Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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श्री दशलक्षण मण्डल विधान ।
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उत्तम मार्दव धर्माङ्ग पूजा
पद्धडी छन्द
मार्दव वृष भाव विचार सोइ, जहां मान भाव दीखे न कोइ । ईहधारी मुनि शिवगामी जानि, मैं जजौं थापि मार्दव सुभानि
ॐ ह्रीं श्रीउत्तममार्दवधर्म धर्माङ्ग अत्र अवतर२ संवौषट् । अत्र तिष्ठर ठः ठः स्थापनं अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् सन्निधिकरणं । अथाष्टकम् (मणुयणानन्द की चाल ) क्षीर सम नीर शुद्ध गाल कर लाइये ।
पात्र सुवरण विषै धारि गुण गाइये ॥ जगतफिरनौ मिटे तासु फलतैं सही ।
धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही ॥२ ॥ ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय जलं निर्व. स्वाहा । स्वच्छ नीर संग चंदनादिको मिलायजी ।
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शुद्ध गंधयुक्त भक्ति भावतैं चढ़ायजी ॥ जगत आताप- हर जानि ता फल सही ।
धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही ॥३ ॥ ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय चंदनं निर्व. स्वाहा । अक्षतं समुज्ज्वलं खंड बिन जानिये ।
सुभग मोती जिसे थाल भरि आनिये ॥ ध्रौव्य फलदाय मनलाय ध्याऊं सही ।
धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही ॥४॥ ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय अक्षतं निर्व. स्वाहा ।
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