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श्री दशलक्षण मण्डल विधान ।
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सिद्ध शिला पैतालीस लाखा, योजन विस्तृत जिन वच भाषा । तत्रस्थित आतम शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै ॥ ॐ ह्रीं श्रीसिद्धशिलास्थित मुक्तात्मपद नमनार्जवधर्माङ्गायार्घ्यं नि. । गुण छत्तीस सुधारक सुरा, आचारज सब गुण भरपूरा। तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावै ॥
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ॐ ह्रीं श्री आचार्यपद - नमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । आचारज सब गुण भरपूरा, आचारादि गुणन युत सूरा। तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावै ॥ ॐ ह्रीं श्री आचार्य - पदपरोक्ष- नमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । गुण पचीस उवझाय सु माहीं, ग्यारह अंग चौदह पुरवाहीं । तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै ॥ ॐ ह्रीं श्री उपाध्यायपद- नमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । बहु गुण धर उवझाय सु जानौं, दूरहितै तिनको चित आनो । तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावै ॥
ॐ ह्रीं श्री उपाध्यायपद-परोक्ष- नमनार्जवधर्माङ्गायार्घ्यं नि. । बीस आठ गुण साधन साधा, सो नहि लहै जगत की बाधा । तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै ॥ ॐ ह्रीं श्री साधुपदनमनार्जव - धर्माङ्गायार्घ्यं नि. ।
दूरहितै मुनि गुण जु चितारै, मन वच काया निज वश धारै । तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै ॥ ॐ ह्रीं श्री साधुपद - परोक्षनमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. । वरण विहीन सु जिनवर वानी, तिनको सुनि सुख पावै प्रानी । तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिव धावै ॥ ॐ ह्रीं श्री जिनमुनि नमनार्जव-धर्माङ्गायार्घ्यं नि. ।
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