Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 12
________________ १०] श्री दशलक्षण मण्डल विधान। *************************************** इनको दुखमय जानि दया मन लाय हैं। सो ही उत्तम क्षमा जजौं शिर नाय है॥६॥ ॐ ह्रीं सूक्ष्मस्थूल पंचस्थावरपरिरक्षणरुपोत्तमक्षमाधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। लट अरु जोंक गिंडोला इल्ली जानिये। कौड़ी शंख दुइन्द्रिय अति दुख थानिये। इन पर करुणाभाव जती धारै सही। . सो ही उत्तम क्षमा जजौं शिवकी मही॥७॥ ॐ ह्रीं द्वीन्द्रियजीवपरिरक्षणरूपोत्तमक्षमाधर्माङ्गाय अर्घ्य निर्व. । चींटी कंथा खटमल वीछु दुखमही। ते इन्द्रिय परजाय पाय धुण आदि ही॥ इनको दुखमय जानि मुनि करुणा धरैं। सो ही उत्तम क्षमा जजौं सब अघ जरै॥८॥ ॐ ह्रीं त्रीन्द्रियजीवपरिरक्षणरूपोत्तमक्षमाधर्माङ्गाय अर्घ्य निर्व.। माखी मच्छर टीडी भंवरादिक सही। बर्र ततइया मकड़ी चतुरिन्द्रिय कही। इनको दुखिया देखि मुनि करुणा धरैं । ___ सो ही उत्तम क्षमा जजौं वसुविधि जरै ॥९॥ ___ॐ ह्रींचतुरिन्द्रियजीवपरिरक्षणरूपोत्तमक्षमाधर्माङ्गाय अर्घ्य निर्व.। इन्द्रिय पांचों होय, नहीं मन जो लहै। ते जिय जानि असैनी अघ फल अति दहैं। इनको दुःख भरिपूर जानि करुणा धरैं। सो ही उत्तम क्षमा जजौं शिवथल धरै ॥१०॥ ॐ ह्रीं संज्ञी पंचेन्द्रियजीवपरिरक्षणरूपोत्तमक्षमाधर्माङ्गाय अर्घ्यं नि.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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