Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 13
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान। [११ * * * * * * * * * * ** * * * * * * ** * * * * * ** * * * * * * * * * * * * नरक जीव अति दुखी पाप फलतें सही। छेदन भेदन पीर सहैं जात न कही। इन पर करुणाभाव जती अति लाय हैं। सो ही उत्तम क्षमा जजौं सुखदाय है॥११॥ ॐ ह्रीं नारकीजीवपरिरक्षण-रुपोत्तम-क्षमाधर्माङ्गाय अर्घ्य निर्व.। . गीता छन्द मनुष क्रोध रु मान माया, लोभवश दुखिया घनें। बहु चाह पीडित रागद्वेषी, अघ घनो उपजे तिने॥ तिन देख यतिवर दया लावे, महा दीन दयालजी। सो धर्म उत्तम क्षमा निर्मल, जजौं भाग्य विशालजी॥ ॐ ह्रीं मनुष्यजीव-परिरक्षण-रूपोत्तमक्षमा-धर्माङ्गाय अर्घ्य निर्व.। परकार चारों देव गतिमें, जीव सुख राचै सही। लछि देखि परकी झुरै नितही, मानते पीड़ा कही॥ तिन देखि मुनि उर दया भावै, महा कोमल भाव जो। सो धर्म उत्तम क्षमा पूजौं अर्घ तें कर चावजी॥ ॐ ह्रीं चतुर्विधिदेवजीव परिरक्षण-रूपोत्तम-क्षमाधर्माङ्गाय अर्घ्यं नि.। . बेसरी छन्द थावर तिरस जीव जब जोई चहुँ गति करमनिके वशि होई। तिनको देखि दया उर लाई, सो उत्तम क्षमा धर्म जजाई॥ ॐ ह्रीं त्रसस्थावर-समस्तजीव-परिरक्षण-रूपोत्तम-क्षमाधर्माङ्गाय अयं । .. जयमाला-दोहा धर्म क्षमा उत्तम बडो, सब जीवन सुखदाय। जजै जीव सो पुनि लहै, करै जु शिवपुर जाय॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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