Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 6
________________ ४] श्री दशलक्षण मण्डल विधान। *************************************** अखयपद पावनै आप मनमें सही। ___ जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही॥३॥ ॐ ह्रीं श्री दशलक्षण धर्मेभ्योऽक्षयपदप्राप्तयेऽक्षतान निर्व. स्वाहा। फूल कञ्चनवरन कल्पतरु के भले। गन्ध जुत रंग शुभ लेइ निज कर चले। माल तीन ग्रंथि कामबाण नाशक सही। जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही॥ ४॥ ॐ ह्रीं श्री दशलक्षण धर्मेभ्यः कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्व.। सुगम नैवेद्य मोदक घने लाइये। विविध स्वादमय सु धरि भक्ति उर भाइये। भूख दुख हर्ण स्वर्ण पात्र धरिके सही। जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही॥५॥ ॐ ह्रीं श्री दशलक्षण धर्मेभ्यः क्षुधा रोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्व.। दीप मणि रतनमय और धृतमय सही। __ धारि कनक थालमें सु आरति जु करि लही॥ धर्मज्योति मोह अन्धकार नाशिका सही। जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही॥६॥ ॐ ह्रीं श्री दशलक्षण धर्मेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्व.। धूप दश अङ्ग मय लायकर सारजी। अगनि संग खेवहूं सुभक्ति उर धारजी॥ कर्म छयकार भव वास नाशन सही। जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही॥७॥ ॐ ह्रीं श्री दशलक्षण धर्मेभ्यः अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्व. स्वाहा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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