Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 9
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान। ************************ ************** (उत्तम क्षमा धर्म पूजा) अडिल्ल छन्द जीव तिरस थावर जेते जगमें सही। देव नरक नर पशू चारि गतिकी मही॥ तिन सब ऊपर दयाभाव उर मांहि जी। सो है उत्तम क्षमा थापि जजूं याहिं जी॥१॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमा धर्मांग! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमा धर्मांग! अत्र तिष्ठ२ ठः ठः स्थापनं। ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमा धर्माग! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। ___ अथाष्टकम् (पद्धरी छंद) जल गंग नदीको विमल सोइ, धरि रतन पियाले शुद्ध होई। यह धरम क्षमा उत्तम सुजान, मैं पूजों मन वच भक्ति आन॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमा धर्माङ्गाय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं नि.। बावन चंदन घसि नीर लाय, धरिकनक रकेबी जिन चढ़ाय। यह धरम छिमा उत्तम सुजान, मैं पूजों मन वच भक्ति आन॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमा धर्माङ्गाय संसारताप विनाशनाय चंदनं नि.। अक्षत मुक्ताफल सम जुलाय,अति उज्वल नख शिख शुद्धभाय। यह धरम छिमा उत्तम सुजान, मैं पूजों मन वच भक्ति आन॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमा धर्माङ्गाय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्व.। शुभ फूल कल्पतरुके अनूप, करिमाला सुभग सुगन्धरूप। यह धरम छिमा उत्तम सुजान, मैं पूजों मन वच भक्ति आन॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमा धर्माङ्गाय कामवाण विध्वंसनाय पुष्पं नि.। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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