Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 10
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान। *************************************** नाना रस पूरित चरु सम्हार, शुभ मोदक आदि अनेक धार। यह धरम छिमा उत्तम सुजान, मैं पूजों मन वंच भक्ति आन॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमा धर्माङ्गाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि.। मणि दीपकसार बनायलाय, धरिकनक थाल भरिभक्ति आय। यह धरम छिमा उत्तम सुजान, मैं पूजों मन वच भक्ति आन॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमा धर्माङ्गाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि.। ले धूप अगरुजा गन्धकार, दुर्भाव हुताशन मांहि जार। यह धरम छिमा उत्तम सुजान, मैं पूजों मन वच भक्ति आन॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमा धर्माङ्गाय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि. स्वाहा। फल नारिकेल बादाम सोइ, पुंगीफल खारक भक्ति जोइ। यह धरम छिमा उत्तम सुजान, मैं पूजों मन वच भक्ति आन॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमा धर्माङ्गाय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि. स्वाहा। जल चन्दन अक्षत फूल लाय, चरु दीप धूप फल अरघ भाय। यह धरम छिमा उत्तम सुजान, मैं पूजों मन वच भक्ति आन। ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमा धर्माङ्गाय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ नि. स्वाहा। प्रत्येकााणि। अडिल्ल पाप प्रकृति कर जीव, अशुभ बन्धन करयो। थावर नामा कर्म उदय दुखको भरयो॥ पृथ्वी माहिं सु जाय सहै बहु अघ फला। तिनका रक्षण भाव क्षमा उत्तम भला॥१॥ ॐ ह्रीं श्री पृथ्वीकायिकपरिरक्षणरूपोत्तमक्षमाधर्माङ्गाय अर्घ्य नि.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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