाव समता उर आनै, सरल भाव सब औगुन भानै आरजव भाव धेरै जो जीवा, तिनने जिनवानी रस पीवा For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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