Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 16
________________ १४] श्री दशलक्षण मण्डल विधान। *************************************** फूल कल्पवृक्षके गंध रंग सारजी। माल गूंथि शुद्धभाव भक्ति कर धारजी। मदन मद हरन सुफल जानि यातें सही। धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही ॥५॥ ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय पुष्पं निर्व. स्वाहा। सुभग रस शुद्ध नैवेद्य मन लाइये। . मोदकादि शुद्ध भक्ति भावतें चढ़ाइये। धारि स्वर्णपात्र शुद्ध मन वचन तन सही। धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही॥६॥ ___ ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय नैवेद्यं निर्व. स्वाहा। दीप रतननमयी नाश तमको करा। कनक पातर विषै भक्ति भावतें धरा॥ नाश अज्ञान है. तासु फलतें सही। धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही॥७॥ ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय दीपं निर्व. स्वाहा। धूप दशगंध शुभ लेय मन मानिये। . अगर चंदन सबै मेली शुभ ठानिये॥ अग्नि संग खेइये कर्म जालन सही धर्म मार्दव जजौं शुद्ध शिवदा मही॥८॥ ॐ ह्रीं उत्तममार्दव-धर्माङ्गाय धूपं निर्व.स्वाहा। श्रीफलादि लौंग पुङ्गी फलादि जानिये। शुद्ध बादाम खारक भले आनिये ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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