Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 14
________________ (१२) यो धन माल तो ॥ पाठक हर्षी रे गया, जब कुमरजी मूकी वय बाल तो ॥ षोडश वर्षने प्रासरे, इंद्या जागी चाले गुमराइ चाल तो ॥ नोग उपनोग पे मन घरे, काम दिप्य वस्तुने करे निहल तो ॥ सु० ॥ २७ ॥ जनक जनीता जाणके. योग्य स्थाने करी सगाइ ताल तो ॥ सुशीला राणी नीमसेणकी, सुरसुंदरी हरीषेण घर घाल तो। अाडंबरे परणावीया, कियो योगो मांमरो मोशाल तो॥ आनंदे दंपती रहै, सुख विलसे दुगंधक सुर माल तो ॥ सु०॥ २८ ॥ वृद्ध वय जाणी नूपती, जन्म सुधारण करे धर्म ध्यान तो॥ एकदा वागमें निश्चले, करी सामायिक चित्तारे ज्ञान तो ॥ तिण अवसर कोइ देवता, करे चेष्टा चुकावण नान तो ॥ विक्राल रूपे डरावीया, वस्त्र नूष१ सोले. २ देखे. ३ पिता. ४ माता. ५इंद्रके गुरुस्थानी देव जैसे.

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