Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 22
________________ २०] *** श्री दशलक्षण मण्डल विधान । ******************** **** दीपक रतन थालि धरि लीजै, मनवचकाय शुद्ध करी लीजै । घाति अज्ञान ज्ञान दरशाई, आर्जव धरम जजै शिरनाई ॥ ॐ ह्रीं श्री आर्जवधर्माङ्गाय मोहांधकारविनाशनाय दीपं नि. । धूप अगरजा चंदन भीनी, गंध सहित निज करमें लीनी । कर्म दहनकी अगनि जराई, आर्जव भाव नमौ शिर नाई ॥ ॐ ह्रीं श्री आर्जवधर्माङ्गाय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि. । ले नारियल बादाम सुपारी, खारिक लौंग आदि हितकारी सिद्ध लोक वांछा मन मांही, आर्जव धरम जजौ शिरनाई ॥ ॐ ह्रीं श्री आर्जवधर्माङ्गीय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि. । जल चंदन अक्षत कामारी, चरु दीपक फल धूप विथारी । अर्घ लेय मनवचतन भाई, आर्जव धरम जजौं शिर नाई ॥ ॐ ह्रीं श्री आर्जवधर्माङ्गाय अनर्घ्यपद प्राप्तयेऽर्घ्यं नि. । प्रत्येकार्याणि ( बेसरी छन्द) गुण छयालीस जहां प्रभु तेरा, अष्टादश तहां दोष न हेरा । तिनपदसरल भावशिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव पावै ॥ ॐ ह्रीं श्री छियालीसगुणसहितजिन चरणनमनार्जवधर्माङ्गायार्घ्यं नि. । मुक्तजीव अरहंत थूति कीजै, मनवच कूटिल भाव तजि दीजै । तिनपद सरलभाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै ॥ ॐ ह्रीं श्री मुक्तजीव अरहन्तपदनमनार्जवधर्माङ्गायार्घ्यं नि. । कर्म काटि शिवलोक सिधारे, सिद्ध सुदेव हरौ अघ सारे । तिनपद सरल भाव शिरनावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावै ॥ ॐ ह्रीं श्री सिद्धपदनमनार्जवधर्माङ्गायार्घ्यं नि. । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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