Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
View full book text
________________
श्री दशलक्षण मण्डल विधान ।
***********************
*
सिद्ध शिला पैतालीस लाखा, योजन विस्तृत जिन वच भाषा । तत्रस्थित आतम शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै ॥ ॐ ह्रीं श्रीसिद्धशिलास्थित मुक्तात्मपद नमनार्जवधर्माङ्गायार्घ्यं नि. । गुण छत्तीस सुधारक सुरा, आचारज सब गुण भरपूरा। तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावै ॥
[२१
******
ॐ ह्रीं श्री आचार्यपद - नमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । आचारज सब गुण भरपूरा, आचारादि गुणन युत सूरा। तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावै ॥ ॐ ह्रीं श्री आचार्य - पदपरोक्ष- नमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । गुण पचीस उवझाय सु माहीं, ग्यारह अंग चौदह पुरवाहीं । तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै ॥ ॐ ह्रीं श्री उपाध्यायपद- नमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । बहु गुण धर उवझाय सु जानौं, दूरहितै तिनको चित आनो । तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावै ॥
ॐ ह्रीं श्री उपाध्यायपद-परोक्ष- नमनार्जवधर्माङ्गायार्घ्यं नि. । बीस आठ गुण साधन साधा, सो नहि लहै जगत की बाधा । तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै ॥ ॐ ह्रीं श्री साधुपदनमनार्जव - धर्माङ्गायार्घ्यं नि. ।
दूरहितै मुनि गुण जु चितारै, मन वच काया निज वश धारै । तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै ॥ ॐ ह्रीं श्री साधुपद - परोक्षनमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । वरण विहीन सु जिनवर वानी, तिनको सुनि सुख पावै प्रानी । तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै ॥ ॐ ह्रीं श्री जिनमुनि नमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76