Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 18
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान। *************************************** लेय इन नाम मन वचन शिरनाय है। .. सो जजौं धर्म मार्दव सु शिवदाय है ॥३॥ ॐ ह्रीं श्री सिद्धपदनमन मार्दवधर्माङ्गायअयं निर्व. स्वाहा। धारि छत्तीस गुण सूरि सुखदाय जी। धर्म तप भाव सों गुप्त धरि भाय जी। मान तजि नमन इन पद विषं लाइयो। धर्म मार्दव सु तासु फल मोक्ष पाइयो॥४॥ ॐ ह्रीं श्री आचार्यपदनमन मार्दव धर्माङ्गाय अर्घ्य निर्व. स्वाहा। धारि गुण पांच अरु बीस उवझायजी। और भी अनेक गुण पास तिन थायजी॥ मान तजि इन चरण कायको नाइयो। धर्म मार्दव सु तासु फल मोक्ष पाइयो॥५॥ ॐ ह्रीं श्री उपाध्यायपद-नमन मार्दव-धर्माङ्गाय अर्घ्य निर्व.। क्षेत्र अतिशय तहां धर्म को धाय है। नमन बहु जिय करै देव गुण गाय है। मान तजि क्षेत्र शुभ जानि शिर नाइयो। धर्म मार्दव सु तासु फल मोक्ष पाइयो॥६॥ ॐ ह्रीं श्री अतिशयक्षेत्र-पद-नमन मार्दव-धर्माङ्गाय अर्घ्य निर्व.। देव जिन की सु प्रतिमा अकृत्रिम इसी। रूप द्युति ध्यान मुद्रा कही जिन जिसी॥ . मान तजि शीश इन चरणको सु नाइयो। धर्म मार्दव सु तासु फल मोक्ष पाइयो॥७॥ ॐ ह्रीं श्री अकृत्रिम-जिन-चैत्यपदनमन मार्दव-धर्माङ्गाय अर्घ्य निर्व.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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