Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 17
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान। .. [१५ *************************************** सिद्ध थानक लहै तासु फलतें सही। धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही॥९॥ ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय फलं निर्व.स्वाहा। नीर चंदन अखित पुष्प चरु दीप जी। धूप फल अर्घ कर भाव शुद्ध टीपजी॥ लोक में फिरन, तन धरन मिटि है सही। धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही॥१०॥ ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय अर्घ्य निर्व. स्वाहा। प्रत्येकााणि (चाल मणुयणानन्दकी) देव वीतराग सर्वज्ञ तारक सही। दोष अष्टादशों तासु माहीं नहीं। नमत तिन पद करै धर्म मार्दव कह्यो। सो जजौं चारि गति मांहि भरमन दह्यो॥१॥ ॐ ह्रीं वीतरागदेवपद नमन-मार्दवधर्माङ्गाय अर्घ्य निर्व.। वीतराग देव कही वानि सो धर्म है। ता सुनै जीव निज हरै भाव भर्म है। मन वच काय श्रुतपाद सिरनाय है। सो जजौं धर्म मार्दव सु शिवदाय हैं॥२॥ ॐ ह्रीं श्री जिनधर्मपद नमन-मार्दवधर्माङ्गाय अर्घ्य निर्व.। धर्मको सेय तप लेय.कर्म जार जी। भये सिद्ध देव तन रहित सुखकार जी॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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