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सेठजीके पुत्र के नाहीं. इसकी खबर कोण जाके ले ॥ भीतर पांव रक्खा नहीजाबे, सबी देखके घबराये । कोणिक राजा खबर सुणके, सवारी सज्ज वहांपे आये ॥ सबीजणेसे पूछी हकीकत, कुंवरजीका नहीं पत्तारे ॥ लक्ष्मी.॥ ६॥ बीछयत बिछाके बेठे सबजणे, माहेसे दासी बुलवाइ । . धमकी देके पूछी हकीकत, कुंवर साहेब हैके नाहीं ॥ दासी कहती कुंवर मोजमें, जगकी खबर उनको नाहीं। सबी सुण अश्चर्य हुये दिल्ल, देखनकी लगी अतीं चाही ॥ दासीसे कहे लावो बुलाकर, देर करो मत लम्गारे॥लक्ष्मी ॥७॥ दासी जाके लगी काममें, भूलगइ पीछी नहीं आई। दो तीन दासी इस्तरे होगइ, कुंवरकी खबर कुछ नहीं पाई ।। राजा उसदिन गया जो घरको, दूसरे दिन आये चलाइ । मेहनत करनेमें कसर न रक्खी, कुंबर मिला नही तिण ताइ ।। बहोत दिन हुये गोतेखाते, दिल्लमें रहे सब घबरे॥ लक्ष्मी. ॥८॥ एक दिन एक दासीको मारी, कहते जल्दी ला खबर।। नहींतो तोप से मेल उडावु, धमकी बतलाइ उसको जबर । दासी रोती गइ कुंवरपे, कुंवर देख अश्चर्य पाया । यह क्या गायन नवीन देखा, इसके आँख पाणी आया ।। कुंवराणीने पूछी हकीगत, दासी तब यों उच्चारे। लक्ष्मी.॥९॥