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चाणक्यसूत्राणि
विवरण-- नीतिमान राजाके प्रभाव से मंत्रिगण राजकर्मचारी तथा कर देनेवाली प्रजाके प्रमुख पुरुष भी राजोचित नीति, विनय, कर्मकौशल, न्यायान्याय कार्याकार्य विवेकसे संपन्न हो जाते हैं। तब राजाके अलाध्य रोगी या अकस्मात् अन्त हो जानेपर भी उस राज्यका परिचालन यथापूर्व बना रहता है । देशका जनमत योग्य राज्यसत्ताके प्रभावसे सुशिक्षित होकर स्वयं ही राज्यसंस्थाका संचालक बन जाता है। बात यह है कि जनमतके अतिरिक्त राज्यसत्ताको जन्म देनेवाली और कोई शक्ति नहीं है । इसलिये नीतिमान लोकमत राजाके शून्य पदपर अधिकार करके बनायक राज्यका कर्णधार बनकर स्वयं ही प्रजामें शान्तिका संरक्षक बन जाता है । वह शान्त वाता. वरणमें लोक कल्याणकी दृष्टि से राजाके योग्य उत्तराधिकारीका राज्याभिषेक करके राज्यको सनायक बना लेता है । प्रबुद्ध लोकमत, राजाका अन्त हो जाने पर राजसिंहासनको उसके अयोग्य पुत्रों या अन्य महत्वाकांक्षी लोगोंके आघात-प्रतिघातोंकी लीलाभूमि नहीं बनने देता। देश में शक्तिशाली जनमत न होनेपर ही शून्य राजसिंहासनपर उसके उत्तराधिकारियों को प्रात्मकलह करनेका अवसर मिलता है । राजाके अयोग्य उत्तराधिकारियों को इस प्रकार कलह करने देनेके परिणामस्वरूप अयोग्य लोग राज्यकी बागडोर हथिया लेते और राष्टको अधःपतित कर डालते हैं। इस प्रकारके दुष्ट उदाहरण इतिहासोंके पृष्ठों को सदासे कलंकित करते आ रहे हैं।
अनीतिपरायण राजसत्ताके कुप्रभावसे प्रजाके अधःपतित . हो जानेका वर्तमान उदाहरण स्वयं भाजका भारत है । नीतिहीन विदेशी राजशक्तिने यहांके जनमतको जानबूझकर नहीं जागने दिया और वह भारत त्यागने के अवसरपर भारतमें जो अनर्थ उत्पन्न करके गई है, उसे कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता। यदि भारतका जनमत सुशिक्षित तथा राज्यशक्तिका स्थान ग्रहण करनेकी योग्यतासे समृद्ध होता, तो न तो भारतमाताको दो विवदमान ( लडने-झगडनेवाले ) खंडों में बंटना पडता और न दोनों भागोंकी राजसत्तापर पार्टीबाज स्वार्थी लोगोंका अधिकारसंघर्ष चल पाता। . सूत्र विशेष रूपसे इस बात का संकेत कर रहा है कि जनमत सुशिक्षित