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________________ २८] श्री दशलक्षण मण्डल विधान। *************************************** जाकों जगमें नाम प्रसिद्ध बखानिये। सोई ताको नाम सत्य सों मानिये ॥ नाम सत्य सो जानि वानि जिन इमि कही। ताको मन वच काय जजौं शुभ सुखमही॥ __ ॐ ह्रीं श्री नामसत्य-धर्माङ्गायायँ नि. स्वाहा। पीत श्याम अरु रक्त श्वेत गोरा सही। रूपवान इत्यादि अंग बहुतें कही। रूप सत्य सो जानि कह्यों जिनवानिजी। ऐसो सत्य सु जानि जजौं सुखदानजी॥ ॐ ह्रीं श्री रूपसत्य-धर्माङ्गायायँ नि. स्वाहा। कही वस्तु यह यातें छोटी है सही। यातें है यह बडी अपेक्षा इमि कही। याको नाम प्रतिति सत्य सो जानिये। ताको भी है जजौं भक्ति उर आनिये॥ ॐ ह्रीं श्री अपेक्षासत्य-धर्माङ्गायायँ नि. स्वाहा। जो नरपतिको पुत्र ताहि राजा कहै। सो नैगमनय जानि सत्य तातै यहै । यहीसत्य व्योहार जिनेश्वर धुनि कही। मैं जजिहौं कर भक्ति नाय मस्तक सही॥ ॐ ह्रीं श्री व्यवहार-सत्य-धर्माङ्गायावँ नि. स्वाहा। शक्ति इन्द्रमें इसी लोक उलटा करै।। सो तो लोक अनादि उलटि कैसे धरै । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004081
Book TitleDash Lakshan Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTekchand Kavi
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size7 MB
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