Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 15
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान । ******************* उत्तम मार्दव धर्माङ्ग पूजा पद्धडी छन्द मार्दव वृष भाव विचार सोइ, जहां मान भाव दीखे न कोइ । ईहधारी मुनि शिवगामी जानि, मैं जजौं थापि मार्दव सुभानि ॐ ह्रीं श्रीउत्तममार्दवधर्म धर्माङ्ग अत्र अवतर२ संवौषट् । अत्र तिष्ठर ठः ठः स्थापनं अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् सन्निधिकरणं । अथाष्टकम् (मणुयणानन्द की चाल ) क्षीर सम नीर शुद्ध गाल कर लाइये । पात्र सुवरण विषै धारि गुण गाइये ॥ जगतफिरनौ मिटे तासु फलतैं सही । धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही ॥२ ॥ ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय जलं निर्व. स्वाहा । स्वच्छ नीर संग चंदनादिको मिलायजी । [१३ ***** शुद्ध गंधयुक्त भक्ति भावतैं चढ़ायजी ॥ जगत आताप- हर जानि ता फल सही । धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही ॥३ ॥ ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय चंदनं निर्व. स्वाहा । अक्षतं समुज्ज्वलं खंड बिन जानिये । सुभग मोती जिसे थाल भरि आनिये ॥ ध्रौव्य फलदाय मनलाय ध्याऊं सही । धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही ॥४॥ ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय अक्षतं निर्व. स्वाहा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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