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श्री दशलक्षण मण्डल विधान।
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फूल कल्पवृक्षके गंध रंग सारजी।
माल गूंथि शुद्धभाव भक्ति कर धारजी। मदन मद हरन सुफल जानि यातें सही।
धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही ॥५॥
ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय पुष्पं निर्व. स्वाहा। सुभग रस शुद्ध नैवेद्य मन लाइये। .
मोदकादि शुद्ध भक्ति भावतें चढ़ाइये। धारि स्वर्णपात्र शुद्ध मन वचन तन सही।
धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही॥६॥ ___ ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय नैवेद्यं निर्व. स्वाहा। दीप रतननमयी नाश तमको करा।
कनक पातर विषै भक्ति भावतें धरा॥ नाश अज्ञान है. तासु फलतें सही।
धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही॥७॥
ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय दीपं निर्व. स्वाहा। धूप दशगंध शुभ लेय मन मानिये। .
अगर चंदन सबै मेली शुभ ठानिये॥ अग्नि संग खेइये कर्म जालन सही
धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही॥८॥
ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय धूपं निर्व.स्वाहा। श्रीफलादि लौंग पुङ्गी फलादि जानिये।
शुद्ध बादाम खारक भले आनिये ॥
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