Book Title: Dash Lakshan Vidhan
Author(s): Tekchand Kavi
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 5
________________ श्री दशलक्षण मण्डल विधान। *************************************** (समुच्चय पूजा) त्रिभंगी छन्द यह धर्म क्षमावा मान गुमावा, सरल सुभावा सतिवानी। शुचि भाव करावा संजम लावा, तप करवावा अधिकानी॥ शुचि त्याग बतावै नगन पूजावै, शील बढ़ावै शिवदाई। यह धर्म दशारा' थाप करारा, पूजन धारा शिरनाई॥ ॐ ह्रीं श्री दशलक्षण धर्म अत्र अवतर अवतर संवौषट्। अत्र तिष्ठर ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं। मणुयणाणंदकी चाल क्षीर सागर तना नीर शुभ लाइये। कनक झारी वि. धार गुण गाइये। मरण उत्पति नहीं होय ता फल सही। जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमहीं॥१॥ ॐ ह्रीं श्री दशलक्षण धर्मेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्व.। नीरं संग अगर चन्दन घिस लायजी। सुभग पातर विषै धारि थुति गायजी। जगत ताप तासु फल तुरत नाशै सही। जानि इमि धर्म दशधा जजौं शिवमही॥२॥ ॐ ह्रीं श्री दशलक्षण धर्मेभ्यो संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्व.। लेय अक्षत भले मुक्ति फलसे कहे। उजले अखंड सुभग स्वर्ण पातर लहे॥ १-दशभेद वाला। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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