Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र AAPATIAL (ॐ नमः सिद्धं ) HARE ********* 15 बाल ब्रह्मचारी मुनी श्री अमोलख ऋषिजी Na रचित र कर्म और धर्मका फल दर्शाने वाला भिमसेण हरीसेण चरित्र और लक्ष्मीपतीजी चरित्र. इसे दक्षिण-हैद्रावाद निवासी र पन्नालाल जमनालाल रामलाल कीमती. रा. नाना दादाजी गुंड के व्यापारी प्रेस पुणेमें छपवाके प्रसिद्ध करी प्रथमावृती प्रत १००० मुल्य-सदुपयोग श्रीवीर संवत्सर २४३५. विक्रम संवत १९६६ इस्वी सन १९०९ छ इस पुस्तकको दीपकके प्रकाशमें, उघाडे मुखसे व वाजिंत्रके सहाय्यसें, इत्यादी अयत्नासें पढ़ना नहीं. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. " कड्डाण कम्मा न मोख्क अत्थी" ॐ (कृत कर्मके फल भोगवे विन छूटका नहीं. ) इस जगतमें जीव और कर्म दोनो अनादी है. जीव दो तरहके है १ सिद्ध नगवंतके जीव जो सर्व कर्मका नाश कर अनंत अदय अव्याबाध सुखमें लीन हुये मोक्षस्थानमें विराजमान है. और २ संसारी जीव अनादी कर्मके संयोगी हैं. कर्मका कर्ता और उनके फलका नुक्ता जीवही है.वो कर्म विपाक दो तरहसे नोगवे जाते है.१ शुनपुण्यरूप काम करते जीवको मुशकिल मालुम पडता है. परंतु उस्के फल मुख दाता. और २ अ. शुन-पापरुप काम करतें जीवको अच्छा लगता है. परंतु उसके फल दुःख दाता होते हैं. पाप कर्म जोगवते जीव रोता हैं और रोते २ नी वोकर्म Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्री जिनवरेंद्राय नमः ॥ ॥ कर्म और धर्मका फल दर्शाने वाला ॥ ॥ भीमसेण हरीसेण चरित्र.॥ ८.89 ॥ दुहा ॥ जग नायक जिनरायजी, सब नायक सिद्ध देव ॥ गंण नायक प्राचार्यजी, श्रृंत नायक श्रुती सेव ॥ ॥ १॥ श्रमण श्रंमणी आदि सहू, अष्टोत्तर शत गुण धार ॥ तस चरण सरण लही, चरित्र कहूं मनोहार ॥२॥ ॥ ढाल-सती ने सिरोमणी अंजना। यह देशी। श्री गुरूदेव प्रशाद सें, कर्म ग्रन्थ को कहूं अधिकार तो ॥ कर्म बली डे जगत्में, नमावें जीव १ संप्रदाय. २ श्रुती-बुद्धि वा शास्त्र. ३ उपाध्याय. ४ साधू ५ साध्वी. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) को सदा गत चार तो ॥ उंचा कों नीचो करे, नीच नरने देवे पद सारे तो॥ विचित्र गतीने एहनी, सुरनर गिणतां न पामीयां पार तो ॥ सु. णजो चरित्र सुहामणो ॥ यह अांकडी ॥१॥ बडा २ को संतापयिा, कित्ताक का नाम करूं उचारतो ॥ श्री श्रादिश्वर जाणीये, कुद्या सही प्रनू जी मास बार तो ॥ पार्श्वजी पाउस पीडा सही, महावीरजी बारा वर्ष पखवार तो॥ अतुल्य परिसह सहन कर्या, ते होता प्रनू जग शिरदार तो ॥ सु०॥ २॥ चक्री चौथा जाणी यें, महास्वरूप नाम सनत कुमार तो ॥ विणमें सरीर विणसी गयो, ते सुधौँ सात-सो वर्ष मकार तो ॥ राम लक्ष्मणजी वन वस्या, कृष्णजीकी जली नगरी दुवार तो ॥ पांडव हार्या द्रोपदी, तेरा वर्ष गुप्त १ अच्छा. २ वृष्टी. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रह्या परद्वार तो ॥ सु० ॥ ३॥ हरिचंद्र नारी पुत्र बेचिया, चाकर रह्या ते घर चंडाल तो ॥ नल दमयंती वने ठवी, वर्षदिवस रह्या चरवा दार तो ॥ नर्तरी मार खाइ नट तणी, विक्रमका काप्या कर पग चार तो ॥ मूंज निदा मांगी घरघरे, इत्यादिपरे नीमसेण अधिकार तो॥ मु० ॥ ४ ॥ ब्राह्मीसुंदरी मोटी सती, तप करी नर्तको चित राख्यो ठाम तो॥ चंदणा बेंचाणी चौवटे, राजेमती नही कों बीजो स्वाम तो ॥ द्रोपदी सील प्रनावसें, पद्मोतर कीचककी पाडी माम तो॥ कौशल्या शुद्ध व्रत पालीयो, मृगावती कामने कीयो नी काम तो ॥ सु० ॥ ५॥ सुनदा चंपाद्वार खोली या, सीता धीजे राजी कर्या राम तो ॥ सुलशा विख्यात ने सीलमें, शिवा बालब्रम्हचारिण गुण घाम तो ॥ कुंताजी माता पांडव तणी, प्रनावती Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) सती अनीराम तो ॥ मानवती जोयराविषे, पोताना पतीने पायो चरणांम तो || सु० ॥ ६ ॥ दमयंती वन वासोवसी, चेलणा प्रतिलाच्या जग स्वाम तो || पद्मावती पुत्र पठावियो, मेणरह्या बची सही दुःख घामं तो || तिलोक सुंदरी परवस रही, चार कुष्टी हुवा न पुगी हाम तो ॥ सु० ॥ ॥ ७ ॥ कुसुमश्री वेस्पा घर रही, सील बचायो युक्ती करी ग्राम तो ॥ इत्यादि के सतीयां हुई, संकटे न कर्यो सील जोखामैं तो ॥ इणपरे खुशीला जाणिये, धन्न २ सबकों करूं प्रणाम तो ॥ सती संतका गुण उचरी, पवित्र होवे रसना श्रुत ग्रामतो || सु० ॥ ८ ॥ जंबुद्विप सुहामणो, नर्त-क्षेत्र दक्षिण दिशा माहि तो ॥ बत्तीश हजार देश हमें, आर्य साडा पच्चीस कहवायतो ॥ तिणमें मा १ पगधोवन २ दुख. ३ हरकत. ४ नीम. १ कान. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लव मनोहरु, पावंतीपूर उज्जेणी सुखदायतो । गढ मढ़ मेहल हवेलीयां, चौवट त्रिवट बजारबणायतो ॥ सु० ॥९॥ बत्तीस कौम सुखीया बसे, धनधान पूर्ण कमाइ सवायतो ॥ चोर जार नट खट नही, नंगर नायकाथी कामी मोहवाय तो ॥ धर्मस्थान घणा जाणीयें, जाचकको तिहां दारिद्र जायतो ॥ लोक धर्मानु रागीया, साधु सती प्रा. दर घणो पायतो । सु०॥१०॥ सज्जन पुरजन मन रंजणो, राजकरे तिहां जीतारी' राय तो ॥ निती न्याय निपुण घणो, विचक्षण सत्यसीले लोनायतो॥ रुप तेज बुद्धी बलपूरो, शत्रू तेहने देखी थररराय तो ॥ पुत्र परे सहू राष्ट्रने, पालन करे घणो प्रेम जणायतो ॥ सु०॥ ११ ॥ गुण सुन्दरी अवांगनों, तस्य दर्शनसे इंद्राणी लज्जा१.प्राचीन नाम. २ अनीका नाम. ३ मंगत. ४ दश. ५ राणी. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यतो ॥ पाणी पाद मक्खन समा, हीण निंदनिय कोइ अंग नायतो ॥ लज्जा सील विनयदिी, नृप मोह्यो अंतर नहीं चहायतो॥ धर्म कर्ममें डोही घणी, जोडो मिल्यो पूर्व पुन्नसे अायतो ॥ सु०॥ ॥ १२ ॥शयन भवन सुहामणो, घटार्यों मटार्यों अती उत्तगंतो॥मुगन्ध द्रव्य महका रह्या, अचानक नर देख हो जावे दंगतो ॥ सेजा मुकुमाल मनोहरूं, रेशम निवार लगाइ नव रंग तो ॥ यकतुल मुखमल गादीयां, जिम बालू गंगा सरीता तरंगतो ।। सु० ॥ १३ ॥ तिणमें शयन किया थकां, सुखे निद्रा लहे शांत अनंगतो ॥ गुणसुन्दरी राणी तेहमें, निशमाहे मूती धरती उमंगतो ॥ पवन शीतल घाले दासीया, मधुर गित गाय मिला स्वर संगतो॥ निद्रा आइ राणी नणी, नही नय १ हाथ. २ पग. ३ हूस्यार. ४ सोनेका मकान. ५ उंचा ६ .नदी. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिंता बेफिकर निशंग तो ॥ सु०॥ १४ ॥ तब पूर्व पुन्योदये,स्वपन अवलोकियो उत्तम तुरंग तो॥ चौफालो नने कूदतो, जैसे बनमाहे धाप्यो कुरंग तो ॥श्रृंगार्यो अतीशौनितो, नूषण बहुमोला दिपे ने ढंगतो ॥ मुखे वगासी पाया थका, उदरमें पेठो धरी उबरंग तो ॥ सु० ॥१५॥ तत्तिण देख जागृत हुइ, हर्षी चाली जिम लेहर उठे गंग तो ॥ प्रीतम नवने पधारिया, स्वामिजी दिठा निद्रामें चंगतो ॥ मधुर वयण गायन करी, जागृत किया करतल प्रसंग तो ॥ नृप जागी अादरदियो,सुखा. सण बेठी चित अनंग तो॥ सु०॥१६॥जीतारी नृप पूरे राणीने, किण कारण पधारिया आपतो। स्वपन विरतंत राणी तदा, जिम देख्यो तिम कह दियो सापतो॥ महीपति अति हर्षित हुइ, पालो १ आकाशमें. २ हीरण ३ पेट. ४ स्थीर. ५ विचारे. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) चे स्वपन अर्थघर खांपतो ॥ पुत्र होसी मुलक्षणो, सूर वीर गुणधारी अमापतो ॥ मु० ॥ १७॥सुण गुणसुंदरी खुष हुइ, तहत बचन नाथ होवजो एम तो ॥ अज्ञा ले निज मंदिर गइ, दास्या बुलाइ धरी गर्न प्रेम तो॥ जाग्रण कियो धर्म कथा करी, दू स्वपनथी टालण अक्षम तो॥ निशा गइ उगा दिन करूं, राय जीतारी करी नित्य नेम तो ॥ सु०॥ ॥ १८ ॥ आदेश देइ किंकर नणी, राय सनाने साफ कराय तो॥ ग्रासण केइ मांडीया, चंद्रबा बत पडदा डलाय तो ॥ स्वपन पाठकने बुलाइया, शास्त्र ले प्राय सहू हुल्लसाय तो ॥ नूपादि आदर दियो, उंचासण बेठा सुख माय तो॥सु० ॥१९॥स्वपन अर्थ श्रवण करन,राय राणीदिबेठा चुप चाप तो॥ विबुध बहोत्तर स्वपन कह्या, तीस उत्तम बयालिस - १ अपार. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाप तो॥ अश्व शृंगार्यों उत्तम घणो, पुत्र होसी श्रेष्ट गुणथी अमापतो ॥ बुद्धि बल राज ऋद्धि बधे, सूरवीर नाम दिपासी मां बाप तो ॥१०॥२०॥सुणी राजिंद्र राजी हुवा, पाठकने घणो दिघो धन्न तो॥ सात पिडी लग खुटे नहीं, खुषी कियोसब तणो तिहां मन्नतो॥हर्षी पंडित घरे गया,राणीगर्नका करे जतन तो॥* बत्तीस दोषण टालवे, ताजे मासे डोहलो * मनहर छंद-गर्भ युक्त नारी, वायू वस्तुनो भक्षण करे, कुंबडो अन्धो ने जड पुत्र पुत्री थायछे ॥ पित्तथी खलित पीलो, कफ वारे पांडू रोग, खाराथी चक्षूनो नाश, शीत वाको पाय छे. ॥ उष्ण हरें बल ने चपलता पतन करे, मैथुन सेवाथी विभचारी नाशी नाय छ । विषम जगामें शयन, आसण, पलन करे, उंच नीच शिघ्र गती, गर्भने गमाय छे ।। १ ।। अती लूखा चीकणाने खारा खाट मगि आहार, अतीसार वमन ते गर्भ खीराय छे ।। हांसथी हंसालू ने रूद्रनथी रोवण्या होय, तपथी निर्बल सील, कुसीले गमाय छ, धर्म कियां धर्मात्मा, ज्ञानसुण्या ज्ञानीवणे, जेवा कृत्य माता कर, ते तेने प्रणमाय छ ।। कहत अमोल, जोवो वागभट्ट ग्रंथ खोल, तनुज सुधारवाने हितथी चेतायछे ।। २॥ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) नयो उत्पन्न तो॥सु०॥२१॥अश्वनी श्रेणिका सजकरी, क्रिडा करवाने जाऊं. में वन तो ॥ महीपत डोहलो पूरियो, सवा नव मास वीत्या तत्दन तो ॥शुन महूरत ने शुनघडी, प्रसव्या कुमर थयाशुव चिन्ह तो ॥ दासी बधाइ दी रायने, बडारण कर तस्य करी प्रसन्न तो ॥ सु० ॥ २२ ॥ जन्म ओत्सब घणो कियो, उठे दिन कराया रवी दरशन तो ॥ कुटुंब जिमायो दिन बारमें, गुण निष्प. न कर्यो नाम थापन्न तो ॥ नीम स्वपन डोहलो उप्पनो, तिण गुणे नाम कुमर नीमसेण तो॥सुखे २ वृधी हुवे, जिम सुक्लपद में स्वामी रयन तो ॥ ॥सु० ॥ २३ ॥ मास दुवादश अंतरे, पूर्व परे राणी कीधो सयन तो॥ हरी नर्यो वन फल्यो फूल्यो, देखीने जागी राणी स्वपन तो ॥त्रीजे १ घोडा. २ शैन्य. ३ सूर्य. १ चंद्र Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११ । मासे डोहलो लह्यो, हरीयो वन कियो अवलोकन तो ॥ डोहलो पूर्णं नव मासमें, राणीजी जायो पुत्र रतन तो ॥ २४ ॥ हरीसेण नाम स्थापीयो, पांचो धाय करे प्रतीपाल तो ॥ सुक्केंदु ज्यों मुख बधे, चंपो बधे जिम गिरीवर ढाल तो ॥ दोनू बं. धूके प्रीती घणी, विरह न वांडे एक विण काल सो ॥ खान पान क्रिडा शयन, एकी स्थान करे उजमाल तो ॥ सु० ॥ २५॥ विज्ञान वय जब प्रगमी, विद्या ज्यासे बेठाया निशाल तो ॥ स्वल्प काले स्वल्प उद्यमे, प्रवीण जया पुंन्य बुद्धी विशाल तो ॥ बहोत्र कला नरकी नण्या, महीला की चोसठ सीख्या ते काल तो॥ राजनीती धर्म नीतीनी, शिक्षा ग्रही आया जिहां नूपाल तो ।। ॥ २६ ॥ प्रश्नोत्तर केइ किया,पंडितने घणो दि. १ चंद्र. २ थोडे. ३ स्त्री. .......... . । Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) यो धन माल तो ॥ पाठक हर्षी रे गया, जब कुमरजी मूकी वय बाल तो ॥ षोडश वर्षने प्रासरे, इंद्या जागी चाले गुमराइ चाल तो ॥ नोग उपनोग पे मन घरे, काम दिप्य वस्तुने करे निहल तो ॥ सु० ॥ २७ ॥ जनक जनीता जाणके. योग्य स्थाने करी सगाइ ताल तो ॥ सुशीला राणी नीमसेणकी, सुरसुंदरी हरीषेण घर घाल तो। अाडंबरे परणावीया, कियो योगो मांमरो मोशाल तो॥ आनंदे दंपती रहै, सुख विलसे दुगंधक सुर माल तो ॥ सु०॥ २८ ॥ वृद्ध वय जाणी नूपती, जन्म सुधारण करे धर्म ध्यान तो॥ एकदा वागमें निश्चले, करी सामायिक चित्तारे ज्ञान तो ॥ तिण अवसर कोइ देवता, करे चेष्टा चुकावण नान तो ॥ विक्राल रूपे डरावीया, वस्त्र नूष१ सोले. २ देखे. ३ पिता. ४ माता. ५इंद्रके गुरुस्थानी देव जैसे. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) हर्या करवा हरौन तो ॥ सु० ॥ २९ ॥ तो पण जरा चल्या नही, डोल रह्या ते मेंरू समान तो ॥ प्रसन्न हूइ विर्बुद्ध कहे, मांगो इति वरदान तो ॥ नूप कहे निर्जर सुणो, चिंतामणी लीयो धर्म पहचान तो ॥ न रही इच्छा बीजी किसी, तुम पण येही करो प्रमान तो ॥ सु• ॥ ३० ॥ धर्मदृढ उपकारी संतोषी, इत्यादि गुणे जाण्या नृप नागवान तो ॥ नाम कायम रहवा तिहां, सहकार वृक्षको कियो मंडान तो ॥ नित्य पॅट फलते अर्पवे, यपूर्व रस नही रुज गुणं खान तो ॥ प्रणमी पग तें सुर गयो, रायजीने गुरूजी सम जान तो ॥ ॥ सु० ॥ ३१ ॥ नृप तस फल नित जोगवें, दोनो पुत्रको पे तें खान तो || राय अम्ब तिथी बज्यो, अन्य नहे तेह बान्ध्यो निदान तो || १ देवता. २ देउ. ३ अम्ब. ४ छे. १ रोग. ६ लेवे, ७ बंदोबस्त. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) सुखे २ काल अतिक्रमें दृढतानो फल लियो पै. गन तो॥अप्सता बधी घणा लोककी,धर्म एक जाणे जीवन प्रान तो ॥ सु० ॥ ३२ ॥ दोनु नाइके प्रीती घणी, * दीरने नीर परे चाहंत तो ॥ एक दिन राय जीतारीजी, परनव गया हुयो त्रायुको अंत तो॥ राजा रूढ हुया बिना, पहला रायको तन नही दहंत तो ॥ नीमसेण कहे में बेठू नही, लघू बंधव तुम पूरो खंत तो ॥२॥३३॥ हरीसेण कहे में सोनू नही, बृध नाइ तुम होवो महंत तो ॥ में रेवस्युं तुम सेव में, हुकम प्रमाणे * सवैया-क्षारकी संगत नीर करी, तब दे गुण आप समान किया है। ताव लग्यो जब उन क्षीरनको, जाल्यो नहीं पग आप जल्यो है ।। नही देख के नीर गिर्यो पद्माकर, कूद अग्न माहे आन पड्यो है ।। हीर अली प्यारे वेग मिलो तुम, मंत्री कियोतो ऐसो कियो है ॥ १ ॥ १ जावे. २ द्ध. ३ बेठया. Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) कार्य करत तो॥ इम कोड आपस में करे, वक्त घणो यौं नयो वितिक्रत तो ॥ सामंत समजावे बहु, माने नही एकही ते कंत तो ॥ सु० ॥ ३४॥ चुपके हरीसेण उठने, नीमजीने बाथमाही ग्रहंत तो ॥ गादीपर बेठाइया दुवाइ फेराइ वाजिंत्र बाजंत तो॥जीतारी तन्नदहन कियो, सोग मिटीने हुयो सुख शंत तो॥लघू नाइ मान बधारवा, जुगराय पदप र तेहने थापंत तो ॥ मु० ॥ ३५ ॥ राष्ट्र को ष शैन्य सर्वको, मालकी दी तस करी स्वतंत तो॥ आप रहे सदा मेहेलमें, लागे ते खरच लेवे मंगावंत तो ॥ खटपटमें पड़े नही, निश्चित रही सदा जोग नोगंत तो ॥ हरीसेण चलावे राजने, नीमसेण जीना पुन्य फलंत तो॥मु०॥३६॥ नीमसेणराय सुशीला संगे, पंच इंद्रीना नोगवे नोग १ देश. २ भंडार. ३ स्ववस. - Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो ॥ काल वीत्यो जाणे नहीं, कोइ तरहाको नही तस सोग तो॥ नाइ पे विश्वास धारीने, जाणे मिट्यो राज चिंताको रोग तो ॥ द्रव नावे सुख मानता, एक दिन पूर्व पुन्य संजोग तो ॥ मु०॥३७॥ सूशीला सुती पाणंदमें, देव विमाण स्वपन माहे गेग तो ॥ उबासी जोगे पेठो उद्रमे, जागीने प. तीने मुणायो ते योग तो ॥ पुत्र होसी सुर सारीखो, कमलायश सुख बधासी मन्योग तो॥ सवानव मास पूरा हुवा, पुत्र जन्म्या मोत्सब कियो ढोंग तो॥ सु०॥३८॥ देव यांन दर्शनानु सारसे, देवसेण नाम दियो गुण जोग तो ॥ पंच धाये बृधी हूवे, मास बारा गया शुन उद्योग तो॥ तिमही फिर राणी स्वपनमें, इंद्र केतू देखी बहू द्वज दोग तो ॥ पुत्र हुयो गुण निष्पन्ने, केतृसेण नाम दियो १ देख. २ पेट. ३ विमाण. ४ जना. ५ परवरी. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) जो नोग तो ॥ सु० ॥ ३९ ॥ मुखे २ बधे दोनु जणा, नही फिकर कोइ जोग योग तो ॥ षेट वसुं बर्ष अंदाजथी, दोइ हुवा जोवे पुन्य फल लोग तो ॥ ए शुभ कर्म रचना कही, आगे सुणो हवे कू कर्म जोग तो ॥ प्रथम अधिकार पूरो थयो, रिख मोल कहे शुध योग तो ॥ सु० ॥ ४० ॥ || दुहा ॥ त्रण तणो भारत हुवे, रज केरो गॅज थाय ॥ त्रिया चरित्र प्रतापथी, बडा २ बिटवाय ॥ १ ॥ राय थी एकदा, हरण थयो एक फल || खबर न लागी तेहनी, कर्म गती छे अचल ॥ ३ ॥ वन पालक फल पांच ते, संग्रही धर्या निजस्थान ॥ उत्पात जे एहथी हुवे, ते सुणजो घर कान ॥ ४ ॥ ढाल - सती ने सिरोमण अंजना ॥ ए देशी || १ योग्य. २ . ३ भाठ ४ हाथी. Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८) दोनू बन्धवकी दासीया, अम्ब लेवा गइ व. नपाल पास तो॥ पांच सहकार देखी करी, जगडन लागी ते तीननी प्रास तो ॥ वनरदंक तो चुप रह्यो, जसोदा कहे हम रायना दास तो॥ तीन प्रांब हम लेवस्यां, इम कही ले चाली धरती हुल्लास तो॥ त्रिया : चरि. त्रको सांगलो ।। यह अांकडी ॥४१॥ कुंती जोती ऊनी रही, उदास हुइ अाइ मेहल खास तो॥ सुरसुन्दरी पूछे तदा, क्योंरी अाज कैसे दीखे उ. दास तो॥ रसाल क्यों लाइ नही, खूणे बेठी किस्यो करे हियास तो ॥ कुंती क्रोधमें प्रजली, बोलण लागी सिलगावण घास तो॥त्रि०॥४२॥तूं कारो नही दीजीये, बोलजो अब म्हाराथी वीमास तो ॥ थें चाकर नीमसेणका, हम पण नो१ अम्बा. २ माली. ३ पिचार. Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (१९ ) करी करां छां तास तो॥ थारे कने रह्यां थकां, मारी अबरूको नयो नाश तो ॥ जसोदा ति. न फल लेगइ, थांणी मारी हुइ घणी हांस तो ॥ त्रि० ॥ ४३ ॥ तेतो राजाकी दासी बजी, में तो बजा छां दासना दास तो ॥ इण जीतबसे मरणो नलो, अब निश्चय में लेस्युं गल फास तो॥ धिक्कार होवो इण जन्मने, इम कही उठी जावे मरणास तो॥ सुरसुन्दरी हाथ झालीयो, विश्वासी कहवा लगी तास तो ॥ त्रि०॥ ४४ ॥ रा. जकरे मुज स्वामीजी, नीमसेणने पेछाने न कोय तो ॥ काल मुज पति गादी बेठसी, में करामात करूं ते ले जोय तो ॥अन्धारी अटारी औरी में गइ, सरीर संकोची खूणा माहे सोय तो॥ इतरे हरीसेण आविया, राणी तिहां द्रष्टे नहीं होय तो॥ त्रि० १ कचरेवाली. - Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) ॥४५॥दासीने पूछे तदा, तटकी कहे ते खबरन मोय तो॥हरीसेण चितमें न धरी, बागेचल्यारोवण राग सुण्योय तो॥ औरीमें जाइ जोवे तदा, खुणे पडी अर्धांगना रोय तो ॥ अश्चर्य पायो अतिघणो, कहे व्यर्थ तन्नने क्यों तूं वीगोय तो॥त्रि-॥४६॥ उठावे हाथ धरी करी, तिम २ अधिक करे पश्चाताप तो ॥ कंथ कहे रोयां कांइ हुवे, मनमें होवे ते बात कहो साप तो ॥रोती २ नारी जणे, प्रायो मरण मुज मूणीजो आप तो॥ अांकडीली में लघू. पणे, चंडिका पास एकंत चुप चाप तो ॥ त्रि.॥ ॥४७॥ हुबारे बर्षने मायने, महारा पती होसे राने थाप तो ॥ तो पूजा करस्युं थायरी, नहीतो नारी हित्यानो देश्यु पाप तो॥ पुरी हूइ ते मानतां, आपने राजतो नही हूयो प्रापं तो ॥ काले मरस्यूं. १ स्त्री. २ खराब करे. ३ प्राप्त, - Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) हतो खरी, नही देख्या थारां सुख में धाप तो || त्रि० ॥ ४८॥ हरसेिण राणीने लेयने, प्राय बेठ्या बार गोखडा माय तो ॥ सुरसुन्दरी पाछी चली, हाथ पकड तस पास बेठाय तो।। राज पाठ में नोगवू, नीमसेणने पैठाणे को नाय तो ॥ बिख्यात छ हूं विश्वंमें, स्ववस छु में करूं जे चाय तो ॥ त्रि० ॥ ४९ ॥ और राजा कहो किम हुवे, तुं पटराणी प्यारी सवाय तो ॥ उणारथ नहीं किजिये, मरबाकी न निकालणी वाय तो ॥ ते कहे राजा यों नहीं बजे, व्यर्थी क्यों थे रह्या फुलाय तो ॥ नोकर छो जेठजी तणा, अहोनिश थारां हम्मालीमें जाय तो ॥ त्रि० ॥ ५० ॥ काण राखो बडा नाइकी, वां पण थाने दिया पोमाय तो॥ देवा जिसा सुख भोगवे, सारी फिकर थारे लार १ जगतमें. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) लगाय तो ॥ इम तुम राजा बजो नही, खलने कदापी गुल न केवाय तो॥राज गादी बैठे रा. जबी, थेतो बेठो प्रधानने ठाय तो॥ त्रि० ॥५१॥ जिस दिन गादीपे बैठ सो, सोही दिन मुजसफल गिणाय तो ॥ हसेिण कह दिन उगतां, मैं बैठेंगा गादीपे औछाय तो ॥ देखा अंतराय कुण देवे, दुवाई म्हारी देस्यूं फेराय तो ॥ इत्यादी बातां करे, जित्रे तिहां देखो नृप पुन्य सहाय तो ॥ त्रि० ॥ ॥ ५२ ॥ जसोदा लघुशंका नणी, आईथी नीचे उनी सुणे बात तो ॥ नारी कहे नाइ बेठा थकां, ऐसो काम कदापी न थात तो ॥ अपयश एथी होसी घणो, उमराव बदल रायस्यूं मिल जात तो इच्छा पूर्ण नही हुवे, हरीसेण सोची आगे जणात तो ॥ त्रि० ॥ ५३॥प्रनाते चारी जीवनी, पोता. ने हाथे करस्यूं जाइ घात तो॥ फिरतो इच्छा पूरी Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) हुवे, कोइ करवा समर्थ न उत्पात तो॥ हम छां दत्रीनी जातडी, राज कारण मारा बापने भ्रात तो ॥ तो लांछन नही हम नणी, ऐमी रीत पूर्व चली बात तो ॥ त्रि० ॥५४॥ जसोदा विरतंत सांनली, मनमाहे कांपी अंग थररात तो ॥त. दिण दोडी तिहां थकी, राजा राणीने भाइ जगात तो ॥ नृप पूछे केम जगावियो, ते हरीसेणनी बात चेतात तो।। शिघ्र हुशार होवो हवे, करो उपाय जिम बचे चउगात तो ॥ त्रि० ॥५५॥ बंधव बदल्यो में खरी कहूं, चारांने मारणो दिलमाहे चहात तो ॥ बुलावो आप मंत्री नणी, जो अाप करे सहाय तात तो ॥ नूप कहे म्हारो को नहीं, स्नेही ते बदल्यो हिवणात तो ॥ नागवानी इच्छा करी, रथ मंगाइने माल नरात तो ॥ त्रि०॥ १ चारांका सरीर. २ अब्बी. Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) ॥ ५६ ॥ सुरसुन्दरी हरसिणने, कहे कोइ छानो उनो इहां होय तो॥ चेतावे जेठने जायने, सजन सामंत तिणरा कोय तो॥ ते बंदोबस्त करे रातमें, अथवा नागी चाल्या जासी सोय तो ।। अन्य राजाने मिलायने, राज लेसी पछे थे रेसो रोय तो॥ त्रि० ॥ ५७॥ पाछे थे पस्तावसो, इसडो वेम पडे छे मोय तो॥ हरीसेण नंनो बजायने, पांचसे शिपाइ बुलावे तोय तो ॥ नटं ते तक्षिण अविया, पूछे हुकम फरमावो छ सोय तो ॥ किण कारण बोलाइया, इणहजि वक्त करां ते चोर्यंतो ॥ त्रि० ॥ ५८ ॥ हरीसेण कहे राय मेहलने, जल्दी जाइ देवो घेरोय तो ॥ मेहेल बाहिर जो नीकले, तेहना प्राण देवो जट खोय तो॥ शर्म केहनी रखजो मती, नहीतो हड्डी तुम न्हांख १ बुगल. २ शिपाई. ३ प्रेरना-हुकम. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) स्यू धोय तो ॥ नट चट आइ मेहलने, घेरो दियो कहे जोरसें सोय तो ॥ त्रि०॥ ५९ ॥ बाहिर जो कोइ अावसी, तेहना कटका होवसी दोय तो॥ हुकम यह हरीसेणका, राजा राणी नही गिणसा लोय तो ॥ जो जीवणकी इच्छा हुवे, तो वाहिर पग मती काडो कोय तो॥ इम कही सर्व हुंशारीसे, नंगी समशेरै ले उना ते जोय तो॥ त्रि०॥६०॥ जसोदा कहे जाइ रायने, अब कहां जासो स्वामीजी नाग तो ॥ समशेर लेइ बहादुर खडा, निकले तेहने मेले जमत्रागं तो॥ राणी राय देख धूजीया, अरर अब कांइ करां इण जाग तो ॥ आपां मरां तो फिकर नही, दोनू कुमरछे लघू वय मांगं तो ॥ त्रि० ॥ ६१॥ किण बिध मारसी पा. पीयो, फिकर पडयो दोइने अथाग तो ॥ निर्मळ १ तलवार. २ मारे. ३ अंदर. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) वंशे दुष्ट इण, कैसो मोटो लगावेछे दाग तो॥राणी मुळ खाइ पडी, मुंडापर पाया घोला जाग तो॥ शितल उपचार किया थका, सावध हुया राणीजी जाग तो॥ त्रि० ॥ ६२ ॥ दासी कहे रोयां कांइ हुवे, बतावो कोइ बचवाको लागं तो ॥ राय कहे मुज सुजे नही, चिंतारुप चडी मुज छाग तो ॥ दासी कहे फिकर तजो, निकम्मो किम करोछो गागं तो॥ साथ लेवाको जल्दी लेवो, में देखा जाका नणी मागतं तो ॥ त्रि०॥६३॥ रत्नजडित घणा मोलका, ग्रहणाना डाब लियाछे डागं तो॥ वस्त्र संनारी सज नया, दोइ कुमरने कडयां लिया टाग तो॥ दासी मशाल करी तदा, तेल पुरी सिलगावे आग तो॥ आगे दासी पीछे चउ जणा, घुडशालमें गया गुप्त राग तो॥ वि० ॥ ६४ ॥ गुप्त पटने १. उपाय. २ पुकार. ३ रस्तो. ४ दागीना. (ग्रहणा) चाचाप Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७ ) उघाडीया, बरामें उतर्या तीन घर तो ॥ मार्ग दासी बतावती, सुरंगमे उजाले अनुसार तो॥ अर्ध जोजन ते श्राविया, उर्ध्व सिल्लाने करी दासी पर तो॥ नूप कहे इत्ता दिनमें, बाइ मार्ग यो न बतायो यो सैर तो ॥ त्रि०॥६५॥ चेटी कहे न बतावीये, काम अावे यों उपजे जद डर तो॥ के महारी माता जाणती, ते मुज बताइ गइ मर तो ॥ आगे गुफा अध गाउनी, जिमणी नीतने जावजो धर तो ॥ पागल अटवी श्रावसी, धारी चारी निकल्या तज दर तो ॥ त्रि० ॥ ६६ ॥ दासी सिल्ला लगायने, पाछी फिरी दिल करती फिकर तो ॥ाइ सूती निज ठाम ते, नृपती गुफा में करें चरतो॥ शिर फुटे ठोकर लगे, कठे खाडामें पग जावे पड तो ॥ सरपादी दीर्घ जीवडा, ग १ उपरकी. २ गुप्त ३ कोश ४ भूवरो. - Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८) मन तणो शब्द होवे सरसर तो ॥ त्रि०॥ ॥६७॥ किहां पाणी करणारे, नीजी तंतू हुवा तरबतर तो ॥ किहां पांव रपसी पडे, सिर सरीर फुटी रक्त कर तो ॥ इम गुफा बाहिर निकल्या, कतार तिम्रथी दिसे नयंकर तो ॥ बाजे शीतल वायरो, वस्त्र प्राला छे धूजे थरथर तो॥ ॥ त्रि० ॥ ६८ ॥ मार्ग बिकट झाडी दट त्यां, उंची नीची नूमी नही कोइ सम तो ॥ कांटा खूपा बोर जालीया, बंबूल गोखरू केर विषम तो ।। तन लग्या रोमांचित हुवे, अन्धारमें नहीं पडे जरा गम तो॥ किहां अथडावे तरू थकी, मस्तके लागे नीचा जावे नम तो॥ त्रि०॥ ॥ ६९ ॥ किहां जाइ पडे खाडा विषे, उपरा उपरी चारूं एक दम तो ॥ तुर्त उठी चालण लगे, १ जंगल. २ अंधारा. Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९) रखे पकडे कोइ पाइने जम तो ॥ सिंघ चिता मृग वरगडा, श्रृगालसुसल्या लीलडी प्रादी नमतो॥ भयंकर शब्द करतां थकां, रात्रविषे वने रह्या गर्म तो ॥ त्रि० ॥ ७० ॥ वित्तर केइ चेष्टा करे, कितोल करीने रह्या केइ रम तो ॥ तिणथी राणी चालक डरे, श्वेद वहे तन मरावे दम तो॥ रोवण लाग्या बालूडा, नृप कहे नाइ चुप रहो इण ठाम तो ॥ कोइ शब्द अनुसारथी, पकडसी न दीसे छायो तैम तो ॥ त्रि० ॥७१॥ अथवा वनचर नदसी, प्राण जास्ये पाछे करसो किम तो॥ समजाइ चुप राखीया, सरीर चीरणो ते करे ऊम ऊम तो॥ फाटा कपडा घोचा थकी, धूजे सरीर सुकुमाल नरम तो ॥ दोय जोजन इम प्राविया, छोटोसो तिहां आयो छे गाम तो ॥ त्रि०॥ १ फिर. २ भूतादि. ३ अन्धारो. - Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) ।। ७२ ॥ थाक्या घणा पग ना उठे, कॉपडी देखी विसामारे काज तो ॥ तिणमें कोइ दीठे नही, अाइ बेठ्या चारी जिव तिहांज तो ॥ नूषण डावा छुटा धर्या, धरती सयन कर्यों पुत्र राः णी राज तो ।। नुज उसीस्यो शिरतले, सुकुमाल अंगे चूचे ते जागाज तो ॥ त्रि० ॥ ७३ ।। सरीर टींचाणो तेहथी, रक्ततणी पडे छे धाराज तो॥ ऊग २ अग्नी जिम जले, शीतल वायरो रह्यो छे बाज तो॥ तिणथी तेहपे सोजन चडी, जक नही पडे छे दुःखे छे काज तो॥ थाक उजागर जोगथी, चारां तणे लागी छे निंद्राज तो ॥ त्रि० ॥ ७४ ॥ तिहां अशुभ कर्मोदय,चो. र चोरी लाया धन्नादी साज तो॥ पाती करवा कारणें, अाव्या ते तिण कुंपडामाज तो ॥ उंचा देख्या चिलकता, अचर्ज पा लेगया चुपकान Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) तो || खुशी होइ निज घर गया, इतरे उगाया छे दिनराजं तो ॥ त्रि० ॥ ७५ ॥ तिसमे उज्जेणी नगर में, हरीसेण राय हुवा जाग्रत तो ॥ नंगो खड्ग लीयो हाथमें, क्रोध नर्यो आयो जीम घरात तो ॥ उंचो नीचो फिर जोइयो, चार में को कोइ द्रष्टी न यत तो ॥ किहां पतो लायो नही. दास्याने पूछयो ते नाही बतात तो ॥ त्रि० ॥ ७६ ॥ एकही उत्तर सहु तणो, 'खबर नही' सुती निद्रामें रात तो ॥ फिर आयो निज मेहेलमें, नट दोडाइने नृप जोवात तो ॥ किहां पतो लाग्यो नही, तबतो हर्ष हिये न समा त तो ॥ सेहजेइ पापो कट्यो, निज तेज प्रताप जाणी पोमात तो ॥ त्रि ० ॥ ७७ ॥ सब सामंत बुलाइया, मोछेब मांडयो जोइ सुमुहुरत तो ॥ १ सूर्य. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) राज गादीपे बिराजीयो, दुवाइ फेराइ पोतानी तुरत तो ॥ सजन तेहना राजी हुवा, जय २ कार नगरमें करत तो ॥ न्यायवंत दुःख दिल धरे, अरर काइ कियो अकरत तो॥त्रि०॥७॥ तात समा जेष्ट बन्धूने, निर अपराध काडया घर बार तो । केइकहे नारीनो मोलीयो, केई कहे राजको लोन अपार तो ॥ केइ निंद्या कोइ गुणकरे, दुनिया दुरंगी विचित्र प्रकार तो ॥ हरीसेण सुरसुन्दरी मिली, गर्वी कहे कयो पाड्यो पार तो॥ ॥ त्रि० ॥७९॥शाबासी देवापसमें, दासी पण हर्षी मन मकार तो ॥ जोवो त्रिया चरित्रने, सहजमें अनर्थ करे अधार तो ॥ इम जाणी बचो नारीथी, तो सुख पासो शिव श्रेयकार तो ॥ श्रा गे चरित्र जीमजी तणो, ऋषी अमोलिक करे उचार तो॥ त्रि० ॥८॥ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ दुहा ॥ - कर्म करंता सोहला, जोगवतां दुःख देय ॥ बन्धन सम उदय लहे, नोग्याथी ते टलेय ॥१॥ शुन गये अशुनोदय, राय तणां रंक होय ॥ पहले प्रहर सेजे रम्या, छेले नूमी ते सोय ॥२॥ सह कुटुंबे नीमजी, नोगवी जेह विपत ।। कंपित हृदय ते कथु, सुणजो धरी सुमत ॥३॥ ॥ ढाल-सतीने शिरोमण अंजना ॥ यह देशी ॥ निशागई रखी उगीयो, नीम सह कुटुंब जायत थाय तो ॥ दूषण नाजन पेखतां, नही दीगथी मन धस्काय तो ॥ राणी मुर्छा खाइ पडी, अरर दुःख एकदम किम प्राय तो॥ सावध करी राजा कहे, रोवणरी ए वक्त छे नाय तो॥ कर्म तणी कथा सांगलो-ये प्रांकडी।। ८१॥ १ रात. २ सूर्य. ३ डब्बा... - Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) सरीरपर ग्रहणो घणो, सब उतारी बांधो पोटली मांय तो ॥ योही माल खुट छे, रहस्या इथी गुजरान चलाय तो ॥ इम सुण भूषण उतारया, वस्त्र फाडी तस गांठ बंधाय तो ॥ चारों तिहांथी चालीया, दोइ दोनुं पुत्र कडीये चडाय तो ॥ क० ॥ ८२ ॥ गठडी राणी शिरपर धरी, मन माने रस्तें चाल्या जाय तो ॥ सोजाथी पाव उठे नही, वायु अंगने जरा न सुहाय तो ॥ जीणा फाटा वस्त्र पेहरवा, मनुष्य देखी राणी घणी लज्जाय तो || कोमल पगे कंकर चूबे, जस्करे खर्गे चडयो तेज फेलाय तो ॥ क० ॥ ८३ ॥ गे नृप पीछे राणीजी, इम चालता सरीता कंठ आय तो ॥ नृप पेलेपार ऊट गया, कुंवर कहे प्यास लागी छे माय तो || नीचे उतारी कुंवरनें, धन ९ सूर्य. २ आकाश. ३ नदी. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५ ) ग्रंथी मूकी एक ठाय तो ॥ बडीनीत करी कुंवर तिहां, राणीजी लाग्या सुचीरे उपाय तो ॥ क ० ॥ ॥ ८४ ॥ जित्रे उचक्को यायने, ते पोटली लिधी निजर चोराय तो ॥ नागी गया छिप्यो जाडी में, चोर तणे घट दय रहे नाय तो ॥ राणी कुंवर कड्या लिया, पोटली लेवा नीचे कुकाय तो ॥ गठडी निजर या नहीं, घेशत खा पडी तिहां मुरछाय तो ॥ क० ॥ ८५ ॥ केतूसेरा रोवलग्या, नीमसेण सुण पाछा जोय तो || राणी धरणी ढली देखने, अश्चर्य पाया उदासज होय तो ॥ दोडीने या तिहां, द्रव्य गांठडी पेखे नही सोय तो ॥ फिकर हुइ घरकी एड्या, बलूडा उना विल २ रोय तो ॥ क० ॥ ८६ ॥ बोलावे दोइ मावित्रने, उत्तर न देता चक्रांद करे सोय तो || शितल पव१ गांउ २ झाडो. ३ चोर. a Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) न प्रसंगथी, कि अंतर सावध हुया दोय तो ॥ छाती फाटे होयो उमंगे, समजावणहार तिहां नही कोय तो ॥ चारीका कुरले कालजा, देखो कर्म - टंब विगोय तो ॥ क० ॥ ८७ ॥ राजा कहे हवे कम करूं, र पुन्य दिधा सहू खोय तो ॥ पूरो विश्वास थो नाइपें, दुशमण सेते अधिक निक्ल्योय तो । राजपाट छूटा सह, सब सज्जनको पड्यो बिछोय तो || भूषण राते तस्कर हर्यो, इहां पण कोइ दिधो छे दगोय तो ॥ क० ॥ ८८ ॥ गुजरान किम चलावस्युं, कुटंब पालण किम करूं मोय तो ॥ वितं बिन यादर कुण दिये, वस्त्र फाटा देशी कहो कोय तो ॥ मांग्यो जावे नही कि कने, इम नृपनो मन छे दूमणोय तो ॥ मुरछा लहे सावध हुवे, तेह दुःख एक ज्ञानी रह्या जोय तो ॥ क० ॥ १ चोर. २ घन. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) ॥ ८९॥ तिणरा रुदनथी वनमें, खेचरं जूंचर मिलीया छे गम तो ॥ नेत्रथकी पाणी पडे, कोइ कहे महीपर्ने रह्यो थम तो ॥ कुंवर दोइ रुदन थकी, थाकीने पड्या धरणीपर धम तो॥ एक महोतने अंतरे, राजाजीनो ठामें आयो दम तो ॥ क०॥ ॥९० ॥ नेत्र उघाडी जोवे तदा, तीनाने पडया देख्या नूं सम तो ।। मनमें धैर्य लाया तदा, सावध कर्या तीनू दे विश्रम तो॥चारी सरीर लूला हुया पहलाइ प्रकृती ढूंती नरम तो ॥ सहाशे निश्वासां न्हाखता, पागल मन किधी परिभ्रस तो ॥क०॥ ॥९१ ॥ आगे धरे पग पाछे पडे, मनथी उदासी न होवें कम तो॥ नूख लागी बालक मणी, पेटरे माय करे चम २ तो॥ दूध राबडयो किहां रह्यो, छाछ राबडी पण नही जम तो॥ कुमरनो मुख दे१ पक्षी. २ जानवर ( पशु ) ३ समोह ४ नदी बहती अटकी. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८ ) खनें, करुणा वे कांइ करे ते ठम तो ॥ क० ॥ ॥ ९२ ॥ मांग्यो पण जावे नही, चालवा शक्ती नही जरा तमे तो ॥ संध्या समय एक ग्रामपें, बाहिर रह्या तिहां जाय विषम तो ॥ तडफी रयण पूरी करी, पाछली रातथी चाल्या थमथमं तो ॥ दूजो दिन इमही गयो, जोवो विचित्र गति केवी करम तो ॥ क० ॥ ९३ ॥ कुंवर कहे रोवता थका, पीत:जी भूख लागी घणी मोग तो ॥ याकुल व्याकुल होवे जीवडो, बोलणारी शक्ती नही होय तो || यो दुःख सहन होवे नही, उपाय सुखको न दीसे कोय तो ॥ आपका खड्ग से महारा, कटका करो दोन्यारा दोय तो ॥ ६० ॥ ९४ ॥ राय कहे - ये घरो बेटा, वो मोटो शेहर लेवो थे जोय तो ॥ तिणमें जाइ में लावस्यु, जोजन पक्वान्नादी वस्तू १ हुस्यारी. २ टहर ठेहर. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९) ढोय तो। खावजो पेट नरी तुमें, इम धैर्य दे च. लावे सोय तो ॥ वार २ वीसामो लेवे, ठाम २ कुंवर राणी दे रोय तो ॥ क० ॥ ९५ ॥ बहु ससमजावे राजवी, विश्वासी चलावे अागेकी नोय तो ॥ पित्त पडे कंठ शोसी रह्यो, तमाल पावे घरणी ढले सोय तो॥ नूप इम तिम दोडने, तंतूं लावे सरवरथी नजिोय तो ॥ जल छांटी पवने करी, तेथी तीनोही सावध होय तो ॥ क० ॥ ॥ ९६ ॥ इम विपत्ति सहता थकां, दितीप्रतिष्ट कने आया लोय तो ॥ बावड़ी एक दीठी तिहां, चारी बेठा जोवे क्रिडा तोर्य तो ॥ नूप कहे जाऊं में माममें, उदर पोषणको करूं परचोयं तो॥ तुम तीनो बेठा रहो इहां, थोडी देरमें प्रारयूं पाछोय तो ॥ क० ॥ ९७ ॥ इम कही गया नृप - ? उठा. २ चक्कर. ३ कापडो. ४ पाणीकी. ५उपाय. - Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) गाममें, एक वाणिककी देखी दुकान तो ॥ तिहां जाइ बेठा नूपती, वैपार तिणरे चाल्यो असमान तो ॥ थोडी देररे मायनें, खपी गयो घणो माल ने धान तो ॥ लक्ष्मीपत राजी हुया, जाण्यो ए नर छ पुनवान तो॥ क० ॥९८ ॥ कर्म गतीये घेर्यो थको, उदास दीसे छे मुखको नान तो॥ विदेशे फिरवा निकल्या, इम चिंती नूपने पूछे स्थान तो ॥ किहां रहो कांइ जात छे, प्रदेश नमोछो किण कारणान तो॥राय कहे दत्री अ. छं, कर्मसें नटका पेट नरान तो ॥क०॥९९ ॥ सेठ कहे हम घर रहो, राय कहे हम छां चार प्राण तो ॥ सेठ कहे पाछी कही, में पण ऐसो जोतो ठिकान तो॥नलो हये थे सेजे आया, कारण सुणो मुज कर्मनी कहान तो ॥ नाइ नोजाइ म १ घणो. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) हारा, बाठोही हुय काल स्वाधान तो ॥ क० ॥ ॥१००॥ धनी लुगाइ दोनो रह्या, रहवणने छ मोटा मकान तो ॥ चारी सुखे मुज घर रहो, दो रुप्या महीनो पेट नर ान तो ॥ थे रेवजो दुकानपे, तुम नारी करस्ये घर कारखान तो ॥राजा सुण राजी हुवा, मान लीवी सेठजीकी जबान तो॥ क०॥ १०१ ॥ ढाल तरवार तिहां घरी, नूपत शरमी करे उचारतो॥ नूखा छां चारी जीवडा, तीजो दिवस अाज थाय पसार तो॥ सेठजी हर्षीने दिया, मुंगफली फुटाणा गुड प्रहार तो॥ खोलामें ले राजा चल्या, मनमाहे धरता हर्ष अपार तो ॥ क० ॥१०२ ॥ तिनी बैठा तिहां प्रावीया, दूरथी पोटली बताइ घर प्यार तो॥ पहला तनुजने लिखायने, बच्यो दंपती खायो ते वार तो ॥ संपुटे राय पाणी ग्रही, पायो पीयो न Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२ ) यो कालजो गार तो ॥ राणी समजी मन विषे, ए लाया छे बेंची ढाल तरवार तो॥ क०॥१३॥ राणी कहे अाजको नयो, अागे चालसी किस प्रकार तो ।। नृप कहे फिकर मती करो, हूं जमाइ आयो सघलो तार तो ॥ सेठ तणे घर रेवस्यां, आप सदा चारो सुख मकार तो ॥ लेइ दुकाने यावीया, सेठ लाया घर जिहां तस नार तो॥ ॥क० ॥१०४ ॥ सेठाणी नद्रा नामथी, पण छे कुनद्राकी सिरदार तो ।। काली कडायला सारखी, चीनडी दूंधाली अजा स्तनाकार तो॥ लटूरी बो ले खर स्वरसे, करकसा काकी नद्रा नूवाधार तो॥ लाय लंकाकी क्रोधमे, धमक चाल लाज दया नल. गारतो ॥ क० ॥१०५॥तिणने लक्ष्मीपतजी कहे, काम करावा लायो छू नोकर तो ॥ पुनवंत दीसे आदमी, काम कराजे तूं मीठी होकर तो ॥ प्राछो Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने मन लावतो, आहार दीजे नित्यप्रत पेट जर तो॥ दुःख किंचित न दिजीये, इम कही ते गया दुकाने चर तो ॥ क० ॥१०६॥ नद्रा नरी गुमानमें, तूंकारे बोलावे किहां आदर तो ॥ लारी जारी कररी तें, इम करावे काम सारोही घर तो॥ वीसामो दिण लेवा दे नही, नित्य खावा देवे चार नाकर तो॥ ते पण ठंडी अधसीकी, कुण देवे घी दूध साकर तो ॥ क० ॥ १०७॥ लोक देखा वू नाम दूधको, कुलडे घाली देवे खाटी तक्कर तो। सवा प्रहर राते छुट्टी देवे, प्रहर निशांमें उठावे हेला नर तो ॥ बाटो पीसावे बेंचवा, राणी न समजे घट्टी केम फिर तो ॥ फेर्या हाथे छाला हुवा, ते फूटीने रक्त प्रावे कर तो ॥ क० ॥ १०८ ॥ बंध राख्याथी कूका करे, घट्टीपे जमगया लोहीना १ रोटा. २ छाछ. ३ रात्र. ४ पक्कार. ५ पुक्कार. ( हेला ) - Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) थर तो ॥ दिन उग्या उनी रही, राणी पास :डावे सहु घर तो ॥ मोटी घाघर दे पाणी नणी, गांव बाहिर दूर जे सरवर तो ॥ घडो नयाँ शिर उपरे, लचके गरदन घूजे थर २ तो॥ क० ॥ ॥१०९॥घडोपडे धरणी पडे, पाणी ठूले बरतन जावे फूट तो ॥ रुदन करे राणी पायने, सेगणी गाली देवे छे छूट तो ॥ बालक जरा चूके काम तो तस पापणी न्हाखे छे कूट तो ॥ बर्तन सर्व मंजावइ, राणीथी पूरा मंजे न स्फूट तो॥क० ॥ ॥ ११० ॥ तिकण थालकी कोरथी, हाथ चिराय तस बांधे. चीरूंट तो काम जरा बिगड्या थका, गाल्या बोली कालजो लेवे चूट तो॥ राणी समता सेवन करे, किणही तरेह ये दिन जावे खूट तो। बांद्या जो इहां नोगवां, थोडा काले कर्म १ स्वच्छ. २ फाटा कपडा. ( चिंदी ) Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) जासी टूट तो॥ क० ॥१११॥ सेठ नेजे उगाइ रायने, जोजन केइ जावे नित्य ऊठ तो॥ मांगता पूरो श्रावे नही, बचन न बोले कोइथी तूट तो॥ मीठा बोल्या कुण देवे, लडता शरमाय तिणथी दे पूठ तो ॥ वीती बात कहे सेठने, न समजे बोलणो किम कूट तो॥ क० ॥ ११२॥ सेठ सुणी क्रोधातुर हूवे, अरे बोलतां न आवे हीया फूट तो॥ गाल्या देवे अलखामणी, बोले नही सेठजी जावे रूठ तो ॥ करजोडी नमे नरपति, नेत्र नीर ला कहे सरण ठूट तो ॥ निनावो मुज कृपा करी, इण परे दंपती दिन जावे खूट तो॥क०॥११३॥ एक दिन नद्रा बेठी गौखमें, सेठजी उना चोकरे माय तो॥ हाथ नर्या कु पुद्गले, राणीने कहे मारा हाथ धोवाय तो ॥ राणी लज्जाथी धातू घटे, पा १ निवृद्धी. - Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णी ले कूडे हाथपे आय तो॥ तदा पवनना जो मथीं, चूंघट उडयो सेठ द्रष्ट लगाय तो ॥क० ॥ ॥ ११४ ।। सेठाणी देखी प्रजली, चिंतवे सेठजी इणथी मोपाय तो।। म्हारो तिरस्कार करे रखे, इण ने घालसी घररे माय तो ॥ कोइ उपाव रची करी, घरथी इणने देवू निकलाय तो॥ ए फंद कट सी जिण दिने, तबहीज म्हारो जीव सुख पाय तो ॥ क० ।। ११५ ॥ कुठो बाल चढाववा, पीयर मेले वस्तु चोराय तो ॥ घी गुड चून दालादिक, वस्त्र पात्र देवेछे पहोंचाय तो नाम लेवे राणी तणो, चोरीने बेटा घणीने खवाय तो ॥ में एकली एतो घणा, चोकस राखु किण २ ठाय तो ॥क. ॥ ११६ ॥ खाली ठाम मुख आगे धरे, सेठजी देखी अश्चर्य पाय तो॥ बरतन दुकाने ले गया, सेठ कहे हूं तो लेगयो नाय तो ॥ इण चो Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) री पती हाथथी, बजार माहे दीधा छे चाय तो॥ इणने निकालो घर थकी, जो मुजने घर राखी चाय तो॥ क. ॥ ११७ ॥ सेठ कहे ये ऐसा न ही, कूटो नही दीजे माथे बाल तो ॥ वक्त पड्या बाया इहां, इण तणी कीजे प्रतिपालतो ॥ नद्रा सुणी क्रोधे नरी, श्राख्या तक्षिण कधिी लाल तो ॥ अरडाइ बोलन लगी, फूगाइ मुंडाने दोनो गाल तो ॥ क० ॥ ११८ ॥ हां में जाणी मन तणी, तिणने थे लेसो घरमें घाल तो ॥ चिन्ह देखी में जाणथी, या अवदिशा घर अाइ छिनाल तो॥ तुम पण तेहथी मोहीया, न बोली इत्ता दिन देखी चाल तो ॥ हाक सुणी रस्ता विषे, थट्ट जम्यो लोकको तत्काल तो ॥ ॥क० ॥ ११९ ॥ तर्जनिये दाखे राणी नणी, राणीने अंगे उठे काल तो॥ शरमाइ बोले नही, Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४८ ) धरती फटे तो माये नरूं फाल तो॥ लोक किस्यो मन जाणसी, ये होसी ऐसा कर्म चंडाल तो ॥राय राणीना नेत्रथी, प्रांचं पडे चिंते कब अावे काल तो॥ क० ॥१२० ॥ सेठ समजावे नारीने, तिम २ अधिक होवे विक्राल तो॥ घरमे लेवे खेचने, धको देइ सेठने दीया डाल तो ॥ लोक सहू हांसी करे, हुरर राट्यो देइ कूटे छे ताल तो॥ सेठ शरमी घरमे गयो, बेठो हाथ देइने कपाल तो ॥ क० ॥ ॥१२१॥ नद्रा रीसे बलती थकी, चारीने कहे निकलो घरथी अब तो॥सेठने सुसरा साला मिली, कहे ताणी निकलो क्योंनी सब तो॥सेठ कहे जोवो शाहाजी, ये पुनवंत आया कम दब तो।। सती सतवंत दोइ अछे अन वस्त्रमें नहीं मुंगा नब तो।। क०॥ १२२ ॥ कंकाली नद्रा कहे, हां में जाणू डूं यारो सबब तो ॥ रंडा घालणी घर विषे, वचन Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४९ ) न खमाणो रायथी जब तो ॥ उठी चल्या चारी तदा, सेठ गुप्ते थयो लारे तब तो॥ ढोर बांधणका नो रा विषे,कूपडीमें बेठाया तस गब तोक०॥ १२३॥ तिहां ते चारी रह्या, चिंता माहे डुब्या अब थब तो ॥ सेठजी दया लायने. जरण पोषणनी जमावे ढब तो ॥ घरे अाइ घडो लियो, सेठाणी पत्थर मार्यो ऊन तो ॥ थाली अाटो दाल ले चल्या, दी थापकी वीखेरी दी सब तो॥क० ॥१२४॥ तिणरा कपडारी पोटली, लेइ शिघ्र चाल्या ते छब तो ॥ नद्रा पीछे अायने, बलती लकडी लगाइ णन तो ॥ सेठ करे गरमी लगी, न्हाख दीवी मन हुइ अचंब तो ॥ बेठ्या दुकाने प्रायने, चिंता करे ऐसी हुइ नहीं कब तो ॥ क० ॥ १२५ ॥ नीमजी आया दुकानपे, सेठथी मांगे सराजाम तो ॥ दुकानमें थी देवा तणो, मन नही होवे नि Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५० ) काला दाम तो || पाछे उत्तर आप्पो नही, तब राजा कहे सेठी ग्राम तो ॥ चडी नोकरी मुजने देवो, जिथी चला टक्यो काम तो ॥ क० ॥ ॥ १२६ ॥ दो रुपया दिया सेठजी, घर विखेरो लीयो सराजाम तो || लेइ याया बाडा विषे, रा णी निपाइ रसोइ ताम तो ॥ इम चारूं इहां रहे, देखा कर्मगतीना काम तो ॥ तीजो अधिकार कर्म तणो, रिख अमोल कह्यो इ ठाम तो ॥६०॥१२७॥ ॥ दुहा ! जे जे दिशा जब प्रगटे, बधे तेहनो जोश ॥ सकर्मी ते अनुभवे, न दो किलरो दोश ॥१॥ कुबेर चाले जे चल्या, ते कृपण न थाय ॥ जे अटूट ध न वावर्यो, दो रुपिये सी थाय ॥ २ ॥ ढाल - सतीने सिरोमण अंजणा || यह देशी ॥ जे सामान लाया हूंता, ते खूट गयो थोडा काले Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५१ ) तमाम तो ॥ लक्ष्मीपतने राजा कहे, मुज नोकरीमें बधारो दाम तो || दो रुप्याथी पूरा न पडे, पहेला लियो ते खुट्यो सराजाम तो ॥ खावाने कु छ रह्यो नही, इत्ती कृपा जूं करो स्वाम तो जो जो कर्मणि ॥ कडी ॥१२८॥ लोजी वाण्यानी जातडी, दाम न देवे जो काटे चाम तो || दो रुप्यासे ज्यादा न देउ, ज्यादा चहीयेतो जोवो अन्य ठाम तो ॥ नृपत तब चुपका रह्या, मनरी कांइ पूगी नही हाम तो ॥ चिंतातुर वेठा तिहां, एक पुरुष पासे यायो ताम तो ॥ जो० ॥ १२९ ॥ चिंतानो कारण पूछयो, वीतक बात कही तस नाम तो ॥ ते कहे फिकर मत करो, कहु उपाय पुरपयठाणा' गाम तो ॥ तिहां जाइ नोकरी करो, बत्तीस रुपया मास देशी जो काम तो ॥ वस्त्र जागा मिलते वली, पयदल फोजमें पासो ( Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५२ ) " आराम तो ॥ जो० ॥ १३० ॥ राय जमाइ दू| देवे, षट मास अंतरे निकले दोय तो ॥ एक तो हाथे लागसी, इम सुण नीम हृदय खुश होय तो ॥ कहे सुशीलाने यने, सेठ नोकरी बधावे नही कोय तो ॥ खरच न पूरे आपणो, एक उपाय सुणाव्यो छे मोय तो ॥ जो० ॥ १३१ ॥ ह्याथी दुवादश जोजने, पूर पठाणे नोकर रखे जोय तो ॥ में जाइ नोकरी करी, एक मासमें आसूं पाछोय तो ॥ थे इहां रही पुत्र पालजो, इम सुण राणीजी दीघो छे रोय तो ॥ प्राणेश्वर इल दुःखमें, चारी जामें न पाडो विछोय तो ॥ जो ० ॥ १३२ ॥ राय कहे लस्कर विषे, महीलाने रहवानो अवसर नोय तो ॥ साथ रख्या जावे नही, एक महीनामें थांरो कांइ खोय तो ॥ थे निनावजो कुंवरने, कुंवर रायने आइ कूम्या दोय ॥ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) तो ॥ दुःखमें क्यों छोडो तातजी, जो छोडसो तो म्हाने मरणोय तो॥जो० ॥ १३३ ॥ हमने मारी पधारजो, राजा छातीए लगाया सोय तो ।। विश्वासी कहे जावू नही, इम बाता करतां रातडी होय तो॥ कुंवर दोइ सोइ गया, राजा राणी समजाइ चोय तो॥ ढाल अस्सी ले नीकल्या, राणी निश्वास न्हाखी रही जोय तो ॥ जो० ॥ १३४ ॥ रायजी आगे चालीया, योग्य पुष्प फल पात्रादी खाय तो॥ धर्मशाळा देवल विषे, रात रही धर कुच चल्या जाय तो। चार दिवसन अंतरे, पुर पयठाणे पहोचा ते अाय तो॥ बृष पुरुषथी पूछीयो, नूप जमाइ मिलबा उपाय तो॥ जो ॥ १३५ ॥ ते कहे कल क्यानी अावीया, राय जमाइ निकल्याथा जाय तो॥ हवे षट मासने अंतरे, राजा निकलसी सवारी सजाय Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो॥ इम सुणीने राजवी, मुरजाणो कर्मे हाथ लगाय तो ॥ उंडो निश्वास न्हाखीयो, बेठा तिहां शक्ती रहित थाय तो ॥ जो०॥ १३६ ॥ राय मोदी कहे तिण नणी, इत्ती फिकर क्यों मनमें लाय तो॥छ महीना कल जावसी, तुमखो म्हारा घररे माय तो॥ काम करो दुकानको, तन वस्त्र अन्न पेट भर खाय तो ॥ फिर मिलजो तुम रायने, रा खसे तुमने निश्चय राय तो॥ जो० ॥ १३७ ।। नीम रह्या तिणने घरे, काम करे कया प्रमाण चाय तो ॥ राणी पुतरकी चिंता घणी, इम करतां षट मास वीत्याय तो ॥ महीप सवारी नीक. ली, तिणथी मिल्याछे नीमजी जाय तो ॥ मुजरो कर उन्ना रह्या, नृप पुछे किण स्थान रहाय तो ॥ जो० ॥ १३८ ॥ दितीप्रतिष्टथी श्रावीयो, इम नीमसेणजी कियो उच्चार तो।। नोकर Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) तिहां क्योंनी रह्या, नीम कहे न मिल्यो नृप दर बार तो ॥ अरिजय चिंते ए खोडलो, कहे मुजने अब्बी नही दरकार तो ॥ सुण उदास हूया नी मजी, अाया मोदी दुकान मकार तो॥ जो० ॥ ॥ १३९ ॥ मोदी उदासमें देखने, पुछण लागा तिणने समाचार तो॥ नीम कहे राख्यो नही, कि स्यो जोयो म्हारो कर्म प्रकार तो ॥ मोदी कहे फि कर तजो, छे मास ओर रहो धीर धार तो ॥राय जमाइ निकलसी, चहाय धणी रखसे धर प्यार तो॥ जो० ॥ १४० ॥ नीमजी रह्या फिरही तिहां, छे मास वीती गया तिणवार तो ॥ जमाइजी तब निकल्या, नीमजी जाइ कियो नमस्कार तो॥ आया क्याथी ? दितीप्रतिष्टथी, दिन कित्ता हूया ? थया मास बार तो॥ राजाने मिल्या? हां मिल्यो, किम न राख्या ? जाणू हूं न लगार तो Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६ ) पल मोदी पू ॥ जो० ॥ १४१ ॥ जमाइ चिंते मन विषे, च्छनी ए दिसे छे छार तो ॥ कहे म्हारे हिवे न खपो, इम सु प थयो निराधार तो ।। अरे म्हारा कर्म किसा फिर्या, फिरतां छूटी स्यूं ती धार तो ॥ यया मोदी दुकानपे, बेठा कर पग हुवा ठंडा गार तो ॥ जो० ॥ १४२ ॥ काइ हुयो, नृप कहे मुज राख्यो नही जेय तो ॥ ब में जाउं म्हारे घरे, ढाल तरवार म्हारी मुज देय तो ॥ मोदी कहे मांगे किस्यो, रोटी खाइ ति री उडावे खेय तो ॥ तुज शस्त्र हूँ जाणू नहीं, इम सुण राय नेणा नीर वेय तो ॥ जो० ॥ ॥ १४३ ॥ सेठजी मुजने मत ठगो, महा दुःखीयारो गरीब हूं मेय तो ॥ फक्त आधार छे तेहनो, निर्दय होइ खोसी मत लेय तो || मोदी कहे जा तूं परो, सत्र धिक्कारन लग्या नृप नेय तो ॥ राय Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) निरास होइ चल्यो, देख्या वाणिक लोनी केवा छेय तो ॥ जो० ॥ १४४ ॥ राते आये किती प्रतीष्टे, उंडो विचार करे मनमेय तो ॥ किम जाउं कुटंब कने, तिणने अासा छे लासी धन नेय तो ॥ सहू बाते हूं नागो नयो, पूछस्ये मुज काइलाया थेय तो ॥ पास हतो तेही खो दियो, कर्मा इ नवा मुज घरेय तो ॥जो० ॥१४५ ॥ पछता ता आया बाडामें, कें.पडी बारे उन्ना चुपकेय तो ॥ छिद्रमंथी जोवे मायने, घास वीछरीयो छे पुत्रोने नीचेय तो ॥ सूता दोनू टाबर्या, ढांक्या तस घाघरे प्रोडणेय तो ॥ राणी अंग संकोचने, नगन बेठी थर २ कंपेय तो ॥ जो० ॥ १४६ ॥ देवसेण कहे मां नणी, धायजी म्हने घणी लागे छे ठंड तो॥ कालजो कम्पे महारो, वायरो शीतल रह्यो छे मंड तो ॥ अंग सहू ठंडो हुयो, प्रो Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) डावो थां म्हने वस्त्र खंड तो ॥ सुशीला कहे नाइ सुणो, काल पासी तुज पिता लेइ नं. तो । ॥ जो० ॥ १४७ ॥ गादी तकीया दुशाला सिरे, लावसे उम्दा रजाइ प्रचंड तो ॥ कोट कबजो कु. डतो अंग्गी, लबादो नारी रुइमें मंड तो ॥ पाजामो धोती रेशम तणी, टोपी मंडिल जरी मय ऊंड तो ॥ पेरी फिरजो आनंदमें, ठंडनो सब उतर जासी घमंड तो ॥ जो० ॥ १४८ ॥ थे उघाडा बठा मातजी, थाने पण लगती होसी ठंड तो ॥ राणी कहे कांइ करूं, लेंगो लूगडो तुम तन दियो मंड तो ॥ निवास तिणमें छे नही, ठंड किम छोडे तुज मुज पिंड तो ॥ मुज सारू रायजी लावसी, घाघरो प्रोडणी चोलीनो खंड तो ॥ जो० ॥ ॥ १४९ ॥ मुज तुज ठंड तब जावसी, विश्वास १ बरतन. २ जाडी. Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५९ ) रूप राखो दिल दंड तो ॥ रोयांथी बच्छ यांख्या दुःखे, औषध नही पास संगो नही फंडे तो ॥ कांई करूं म्हारो वस नही, इम समजाइ राख्यो तस बंडे तो ॥ ते अंग संकोच चुप रह्यो, इतरे केतू रह्यो विहँडै तो ॥ जो० ॥ १५० ॥ धायजी भूख लागी घणी, पेटमें नही म्हारे जरासो अन्न तो ॥ जीव घबरावे महारो, कुल व्या कुल होवे है मन्न तो ॥ चेन पडे नही दिए नरे, घर में नहीं माइ दिसे छे कन्न तो ॥ इम कही रोवण लग्यो, राणी समजावे उगसी - ब्बी दिन्न तो ॥ जो० ॥ १५१ ॥ बेटा उनी दाल लावस्यूं, घृत सहित हूं लास्यू उदन्नं तो ॥ पेट जरीने जीम जो, फलाणी मुज कह्यो थो कथन्नं तो ॥ धायजी थें काल केता था, बेटा तुजने जिमावस्यूं १ पइसा २ मस्ती ३ चिफ ४ चावळ. ५ बात. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पन्न तो॥ मने काइ लाइ दियो नही, राणी कहे करूंकिस्यो जतन तो॥जो०॥ १५२ ॥ काम करायो म्हारे कने, मांग्यो तो कांइ दियो नही धन्न तो॥ कयो में काले देवस्यूं, दिन उगा जाइ लास्यूं तदिन तो। तुम पिता काले श्रावस्ये, मेवा मिठाइ लासे पक्कन्न तो ॥ लाडू पेडा जलेबी सेवा, कलाकंद गुपचुपपेठा मक्खन्न तो॥जो०॥ ॥ १५३ ॥ मालपूवा दिर राबडयो, हलवो लाफसी तंबोल चूरन्न तो॥ पेट नरीने जिमावस्यु, सरस माल कर पेट पूरन्न तो ॥ मुख सोदन करजो बली, तेहथी होसी अन्न पचन्न तो॥ अबी रात पूरी होवसी, इम सुण कुंवर धरी धिरपन्न तो ॥जो० ॥ १५४ ॥ दोइ कुंवरने समजावीया, राणी नूख ठंडथी घबराय तो॥अांखे यात्रु तड २ पडे, टंडयी अंग थर २ थरर्राय तो ॥ जेष्ट तनुज Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) कहे मातजी, तूं रोवे म्हाने राख्या समजाय तो॥ तुम जो इम करवा लग्या, तो म्हाको जीव स्थिर किम रहाय तो ।। जो० ॥ १५५ ॥राणी रोवती धीरज धरी, पाछो उत्तर दे इण परे वाय तो ॥ मुजने अाधार किणरो नही, थारा पिताजीनो थो मन मांय तो॥ वे दुःखसे घबरायने, मुजने मीठे बचन समजाय तो॥ एक मासको कह गया, ति. णने गयाने बारे मास थाय तो॥जो०॥१५६॥ रुप्या पण ज्या नहीं, कह्यो थो महीनामें देस्यूं पहोंचाय तो॥ समाचार सुण्या नही, इम निरदय किम निकल्या राय तो ॥ ऐसा में जाणती नहीं, नहीतो पल्लो धर देती बेठाय तो॥ हवे कब दर्शन होवसी, वे किणतरे होसी सुख दुःख माय तो ॥ जो० ॥ १५७ ॥ परमेश्वर वांने सुखी रखो, सुखी थया बापांने लेसी बुलाय तो॥ ए आसा Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) इष्ट देव पूरसी, येही म्हारा मनकी इछाय तो ।। देवसेण कहे होसी इसो, तब माजी आपाने सुख पाय तो॥ इम केइ बातां करी, आपसमें रात देवे खुटाय तो। जो० ॥ १५८ ॥ या बात सुणी कु. टंब तणी, हियो फाठो राजाजीनो ते वार तो ॥ किम जाउं में इण कने, म्हारेकने नहीं किस्यो श्राधार तो॥ये जीवे म्हारी श्रासथी, देवाने मुज पासे नहीं लगार तो॥ धिक्क २ म्हारा कर्मने, अहो २ महारी दिशा ये किरतार तो॥ जो० ॥ १५९ ॥ लाखांने प्रतीपालतो, हजारांरहेता हुकम मजार तो॥ हिवे म्हारो कुटंब पले नही, तीन जणा कैला दिसे लाचार तो॥ निख्यारी एहवा दुःखी नही, सबथी ज्यादा दुखीया हम चार तो॥अन्न विना टूटे यांतडी, वस्त्र रहित धूजे निराधार तो॥जो०॥१६०॥ दीन बचन बोली रह्या, तडफडे पुत्र दोन पड्या Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चार तो॥ समजावण वालो को नही, हा हा गती केवी ये दुःखकार तो ॥ सुखी होवाने हूं खपू, तिम २ दुःख आवेछे अपार तो॥ इम जो सामे उनो रहु, घस्की प्राण छोडे ये इणवार तो ॥ जो० ॥ १६१ ॥ स्वपनामें नही जाणतो, तेहवो टूटी पडयो सिर पहाड तो ॥ इण जितबथी मरणो नलो, चल्या तिहांथी करी निरधार तो ॥ चौधाराांश्रु बर्षता, हियडो धैर्य धर न लगार तो॥ मनमाहे कूरे घणा, शिध्र पाया ते ग्रामने बार तो ॥ जो० ॥ १६२ ॥ वडना तरुतले भावीया, सिर पगडी बांधी तस डार तो ॥ निरासे निश्वाशा न्हाखने, सिद्ध साधूने करी नमस्कार तो॥ चार सरणा चितमें धर्या, निशल्प इम करे छे उचार तो ॥ खमाउं सब जीवने, त्रिकरण शुद्ध वैर ...१ घापऊपर Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (६४) नहीं मन मकार तो ॥ जो० ॥ १६३ ॥ में अ. पराधी छु सर्वको, निश्चयथी बदलो देणहार तो।। अनुग्रह कर माफी करो, मुज सरिखा रांकपर मेहेर धार तो॥ महारा बांद्या में नोगव्या, दोष न इणमें किणरो लंगार तो ॥ व्रतमें जाण अजाणनें, जे कोइ लाग्यो होवे अतीचारतो॥जो० ॥१६४॥ मुजने लद अठारही, सहश्र चौबीस एकसो बीस वार तो ॥ मिच्छामी दुकडं होवजो, इम कही प. रमेष्टी नाम उच्चार तो ॥ नेत्र नीर वर्षावता, गळा माहे ते फांसो घार तो ॥ लटकण लग्यो ते अव. सरे, थोडा दूर उतर्या साहूकार तो॥जो०॥१६५॥ शीत निवारण कारणे, तिहां करायोतापप्रचार तो॥ उद्योत हुयो दशों दिशा, धनदत्त जोवे छे दृष्ट पसार तो ॥ थोडी दूरने अंतरे, लटकंतो देख्यो फांसी फमनार तो॥ अश्चर्य अती पायो मने, किण का Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६५ ) रण ये कुल छे मरनार तो ॥ जो० ॥ १६६ ॥ करुणा जाव मन लायने, दोडी या तिए कने तत्काल तो ॥ कटावी कहाढी करे थकी, ते फांसीनो किनो निकाल तो ॥ मधुर बचने संतोषी - यो, विश्वासीने मिलाइ छे तोल तो ॥ अति दुल्लन नर देह मिली, कि कारण एथी करे टाल तो ॥ जो० ॥ १६७ ॥ नृपती वीति वारता, संप मा किया योग्य हाल तो || सेठ कहे इम मत करो, सहास राखो धैर्यनी धर ढाल तो ॥ सहास श्रीरामजी, सीता पाइ करी अँरीका कू· हाल तो ॥ नल दमयंतीने मिल्या, गयो थको पाछो मिल्यो थाल तो ॥ जो० ॥ १६८ ॥ हरिश्चंद्र बेंच्या पुत्र नारने, सहासथी टल्यो दुःख विक्राल तो || पांडव चाकर रह्या परघरे, तेरे बर्षे १ हाथसे. २ हाथ ३ वैरीका. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६६ ) मिल्यो पाछो माल तो॥ ब्रह्मदत्त वन परघर वस्या, माताए किधा कर्म चंडाल तो ॥ दुःख मिट्या सु. खीया थया, इत्यादी बडा २ नूपाल तो॥ जो०॥ ॥ १६९ ॥ दुःख सुख ढलती छांयडी, प्रायने जाय येही एनी चाल तो ॥ जैसा कर्म जीव बांधीया, तैसाही नोगवे छे निश्चील तो ॥ जुगत्या बिन छु. टको नही, इणनवे अथवा नव पराल तो ॥ तेहनो फिकर नहीं किजीये, समताथी शिघ्र टूटे कर्म जाल तो ॥ जो० ॥ १७० ॥ महारे साथ चालीये, धन्नापन्नाने देश हम जात तो॥ तिहां जवेरनी खाणी छे, घणा किंमतको निकले जवारात तो ॥ में धन देवस्यूं तुम नणी, अच्छी अ. वैनी देखीने खोदात तो ॥नशीब प्रमाणे निकलसी, इम सुणी नीमजी हरषात तो॥जो०॥१७१॥ १ निश्चय. २ परभवं. ३ पृथ्वी. - Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) धीरज लाइ मन विषे, चाल्या धनदत्त सेठ संगात तो ॥ आयूबल पुन्न जोगथी, नीमजीनी टली मोटी ए घात तो ॥ सुख दुःख कर्म प्रमाणथी, ते हे चरित्र भागे वरणात तो ॥ अमोलिक रिख क हे सांगली, कर्म बन्धनथी डरीये भ्रात तो॥ ॥जो० ॥ १७२ ॥ || दुहा ॥ अशुन कर्म निष्टुर घणा, नुक्त्याही छोडे लार ॥ सुशीला शिशुते कोपीमें, दुःखथी करे गुजार ॥१॥ नद्रा अावी एकदा, राणी कुंवर तिहां देख ॥ गाली वदे अलखामणी, प्रजली क्रोधे विशेख ॥२॥ कूटी काढया घरथकी, दी कूपडीमें भाग ॥ वस्त्र मांडा सहु बल्या, तीनी गया तब नाग ॥ ३ ॥ जाग न दे कोइ ग्राममें, भाया ग्राम कोट पास॥ टूटा साकट ने तले, बठा मानी घर तास ॥ ४॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६८) काम करी कुंनारनो, मृतिक बरतन प्राय ॥ पीसी पोइ पाणी नरी, सूको बासी अन्न लाय॥५॥ पहला धपाइ कुमरने, बधे ते खावे आप ॥ विद्रु पा वदन नया, सही नूख शीत ताप ॥६॥ महा दुःखमें काल निर्गमें, धरे रायनो ध्यान ॥ मायडी पाले पुत्रने, हिवे नीमजीनो बयान ॥७॥ ढाल-सतीने सिरोमणी अंजणा॥ ए देशी॥ धनदत्त सारथवाह संग, धैर्यधर नीमजी चल्या जात तो ॥ उत्तम गुण देखी रायना, साथना सहू जणा प्रेम जणात तो ॥ पाया धन्नापन्ना शेहरमें, योग जागा जोइ सह उतरात तो ॥ उधारो धन्न दीयो नीमने, पांती प्रमाणे जमीन बेंचात तो॥ जो० ॥ १७३ ॥ पारक्षक परिक्षा कर दीवी, उत्तम जागा राय खोदात तो॥ शिला पट निकल्या तिहां, कारीगर पास तेह चिरात तो॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६९) कौशल्यता द्रव्यानु जोगे, उत्तम जात निकल्यो जवेरात तो ॥ मशालाथी ते शुद्ध किया, नग ढग राय ग्रहीकर हात तो ॥ जो०॥ १७४ ॥धनदत्त पास भावीया, मोल तिणरो नव लाख बतात तो ॥ अब्बी सोनैया लीजीये, रायना चितमें वैम उनरात तो ॥ नाणो लिया चोर जो हरे, हुंडी लिया दिवालो निकल जात तो॥ युक्ती करी साथ नग रखें, अाखिर इम निश्चयपर बात तो ॥ जो० ॥ १७५ ॥ थोडा नग बेंची करी, सेठजी को सहु कर्ज चुकात तो ॥ कर २ कंथा गोदडी, खंडो खंड वस्त्रनी बणात तो ॥ पट २ अंतरे नग धरी, मजबूत चौगर्द टांका लगात तो ॥ गुडनो पाणी छांटीयो, मांखी नण नणे कोइ पास न आत तो ॥ जो० ॥ १७६ ॥ लंगोटी लगाइने, जेष्टिक तुम्बी ग्रही कर माय तो ॥ लंबो टीको Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) माले कियो, कर माला-गोदडी सिरठाय तो॥इम अक्कले युक्ती सजी, मंगत रूपे नूप चल्या जाय तो । ठग तस्कर लागे नही, धनको किणने वैम पडे नाय तो॥ जो० ॥ १७७ ॥ उत्तम वस्त्रनी पोटली, गुप्त रखी छे वक्ते कामे आय तो ॥ लुख तुछ अहार नहाण करी, शिघ्रगती भीमजी चाल्या जाय तो ॥ कितिप्रतिष्ट कने अावीया, वि. चार उपनो मनरे माय तो॥ोलखे मुज इण ग्राममा, मंगत रुपे किम जायो जाय तो ॥ जोक ।। १७८ ॥ ए रूप राणी कंवर लखी,रखे घस्का. इ प्राण तजाय तो ॥ स्नान करी वस्त्र सजी, फिर जाउं सुखे ग्रामरे मांय तो ॥ तलावनें काठे गया, कथा तुम्बी रखी एक ठाय तो ॥ न्हावा पेठा पाणीमें, एतलें अशुन कर्म प्रगटाय तो !! जो ॥ १ गादडी. Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ १७९ ॥ मरकंट एक बायो तिहां, गोदडी ले बेठो तरू डाल जाय तो ॥ न्हाइ अाया नीमजी, गोदडी जोता नही देखाय तो ॥ मुरछाइ धरणी पड्या, जलबिन मीन परे तडफडाय तो ॥ विणंतरे सावध हूइ, जोवे चारूं तर्फ द्रष्ट लगाय तो ॥ जो० ॥ १८० ॥ मानवी कोइ दीसे नही, ते अलोप होगइ किण जाग तो ॥ चिंतवत उंचा जोइयो, कंपी कर कंथा देखी छे थाग तो ॥ फुटाणा खावा धर्या, मधुर वयणे बुलावे ते खाग तो॥ ते नीचे उतरे नही, तब नृप चडवा लाग्यो वृदा ग तो ॥ जो० ॥ १८१॥ बंदर गयो बीजा झाड पे, नपती तिण पाछल करी लाग तो ॥ देखत २ माकैडो, गिरी काडीमें दूरे गयो नाग तो ॥ पतो न पायो राजवी, नृप तिहाइ रहगया गाग १ "बंदर. २ मच्छी ३ मूंजचिनें. Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) तो ॥ पश्चाताप व्याप्यो अती, अहो २ म्हारा कर्मका दाग तो ॥ जो० ॥ १८२ ॥ मेनत सहू निष्फल हुइ, हाथे आयो गयो धन इण जाग तो ॥ किस्यो अडयोथो न्हाया बिना, एसोही क्योंनी गयो ग्राम माग तो ॥ जबर अंतराय में दीवी, जिम चाहूं तिम दुःख पावे आग तो ॥ जीवामें नफो नहीं, ये दुःखकी न सहवावे छाग तो॥ ॥ जो० ॥ १८३॥ तिणही बड तले भावीया, प गडीनी फांसी दीवी छे टांग तो ॥ घाल गले लटकण लग्या, इतरे तिहां तस आयुबल नाग तो ॥ सिद्ध पुरुष श्राइ नीकल्यो, मरतो नर जोइ दो डयो ऊडाग तो ॥ अरर किस्यो करे मानवी, फां सी तेहनी तोडी न्हाखी तडांग तो ॥ ॥जो०॥१८४ ॥ क्यों मरता क्या तुज हुवा, राय सुणायो बीत्यो विरतंत तो ॥ सिद्ध कहे मरणा Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) नही, सुख दुःख तो नुक्त्याही छुटंत तो ॥ संपत सहु छ कारमी, पुन्यथी मिले पापथी वीछडंत तो॥ मूर्ख जन चिंता करे, मरनेसे कुछ दुःख न ढलंत तो॥ जो०॥ १८५॥ अब मेरे संग चाली ये, धन्न दिलावू तुजने अखुटंत तो ॥ फिर दुःख कुछ रहगा नही, इम सुण नृपती संग चलंत तो॥ तुम्बा बडा चार संग लिया, दोय तुम्बा माहे तेल नरंत तो ॥ मोठा पहाड पास श्रावीया, मशा ल कर वन्हीथी प्रजालंत तो ॥ जो०॥ १८६ ॥ गिरी किन्नरी में पेसीया, अागे चाल्या अाइ जडी जल झरंत तो ॥ दो तुम्बा तेहथी नर्या, मंत्रादिक करी साथे Jहत तो ॥ रस लेइ पाछा फीर्या, गिरी बारे सुखे २ श्रावंत तो॥ गुण तिण रस सिद्धी तणा, सिद्ध पुरुष नूपने बतावंत तो ॥जो०॥१८७॥ अग्नि. २ गुफा ३ लिया. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४ ) सोमण लोवो उनो करी, एक बिन्दू रस तिगमें डालंत तो॥ सर्व सुवर्ण उत्तम हवे, नीमजी सुणी दिल अती हर्षत तो॥ाया दितीप्रतिष्ट कने, सिद्ध पुरुषनो मन बदलंत तो॥ यो धन इणने कि म देउं, इम चिंतवी नूपतसे बोलंत तो ॥ जो० ॥ ॥१८८ ॥ नाइ तुज ग्राम प्रावीया, माल लेइ तु जतूं घर जाय तो॥ फिर मिलाप कब होयगा, गांममें जाइ पक्कान ले अाय तो॥ खावां नेलां आपां बेसने, रुप्यो दियो जल्दी तुम लाय तो ॥ राजा नद्रिक नावमें, तुम्बा तिहां रख चाल्यो उमाय तो ॥ जो० ॥१८९॥ शेहर माहे राजा गया, सिद्ध पीछेसें तुंबा ते उठाय तो॥ उजड रस्ते कट गयो, लोन थकी नर कृतघ्न थाय तो॥राय मीठाइ लेइ फिर्या, सिद्ध बेठोथो आयो तिण ठाय तो॥ तुम्बा जोगी दीठा नहीं, नूपने धस्को पडयो मन Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) माय तो॥ जो० ॥१९०॥ चारू कानी जोइया, पता न लाग्यो अतीही पस्ताय तो ॥ धिक्क २ मुज जीतब नणी, में सुख नणी किया नाना उपाय तो ॥ ते दुःखदाता सहू नया, मेहनत निर्फल हो मिटे औडाय तो ॥ कर्म निकाचित मुज बंध्या, अंत्राय दी किना बीछोवाय तो॥ जो०॥ १९१ ॥ पाणी सोस्या सरोवर तणा, लगावी में कंतारमें लाय तो॥ मन तपाया अन्य तणा, थापण अोलवी कूटा दावा कर्याय तो॥ मार्ग लूटया धाडा पा. डीया, इत्यादि वाया तें फल खाय तो॥ दोष नहीं अन्य कोइनो, किधा नोगवू क्यों घोटाय तो॥ ॥जो०॥ १९२ ॥ व्यर्था जीतब माहेरो, अकृत्पु. नीयों में निराधार तो॥ पापीथी पापी अती, मुज सम को नही दुःखी संसार तो॥ सहाय देणे वाला मिले, ते पण बदले कर्मानुसार तो ॥ तस प्रणाम Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) जो न फिरे, तो मुज बुद्धिमें पडजावे कार तो॥ ॥जो० ॥१९३॥ अती दुखे धन पेदा करूं, हाथे बायो जावे सब सार तो ॥ किम कर्म ये श्राडा फिरे, इण नवे दुःख न दियो कीने धार तो॥ चोरी में समज्यो नहीं, जाणी नहीं कियो कूट उचार तो ॥ संतोष धर्यों परणीपरे, वांछी नहीं स्वपने पर नार तो ॥ जो० ॥ १९४ ॥ राजकाजमें कर्म बंदे, तेहनो पण किनो परिहार तो ॥ ज्ञानी जाणे परनव तणी, ते केवावे मुजथी नल गार तो ॥ दुःखसे सरीर निर्बल हुयो, मेहनत क. रनेको नही पुरुषाकार तो ॥ म्हारो पेट नरसकू नहीं, तो किम संतोषु परवार तो ॥ जो० ॥ ॥ १९५॥ दुःख सहन होवे नहीं, जीव्यांथी काइ निकले नहीं सार तो ॥ मर्याथी पापो कटे, इम १ फरक. - Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७७ ) चिंतीने पागडी बंधी डार तो ।। सिरणी रखी सिलापरे, फांसीने नीचे खड्यो ते वारतो ॥ नवकार समय चिंतमें, अमोल नृप पुन्य प्रगटे ये वार तो ॥ जो० ॥ १९६॥ ॥ दुहा ॥ शुने स्थिती परिपक्क हुये, मिले शुभ संजोग ॥ तेथी शुभ फल परगटे, ते सुणीयो गुणी लोग ॥१॥ अचिंत्ये महिमा दानकी, जे सुपात्रे देवाय ॥ दुःख दुर्भाग्य दूराकरी, व्यय सुख प्रगटाय ॥ २ ॥ ढाल - सतीने सिरोमणी अंजना ॥ ए देशी || ति अवसर गिरीवन विषे, महा तपोधन संयम वंत तो ॥ मास २ तप निरंतर करे, क्रोधादि क पाय को कर अंत तो ॥ चरणं करणं गुणसागरूं, १ अशुभ कर्मकी स्थिती पुरी हुया. २ विचारमें न आये ऐसी. ३ सदा करणेकी क्रिया. ४ वक्तसिर करनेकी क्रिया. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७८) अनाथ जीवारी करुणा धरंत तो॥ समं दम ख. म नम आतमा, जप तप स्पथी कर्म य करंत तो ।। शुद्ध दानतणी महिमा सुणो॥ ये अांकडी॥ ॥ १९७ ॥ सदा रहे अटवी विषे, ज्ञानादि त्रीगु. णमें रमंत तो ॥ मनुष्य तिर्यच ने देवता, नयंकर उपसर्ग समंत तो ॥ कुंद्यादि परिसह सहूँ, सहास घर शुन नाव सहंत तो ॥ कुर्म परे इन्द्री गोपवे, वीरादी आसने अात्म दहंत तो॥शु०॥ १९८॥ महा तप परनावथी, जंघा चारण लब्ध उपजंत तो॥ पारणे दिन जावे ग्राममें, शुद्ध निवेद्यं ते नि का ग्रहंत तो ॥ प्रांत प्रांत लुख अाहार कर, फि र बांसठे नक्त तपशाचरंत तो ॥ पारणो शायो १ शत्रु मित्रपे समभाव राख. २ इंद्रियांको वसमेकरी. ३ परिसहसहे. ४ नम्रभाव. ५ उद्यम. ६ ज्ञान, दर्शण. चरित्रः ७ सर्व. ८ काछवा. ९ वीर आदि असनसं. १० निरंदोषी. ११ मांस भक्षण. Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिण दिने, पुरीमंडल हुया ध्यान पाडत तो ॥ ॥शु०॥ १९९ ॥ प्रतिलेखण शुद्धी करी, काष्ठ पत्र कोली माहे ठवंत तो ॥ करफरश्यौँ जंघथी, त. क्षिण गगन गती ते चरंत तो ॥ कितीप्रतिष्टकने भावीया, तिणहीज तरूं तले उतरंत तो ॥ फांस लेतां जोइ नर जणी, म, मैं, इम ते शब्द उच्चरंत तो ॥ शु० ॥२०० ॥ नीमजी देखा अश्चर्य थया, मनमें अानंद उपनो अथाग तो॥ रोम २ हुल. सित्त हुया, जाग्यो धर्मश्नेह अनुराग तो ॥ शंकी नेण नीचा किया, जत्नाकर अायो मुनीवर प्राग तो॥ पाचू अंग नमाइने, लुली २ मुनीवर तणे पग लाग तो ॥ शु० ॥ २०१॥ फांसी देखी मुनीवरू, पुछे यो कांइ करे महा १ दो प्रहर. २ लक डेका. ३ हाथ लगायो. ४ चश्या. ५ शाह. ६ मत गत. ७ दस्त्र मुख ढाक. - Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (60) भाग्य तो ॥ नीमसेण सा थें दिखो, अयवंतीपुरी तणा जेह नागे तो ॥ किम पाया इहां किम दिशो, सरीर कुमलाणो पड्या दिसे दाग तो ॥ नीमजी जोवे उपयोग दे, सम्यक्त्व दाता गुरू जोई जाग तो॥ शु० ॥२०२ ॥ धन घडी या माहेरी तरण तारण मुज तार्यो याग तो ॥ अतं समय दर्शन दिया, इम कही पाश्रू छुट्या तडाग तो॥ मून रह्यो छाती जरी, नीची द्रष्टी रह्यो जोग वार्गे तो ॥ करुणासिंधू कहे स्युं कह्यो, प्रातम हित्यानो लगे मोटो दाग तो ॥ शु० ॥ २०३ ॥ अ. नंत संसार एथी बधे, बाल मरण ज्ञानी कह्यो साग तो ॥ घणा नवे इमही मरे, बोध बीजको विणस्यो छागं तो ॥ जाणीता श्रावक होयने, एहवो करणो नही इदागं तो ॥ माथी दुःख १ मालक. २ मरती वक्त ३ चूप. ४ झुकके. रस ६ इनाग वसी. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) छुटे नही, जाणी किम करो एहवा स्वांग तो॥ ॥शु० ॥ २०४ ॥ वीत्यो विरतंत राजवी, आदी अंत सहू दीयो सुणाय तो ॥ धैर्य देई ऋषीवर कहे, जेहवा बांध्या तेहवा मुक्तयाय तो॥ मर्याथी अधिक बधे, बदलो दीया शिघ्र छुटको थाय तो। पस्ताया ज्यादा बंधे, समता राख्याथी दय जाय तो ॥ शु० ॥ २०५ ॥ जिम सुख नही रह्यो थायरो, तिम कांइ कायम नहीं ए रहाय तो ॥ राय कहे तेहत बचन प्रर्, अमोघं प्रापरी वाणी कहवाय तो ॥ अब सहू दुःख गयो महारो, इणमें संदेह रत्तीनर नाय तो ॥ चंचल नाव मुनिवर कर्या, कुद्यो टालण वक्ते उपाय तो ॥ शु० ॥ ॥ २०६ ॥ महीप पूछे कर जोड़ने, किहां पधारणो कार्य काय तो ॥ मुनी कहे पारणा कारणे, १ अचूक. २ मूल. Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८२) इण पुरमें जावाकी इच्छाय तो ॥ नृप मुक्र पगठंब्यो, मुजने तारो गुरुजी कृपा लाय तो ॥ मूजतो आहार शिल्लापरे, परकाज लायो म्हारी ने सराय तो ॥ शु० ॥ २०७ ॥ अनुग्रह रांकपे कीजीये, लीजीये जेतो अापरे होवे चहाय तो ॥ ऋषीवर अवसर देखने, शुद्ध निर्दोष देख्यो बुद्धि लगाय तो ॥ साताकारी खपतो मिले, तो ते ग्रामने क्यों फरसाय तो ॥ भ्रमर निदा ग्रहवा नणी, पातरा कहाडी मेल्या ते ठाय तो ॥ शु०॥ ॥ २०८ ॥ नीमजी अती हर्ष पाणने, यत्नाये लीयो खादिम ते हात तो ॥ त्रिकर्ण शुद्ध उलट नावथी, मुनी पात्र माहे अाहार बेहरात तो॥ चित वित पात्रं उत्तम मील्या, संसार प्रत नूपको १ माथी. २ मलकी. ३ मिठाई ४ उलटभाव. ५ शुद्ध आहार. ६ मुनिराज. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८३) तब थाय तो ॥ महा तपना प्रजावी, व्योममें देवताकी छाइ छात तो ॥शु०॥२०९॥ अहोदानं महादान श्रेष्टए, घणो गम मिली श्रौछावे बोलात तो ।। शुगंधी द्रव्य वृष्टी करी, बारे कोड दिनार ढग लगात तो ॥ बहु देव देवी नीचे श्राइ, मुनी राजने पंच अंग नमात तो ॥ रायनी परसंस्था करे, मुंडे २ नूपना गुण गात तो ॥ शु० ॥ ॥ २१० ॥ राज योग्य वस्त्र भूषण, बहू मोल्या राजाने पहरात तो ॥ देवधुंदबी बाजे गगनमें, तेहनो नाँद नगरमें सुणात तो ॥ लोक सुणी अ. श्चर्य हुवां, देखणको मनमें उमंगात तो ॥ अहो यह दान कुणं दीयो, गम २ दोडी ग्राम बाहिर जात तो ॥शु० ॥ २११॥ गम्म जम्यों लोकां तणो, पाग लागीने बीजाने लगात तो ॥ नयर १ आकाश. २ सोनेया. ३ शब्द. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) नाथ वीजयसेवजी, था तिमही घग्या प्रती ह. र्षात तो ॥ ग्राम बाहिर पगे प्रावीया, मुनी अवसर देख नन उडजात तो ॥ जाता मुनी नृप वंदीया, लोक जम्या तिण ठाम चल पात तो।। ॥ शु० ॥ २१२ ॥ नीमसेणजीने भोलख्या, अ. हो साडूजी कधी पाया श्राप तो ॥ हमे सुक्यो नाई कुबुद्धथी, प्रदेश निकल्या था श्राप तदाप तो ॥ इत्ता दिन हूंता किहां, किहां शालीजी कुंवर दो जबाप तो ।। नीमजी कहे सब इहांई छे, लक्ष्मीपत घर रहे घर खाप तो ॥शु०॥२१३॥ वीजयसेण खुशी हुवा, चालो नयरमें गयपे डील थाप तो ॥ नीमजी कहे सवारीपरे, कुटंब मिल्या विना न बेई कदाप तो ॥ पहली मिलस्यूं पगे चली, ते सब करता होसी मुज जाप तो। तीन १ राना. २ आकाश. ३ हाथी, Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८५) वर्ष बिगवो रह्यो, उनकी दिशा कैसी होसीजनाप तो ॥ शु०॥२१४॥ इम सुण सब पालाचल्या, इत्ते नेने वाणी हुइ आपोआप तो।। सौनयादि वस्तु किसी, दुसरो लेस्ये तो शिर न्हावू काप तो ॥ मर्व माल नयाँ स्थमें, इत्ते केपी ते कूदतो काड काप तो ॥ कंथा लाइ न्हाखी नीमपे, लोक फेंकण लाग्या तेहने ताप तो ॥ शु० ॥ २१५॥ नीमजी कहे न्हाखो मती, गोदडीमें गोरख छ छिपात तो ॥ इम सुण ते रथमें खी, इतरे सिद्धना नेत्र गया जांप तो॥ आगे तिणने दीसे नहीं, घबराइ पाछो फियों उदय पाप तो ॥ जीमजी पासे सुरं रख्यो, पग लाग्यो सिद्ध नृपने कांप तो ॥ शु०॥ २१६ ॥ मने उगारों कृपा , आकाश. २ बंदर. ३ गोदडी. ४ तुंबावालोयोगी ६ ढकगये, ६ देवता. ७धूनता. - - Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६) करी, मै आपको मोटाजी चोर तो ॥ दोनो तुम्बा राखीये, म्हारे चइये तो लास्यूं और तो॥ नृप कहे मुज एकही घणो, सिद्धे दोन् दिया बरा जोर तो॥ ते तिणरे. रस्ते गयो, सब जणा अाया लदभीपत पोर तो ॥ शु०॥२१७॥ राणी पुत्र देख्या नहीं, नीमजी पूछे उतारी मुख तोर तो ॥ कोइ कहे सेठाणी कहाडीया, कोपडी बालीने मार्या कठोर तो॥ वीजयसेण अमरत जया, कुण दुष्टणी ये छे हराम खोर तो ॥ नीमसेण मुरछा लइ, चैतन हूइ रोवे जिम ढोर तो। ॥शु०॥२१८॥ सक्ने अांखे पाणी चल्यो, मच्च रह्यो तिण नगरमें शोर तो॥ दासी गइ राज नवनमें, राणीथी कह्यो तुम बेन अाइ होरें तो ॥ सुण हर्षी मिलवा उठी, चेटी कहे पतो नही किण ठोर १ दरवज्जापे. ९ अब्बी. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८७ ) तो ॥ दोनो राय मिली फिरे, जोवे नयर मांगे घर घोरे तो ॥ शु० ॥ २१९ ॥ शिवकारूढ जयसुन्दीरी, मिलवा निकली दासी चारूं चौर तो ॥ गलिया २ फिरतां फिरे, तिण गरीबानें कुछ लखे नोर तो ॥ नीम कहे मिले तो ठीक छे, नहीतो मरणो म्हने निश्चय थोरै तो ॥ पूछ तल्लास करतां थकां, सहू जाए या ग्रामने घोरें तो ॥ शु० ॥ ॥ २२० ॥ दोनो नाई रमता हुंता, इत्ते मनुष्य वृन्द आयो जोय तो ॥ कुमर पितानें चोलख्या, दोडी कूम्या जीमजीने दोय तो ॥ दोनू नृप कडीया लिया, शररि जयो छे श्याम वरणोय तो ।। माथे लटूर्या बिखरीया, गीदड चोखे सेडो नाक कोय तो ॥ शु० ॥ २२९ ॥ अयोग्य आहार नक्षण थकी, पेट फुंगीनें बण्यो छे तुम्बोय तो ॥ १ गुप्तजग. २ पेछाणे. १ बडासा, ४ किनारे, Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर पग तो पतला नया, मेखोन मेख रह्या तात जोय तो॥ दुःख सहु याद अावीयो, बालूडा रह्या चौधारा रोय तो ॥ पुरपत पुछे माता किहां, ते कहे पटेलने घर सोय तो ॥ शु० ॥ ॥ २२२ ॥ दो दिन काम करत हुया, अजुतांइ नही दियो रोटोय तो ॥ तिसरो दिन आदो गयो, माताजी रह्या तन विगोय तो॥ फजर हमने कह्यो हुँतो, अाज अापस्युं खावाने तोय तो॥ काम पूरो हुयो नही दिसे, ले बेठी छे तेह पीसणोय तो ॥ शु० ॥ २२३ ॥ काम हुया रोटो लइ, अब्बी प्राप्ती इहां जीमावा मोय तो॥ दो दिनका में नूखा अछां, इम दयामणा शब्द रह्या ते चोर्यं तो ॥ करुणा आइ सहुने मने, राज कुंवरांकी गती कैसी होय तो ॥ नटे सुखड़ी लाया १ पिता. २ विनय सेण. ३ कष्टसहे. ४ बोल. ९ नोकर . Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहां, अपत कर्या शीतल पायो तोय तो ॥ शु. ॥ २२४ ॥ जयसुन्दरी इम सांगली, पटेलने घरे पेी तदिन तो ॥ बेनने जोइ धट्टी पीसती, पेहरवा छे फाटो वस्त्रनो खन्न तो ॥ तंतू टुकडो मसतकपरे, दुःखथी हुयो छे कृष्ण वदन तो ॥ राणी बेन नही अोलखी, सुशील तबही पहचानी बेन तो ॥ शु०॥ २२५ ॥ घट्टी छोड दूरी हुइ, शरम प्राइ करवा सागी रुदन तो ॥ जयसुन्द्री बेठी पास जा, दुःख नाग ले दे विश्वास बचन तो ॥ उत्तम वस्त्र पेहरावीया, म्याने बेसाइ अाया राजन तो ॥ राजनवन माहे अावीया, ज्युदा मेहलमें चारी गया मिलन तो ॥ शु०॥ २२६॥ बेठा अन्यो अन्य जोवता, नेत्र नीर परनाल पतन तो ॥ राणीजी कहवा लग्या, स्वामी म्हानें छोडी Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गया वन तो ॥ पाछी सार लीधी नही, दया न चाइ अपने जरा मन तो ॥ पुत्र पिताजी नणी कहे, म्हाने दुःख दीयो सेठाणी रन तो ॥शु० ॥ ॥ २२७॥ धायाजी म्हाने वास्ते, दुःख नूख सहीने सुखाव्यो छे तन तो ॥ आपतो म्हाने तनी गया, महाणे पास कछू रह्यो नही धन तो॥ राणीने धीरज दइ, आपणो वित्यो कह्यो मंडन तो ॥ अानंद पाया चारी घणो, ते सुख जाणे केवली नगवन तो॥ शु० ॥ २२८ ॥ भोजन तैयार हुयो तिहां, कांसो मंगाइ जीम्या तिहां तर तो ॥ सनामे विराज्या नूपती, दोइ राजा वीतक बात कर तो ॥ विजयजी पुछे अापने, कित्ता दिन हुया इण नगर तो ॥ नीम कहे तीन वर्ष पहले, इहां रह्यो थो हूं वर्षगर तो॥ शु० ॥ ॥ २२९ ॥ और वीती बात सह कही, बालक Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोल्या दोनुरोस धरतो॥सेठाणी म्हाने खोटी मिली, सेठजीने कही छोडायो घर तो॥ध्रपडी बाली महारी, मरायाम्हाने हाथ नोकर तो॥पुरपत क्रोधातुरहुया, कहे नटने तुम फट जावो चरतो॥ शु०॥ २३० ॥ लावो पकड दोन्या जणी, नीमजी रह्या तिहां मून पकर तो ॥ लक्ष्मीपत कहे नारीने, देखरी वें हुता राणी राय सर तो ॥ हिवे होसी आपणो किस्यो, थे दुःख दियो नही कियो अादर तो ॥ नारी कहे किम जाणीये, \इज वांने राख्या नोकर तो॥शु०॥ ॥ २३१ ॥ इतरे तो नट अावीया, पकडी गया किया राय हजर तो॥राय कहे मूली देवो. नी. मजी कहे नहीं होवे इण पर तो॥ यां साज दियो दुःखने विषे, हम पेट माहे छे लूण नाकर तो॥ पोशाक देइ पहोंचावीया, अपकारपे उपकार असर १ साहेब २ रोटी Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो ॥ शु०॥ २३२ ॥ भीमजी पुत्र दिन २ बघे, औषधादी शरीरे करें सेव तो ॥ चारूंकी दिव्य काया हुइ, ग्राम बाहिर नृप पाप्त नूमी लेव तो। बंगला बन्धाइ तिहां रह्या, सूवर्ण करे लोह पर रस खेव तो॥ शैन्यानो संचय करे, छावणी बसाइ तनखा खूब देव तो । शु०॥२३३॥ कुंवर नण्या बहुत्तर कळा, थोडे काले प्रवीन हुय तेव तो॥ पुरपयठाणे खबर गइ, अरीजय थोमांसीको नेवे तो।। मोदीने संग ले भावीया, भीमसेण नेटया तिह एव तो ॥ सेंदीसी सुस्त लगी, अरीजय पूछे क्यां देख्याथा हेव तो।। शु० ॥ २३४॥मोदी बोल: खी घूजीयो, ढाल करवाल दीवी तत्देव तो॥ प्रा. पराध गुप्त खमावीयो, मुज लज्जा अापरे हाथ छेव तो ॥ मोदी कहे निज रायने, ये पधार्थी यां १ माई २ ओळख ३ तरवार. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपले नगरेव तो ॥ बाप राख्या नहीं फोजमें, घस्सी मुजघर धराथी ठेव तो ॥ शु० ॥२३॥ अरीजय कहे नरमाइने, मूल हुइ माफ करजो देव तो॥धीमजी कहे दोषण नही, कर्म तणी खोटी एहवी टेव तो ॥ म्हारा बान्ध्या भोगव्या, हिलमिल रही चल्या सीख लेव तो ॥ते तो पोतानेपुरे गया, नीम कुटंब खुष अमोल केव तो॥शु०॥२३॥ पुंन्य फल्याथी फले सहु, शुनोदय शुन प्रगटाय ॥ ते पुद्गल फिरे विश्चमें, अरी फिट सज्जन पाय॥१॥ भीमसेणनी कही चरी, हिवे पाछल अधिकार ॥ चमत्कार जन जोवजो, पुंन्य पादार्थ सार ॥२॥ ढाल-सतीने सिरोमणी अंजना ॥ ए देशी ॥ जिण दिनथी नृप पुंन फल्या, तिथी उज्जेनी Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९४ ) मकार तो || हरीमेण चित उचकियो, राजसायत्री लाग जयंकार तो ॥ किहांइ सुहावे नहीं मारती यावे मनमें अपार तो ॥ सुतां जक्क पडे नहीं, छातीपे मेल्यो जाणे कोइ जार तो ॥ पुन्न फल्या शुभ सह फले ॥ ये त्र्यांकडी || २३७ ॥ खाणो पिणो ने पेरणो, सररिनी तजी सार संभार तो ॥ जेष्ट पंधू मनमें वस्यो, कदीक रोवे मोठी बुंब पार तो | मुशदीयादि समजावर, इम किम करे। च्याप शिरकार तो || राजकाम किम चालसे, कान नही धरे बात लगार तो ॥ पु० ॥ २३८ ॥ कदीक मारे पत्नी जणी, तूं मुज दी खोटी सीख दे गार तो ॥ कुंती निकाली राजसे, पश्चाताप करे केइ प्र कार तो ॥ यरे में पापी कृत्वनी, विश्वासघाती नीच चंडार तो ॥ रंडाने कये लग्यो, पिता समान नाइने दियो कार तो ॥ ५० ॥ २३९ ॥ में बेठो Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजगादीपे, शरम नपाइ धीठगीवार तो॥ नाइ२ करता फिरे, नगरीना सोच करे नर नार तो।। उदासी व्यापी देशमें, याद अावे नीमसेण नूपार तो ॥ चोकस करवा भ्रातनी, परदेशे नेज्या पाला सवार तो ॥ पु० ॥ २४०॥ नमिसेण बेठ्या सना नरी, दोनु कुमर उना हुया तत्काल तो ॥ मुजरो करने इम कहे, शैन्य तैयार हुइछे अश्व पाल तो।। पधारो राज लेववा, काकाकू कर देवां नक्षण काल तो ॥ गत काल स्मरण हुया, म्हाणा बदनमें उठे छे काल तो॥ पु० ॥ २४१ ॥ म्हाको राज म्हाने मिले, तब म्हाणा मन होस्ये खुशाल तो ॥ कुमर तणो जोष देखने, खुशी हुवा घणा भीम नृपाल तो ॥ राज लेणे जैसा हुवा, बुद्धी तेज बल देख विशाल तो ॥ नूप कहे शैन्य सज करो, राजलेस्या आपण एक ताल तो॥ पु०॥ २४२ ॥ विजय Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९६) सेणने बुलाइया, मांडीने कह्या कुमरका हाल तो॥ ते कहे राज यो आपको, खुसीसे करो आप इणरी संनाल तो॥ कुमर कहे मासाजी सुणो, उज्जेणी लेस्या पहला हम चाल तो॥ वीजयजी सुणी खुशी हुया, शैन्य सजी सब धरी उछाल तो॥ ॥ पु० ॥ २४३ ॥ दोनू राय मिल चालीया, बेना मिली दोइ गाम बाहिर हाल तो॥ वि. योगका प्राणूं वह्या, वस्त्र भूषण लिया दिया रसाल तो ॥ जयसुंदरी पाछी गइ, फोज चली ज्यों समुद्र प्रनाल तो॥ सुशीला दास्या प्रवरी, मुखे चाले बेठ्या मुखपाल तो ॥ पु०॥ २४४ ॥ दल प्रबल सज्यो अती, काली घटा जिम सोने छे गजे तो ॥ होदा सुवर्ण नगथी जडया, बिजली जिम रह्या चमकज तो ॥ मद करे भ्रमर गुंजारवे, १ हाथी Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९७ ) गुलगुलाट शब्द गाजे ज्यों मेघज तो ॥ कूल बहु रंग सुहामणी, घंटा नाद सुणावे सुखज तो॥ ॥ पु० ॥ २४५ ॥ तुरंग सुरंग कुरंगे परे, चपल चौफाला रोषे असूरज तो ॥ पलाण खसी मूरा वसी, हणणाट करे सोन घंणी छज तो ॥ संग्रामी रथ ऊणणा रह्या, जरी तणी खोल रही फल कज तो॥ सर्व शस्त्रे पूरण नर्या, उपर सोने छ बहू रंग धज तो॥ पु० ॥ २४६ ॥ शूरा शूर रसमें चड्या, वक्तर शस्त्र लिया छे अंग सज तो॥ मदछक मतवाला हुया, अरी जीतण शब्द बोले बेलज तो ।। वोजे धरणी थर थरे, आकाश माहे चडी छे रज तो ॥ वनचर चाग गिरे छिप्या, नीर सरोवर गया स्योशज तो ॥ पु० ॥२४७ ॥ केइ राजाने ममावता,दुशमणने नागंता बलज तो॥ घोडा. १ हिरण. ३ धना. ४ पाणी. - Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९८) मगद मालव देशमें, ठाटे पाटे कियो प्रवेसज तो॥ हरीसेण नट सामे मिल्यो, मोटी शैन्या देखी गयो ते लज्ज तो ॥ कुण ए किहांथी ग्रावाया, पूछणने टिंग आयो चालज तो ॥ पु० ॥ २४८ ॥ मार्ग शुधार करनारथी, कटक प्रावणरा पुछे समाचार तो ॥ अरी तणो नट जाणने, रोसमें आइ करे ते उच्चार तो॥ नीम नूप एवंती पती, दल तिणारो साडू साथ कुमार तो॥ राज लेवाने भावीया, इम सुण सवार दोड्यो तिणवार तो॥ पु० ॥२४९ ॥ एवंतीम आवायो, मांडी कह्यो नाम लस्कर प्रकार तो॥ सचीवादिक खुशी हुवा, हरीसेणने दीबधाइ श्रेयकार तो॥ सुणतांइ लाग्यो भूपती, मिलू जाइथी तूठा किरतार तो॥ बरजे घणा पण माने नही, श्राडा फिर राख्या सुनट जुजार तो ॥पु०॥ ॥२५०॥ व ग्राचे छे राजारोशमें, एक दम गया Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थी रखे न्हाखे मार तो ॥ धैर्यथी काम कीजीये, हम आगे जाइ केवां अनुहार तो ॥इम कहीं एवंती थकी, जूना उमराव मिल्या दो चार तो।। जाइ नेटा भीमसेणने, सामें बेठा करी नमस्कार तो॥ पु० ॥ २५१ ॥ अांखे (श्रू वर्षावता, कह्यो सहू हरीसेणनो तार तो॥ जित्ते तोहरीसेण छूटने, दोडी बाया अणवाणे छुट्टा बार तो॥ वस्त्रानुषणकी शुद्ध नहीं, नीम नाइके पड्या चरण मकार तो ॥ काठा चरणयुग पकडने, रोवा लाग्या जोरसे बूंब पार.तो ॥ पु० ॥ २५२ ॥ में नीच पापी में दुष्ट छु, में चंड्डाल मोटो गुन्हेगार तो॥ कृत्वनी में हीन पुनीयो, आपके हाथे न्हाखो मने मार तो तो म्हारी गती सुधरसी, पृथ्वी नहीखमीसके मुज जार तो॥ मुज सरीखो अकृतीयो और नहीं कोई श्रेष्टी मकार तो॥ पु० ॥ २५३ ॥ उत्तम वंशद Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) गावता, लाज न आई मुजने लगार तो॥ मुज मार्याथी आपणी, सात पीडीनो होसी उद्धार तो॥ इम अनेक तरह विलविले, अश्रूसे चरण करे पखार तो ।। नीमजी चिंते मन विषे, नहीं दोसे इणरो दोष लगार तो॥ ए० ॥२५४॥ अशुनोदय म्हारे नयो, तेहथी दुःखको सह्यो प्रहार तो ॥ शुनोदय सुधर्या सहू, इम चिंतवी कर्यो तस सत्कार तो॥ किंचित दोष न थांयरो, मुज पुन्योदय मिल्योपरखार तो ॥ इत्यादि मधुर वचनथी, हरीसेणनो कलेजो दियो ठार तो ॥ पु० ॥२५५॥ फिर नोजाइ चरणे पडयो, माताजी म्हारो करोसंहारतो॥ नीच कर्म में प्राचर्या, राणी कर्म दोष कायो उचार तो ॥ देवरने संतोषीयो, नतीजाने जाइ कयो नमस्कार तो ॥ प्रातम निंद्या घषी करी, तिल पण संतोष दीयो अपार तो ॥ पु० ॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०१ ) ।। २५६ ।। सब सज्जन आइ मिल्या, हर्ष बदन राय दियो सन्मान तो ॥ शुभ मुहूर्तना योग्यथी, नयर प्रवेश कियो राजान तो || बार्जित्र बहू बा - जता, सोवागन किया मंगळ गान तो ॥ दुःखी नो दुःख गमाववा, मेघ धारा पर दीघो छे दान तो || पु० || २५७ || राज सिंहासों बेठीया, सामंतादि सहू मिल्या हर्ष यान तो ॥ बंदीवान छोडावीया, नगर में उत्सव खुशी असमान तो ॥ जंडार शैन्या स्ववस किया, सर्व देशमें फिरी जी - म यान तो ॥ जसोदाने मोटी करी, सहु जन माने माता समान तो ॥ पु० ।। २५८ ॥ सुर सुन्दरी नाशी गई, हरीसेण रहे मानी नाइकी काण तो ॥ धर्म शाल मंडाइ देशमें, अन्न वस्त्र दे दुःखी देख प्रान तो ॥ प्रजानी करे पालना, सहु सुखीया नया पुन्य प्रमान तो ।। रिख अमोल कहे Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) सांगलो, सर्वोत्तम सत्य धर्मबयान तो।।पु०॥२५९॥ ॥ दुहा ॥ धर्मे शिव सुख संपजे, धर्मे दुःख विरलाय । दान सील तप नाव ए, धर्म नेद कहवाय ॥ १॥ प्रथम पद दीयो दानने, उत्तम जाण. जिनेश । तेहतणी महीमा सुणो, संचित कर्मकी रेश ॥२॥ __ढाल-सतीने शिरोमण अंजना ॥ये देशी ॥ तिण अवसर मंही मंडपे, विचरता जग रक्षक धीमी चाल तो ।। करणं चरणं गुणसागरूं, नवूकल्प विचरे नूंम निहाल तो ॥ जात कूल बल रूप संपन्ने, क्रोधांदी षड्रीपु न्हाख्या गाल तो।। ज्ञानादी त्री रत्न संचवे, भ्रम निदा ले छिन् दोष १ पृथवी. २ क्रिया. ३ चारित्र. ४ आठ महिनके आठ विहार ओर नवमा चोमासाः क्रोध, काम, मद, मोह, लोभ, मत्सर. ६ देखा जैनतत्वं प्रकाश. Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) टाल तो ॥ धर्म तणी कथा सांगलो । ये प्रांकडी ॥ २६० ॥ आचार सुत्रं सरीरकी, वचनं वाचना श्रुति विशाल तो ॥ उपयोग संग्रह संपदा, पाठ ये घारक करत संजाल तो ॥ संयम सतरे दुवादश तपे, अहो निश तिणमें रहता लाल तो॥ उपदेश अमीरस धारथी, जव्य हृदयमें वैराग्य दे घाल तो ॥ २६१ ॥ सुखे २ अनुक्रमे विचरता, पधार्या अवंती नव्य पुन्य नाल तो ॥ कुसुमश्री उद्यानमें, उतर्या आज्ञा लेइ वनपाल तो ॥ मासुक वस्तु जाचने, तिहाथी लीयो खपतो माल तो॥ गुर्छ गम्म सम समण मिली, ज्ञान ध्यान कर रह्या उछाल तो॥१०॥२६२॥ केइ विनय वयावच्च करे, दुक्रश्नं से तोडे कर्म,जाल तो ॥ स्थैवर तपश्ची बहूँसूत्री, अापणी यात्म १. चारे. २ अमृत. ३ निरजीव. ४ बहुत मिलके. ५ कठीण मासण. ६ वृद्ध. ७ पंडित. Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०४) जावे मुनी माल तो ॥ वनरक्षक अलंकृत हुइ, नेटणो ले आयो सनामें चाल तो ॥ जय विजय बधायने, दिनी बधाइ पधार्या दयाल तो ।। ध० ॥ २६३ ॥ नीमजी सुणी पाणंदिया, साडी बारे लक्ष हिरणं दिलाय तो ॥ माली निजघर आवीयो, नीमसेण तलवरने बुलाय तो ॥ नगर सिणगार करावइ, कोटवाल पुर सोनित कराय तो॥शैन्य सजवा हुकम हुया, फोजदार फट फोज सजाय तो ॥ ध० ॥ २६४ ॥ मंजन सर्दैने महीपति, विलेपन कर शुद्धोदकं न्हाय तो ॥ अल्प नार कीमत घणी, वस्त्र भूषणे अलंकृत थाय तो ॥ सब सज्जन संग परवर्या, तारांगणे सोने इन्दुं ज्यों राय तो ॥ जेष्ठ कुंजरे विराजीया, छन धराइ चम्र ढुलाय तो ॥ १०॥ २६५ ।। १ माली २ शुगारसन ३ रुपया : घरमें ५ अच्छाषाणी चंद्रमा. Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शैन्य सज्जने परवर्या, मध्य बजारे चाल्या उमाय तो॥ सुशीलाजी सज्ज हुइ, रथमें बेठी दास्याची घेराय तो ॥ बाजे गगन गर्जावता, चाल्या मुनी दर्शनकी इच्छाय तो॥ नव्य गण घणासंग हुया, केइ दर्शण केइ प्रश्न चाय तो॥ १०॥ २६६ ।। केइ प्रषदा देखवा, केइ सज्जन मिलवाने जाय तो।। सर्व जन संघ प्रवर्या, अनीगम संच गुरू पास आय तो ॥ यथा विध वंदना करी, नम्र नाव बेठा सुणवानी चाय तो ॥ परउपकारी ऋषीवरा, यथा उचित उपदेश फरमाय तो ॥ ध० ॥ ॥२६७ ॥ श्रुत्व श्रोता गणो, यो जीव लह चौरासी भ्रमंत तो॥ तानसे त्रीचालीस राजूमें, कोइ स्थान खाली न राखंत तो ॥ नव श्रेणी कुण वरणवे, इणपरे काल वीत्यो छे अनंत लो। १ पावांग्य. २ सुगा हो. Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) उत्कृष्ठा पुन्य योग्यथा, दृष्टांत दश जिम नर तन मिलंत तो॥ध० ॥ २६८ ॥आर्य क्षेत्र उत्तम कुले, जन्म लियो आयु अखंडत तो॥ इंद्री श. रीर निरोगता, सद्गुरु शुद्ध सोध कहंत तो ।। श्रधा राखी तिम करो, तो इण जीवको काज सरंत तो ।। पुद्गलमें राचो मती, इणको स्वभाव मिली विछडंत तो ॥ ३० ॥ २६९ ॥ स्वपना जैसी सायबी, जागी जोयां कांइ न रहंत तो ॥ अध्रुव अनित्य अशाश्वती, मुढ अज्ञानी इणमें मुरजंत तो ॥ ज्ञानी तजी धर्म आचरे, सूत्र चारित्र दो भेद कहत तो॥ मूत्र मुणी ज्ञानी बणो, चारित्र साधू श्रावक दो नेदंत तो ॥ ध०॥ ॥ २७ ॥ पंच महाव्रत साधूका, बार व्रत श्रावकधी अंत तो॥ यथा सक्त शुधाचरो, जिम सुख १ अस्थिर. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०७) मिले निजिष्टित कंत तो॥ या कहणी करसे जिके, अक्ष्य अनंत ते सुख पावंत तो ॥ सुख होने जिम कीजीये, उपदेश इम मुनीश्वर सुणावंत को ॥३०॥ २७१ ॥ इम उपदेश सुणी नवी, वैराग्य व्याप्यो हृदयमां पूर तो ॥ केइक समकित श्रादरी, केइ श्रावक व्रत किया मंजूर तो ॥ प्रपदाअाइ तिहां गइ,नृपादि सर्व परवार संगमूर तो॥ हरसिणजी तिहाइ रह्या, कहे करजोड सत्य वचन हजूर तो॥ २७२ ॥ श्रध्या प्रतीत्या मन रुच्या, संसारने जाण्यों में कूर तो॥श्राज्ञा लेइ संयम ग्रहूं, मुनी कहे शीघ्र कीजीये नूर तो॥ वंदना करने चालीया, नाइजी पास आया हर्ष नूर तो। अाज्ञा दिजे कृपा करी, बांध्या कर्म करूं चक्क चूर तो॥ध० ॥ २७३॥ नीमजी कहे तूं. लघू भने, १ लाहोना. Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०८) राज जोम नोगयो सुख नूर तो ॥ पाछे संयम सीजीये, या केण म्हारी करो मंजूर तो । हरीजी कहे राजथी, जन्म मर्ण दुःख नही होवे दूर तो ॥ संयम पादरी तप करी, अखंड राज लेस्या शिवपुर तो ॥धः ॥ २७४ । इम प्रश्नादी घणा हुया, नहीं मान्यो मांड्या मोत्सव स्फुर तो। घाडंबरे आया बागमें, मुनी वंदी पाया इशाण णूर तो ॥ पंच मुष्टी लौचन करी, नेष पेहर श्राया गुरु हजूर तो ॥ जिन दिशा धारण करी, वंदी जुटव घरे गया तर तो ।। ध० ॥ २७५ ॥ हरी ऋषीजी स्था साहू, दूजे दिनाया नीम नूपाल तो॥ नाइ बंद्या देशना सुणी, बारा व्रत धार्या तत्काल तो॥ विजयजी पण श्रावक हया, यथा सक्त मर्याद करी उजमाल तो ॥ वंदना कर गया निज घरे, ऋषीराय विहार कर्या नू महाल तो॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०९) ॥३०॥ २७६ ॥ विजयसेण गया निज पुरे, र. हे सुखे करे राज संजाल तो॥ हरीऋषी विनय करी, अंग पूर्व नणी हुया ज्ञाने लाल तो ॥ श्रास्म निंदा तपस्या करी, कर्म तणो कचरो न्हाख्यो बाल तो ॥ दपक श्रेणी चड कैवल लियो, मो. सब कीयो सुर दीर्घ पाल तो ॥ ३० ॥ २७७ ॥ घणा मुनी संग विचरता, जिनमत थापे मिथ्या तम टाल तो ॥ श्रेवंतपुर पधारीया, बधाइ जीमने दी वनपाल तो ॥ सहु पंवारे वंदीया, मुनी उपदेश नणे तिण काल तो ॥ सुणो पूर्व नवनी कथा, बांध्या कर्म ते नोगव्या हाल तो ॥ घणा ॥ २७८ ॥ श्रीपुरमें तुम श्रेष्ठ था, श्रीपाल लो. जी घरे घणो माल तो ॥ में पाडोसी गुणचंद्र थो, धर्म मिती अापणे एक ताल तो ।। में हार मोल लियो मोतीको, थांने बतावा अायो घर चाल तो॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) कपट नावें तुम तदा, थाणी स्त्रीने गले दियो घाल तो॥ ध० ।। २७९ ॥ दो चाकर एक चेटीका, तीनी देखतां गयो म्हारे घर तो ॥ जाण्यो फिर देशे मुज नणी, दूजे दिन ते माग्यो जेवर तो॥ थे नटया में विलखो हुयो, चाकरने पूछ्या दियो ना उत्तर तो ॥ चेटी नोली हां कह्या, थें तस मा. री बतायो थोडर तो॥ध० ॥ २८० ॥ में चुपक्यो निज घर गयो, अती मन माहे करतो फि. कर तो॥ जाण्यो म्हारी नारीये, अती दुःख उपनो तस उर तो ॥ तुम दामीने निकाल दी, दोनो चाकरको कियो अादर तो ।। लद पाक तेल.थांणे हतो, मुनी लेण पाया तुम लोन धर तो॥ ॥ध० ॥ २८१ ॥ असुजतो तीन दिन कियो, अंतराय ते बांधी जब्बर तो ।। श्रीपाल नीमसेण तुम, गुणचंद्रा में गया नवको मिंतर तो ॥ तुम Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नारी सुशीला सती, दासी नद्र, क्षितिप्रतिष्ट नयर तो ॥ दास पुत्र दो ए थया, धर्म करणीथी जया नरेश्वर तो ॥ ध० ॥ २८२ ॥ दानांतराय दिया थकी, तीन वार मरण लाग्या फास कर तो॥ दान दिया सुखीय हूया, कर्मनी रचना एम विचितर तो ॥ सुणोने चेतो नवी तुमे, कर्म बंधन को धरो दिल डर तो॥ पूर्वला बांध्या तोडीये दूस्तर संसारसे जावो तर तो ॥३०॥ २८३॥ सुणी भीमसेणजी धूजीया, वैराग्य नाव ते मन माहे लाय तो ॥ वंदना कर घर गया, पत्र लिखी कासीद पठाय तो॥ वितिप्रतिष्ठ पुरे गयो, विजयसेण पट्ट राणीने चेताय तो ॥ बेन बेन्योई दि. दा लेवे, सुणी दोनो श्रेवंतीये पाय तो॥धः॥ ॥ २८४॥ पूर्व नव रचना सुणी, ते दोनोइ के रागी थाय तो ॥ प्रोत्सब राज तणो करी, देव Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११२) सेणने गादी बेठाय तो॥ क्षितिप्रतिष्ट केतसेणने, मासाजी दियो प्रेम जणाय तो॥ फिर दिदा मोत्सब मंडयो, शिवकामें बेठा राणी राय तो॥०॥२८५॥ मुनी पास बाइ दिक्षा ग्रही, चारूंई संयम मन रमाय तो ॥ दोनू कुंवर श्रावक हूया, मुनी वंदी निज राजे जाय तो॥ जिन विचरे नू मंडले, नीमऋषी नीमवृतरे माय तो ॥ विजयऋषी जीते कर्मनें, दोनो सती धर्म प्रेम सवाय तो ॥ ५० ॥२८६ ॥ चार अघाती दपायने, हरीऋषीजी मोक्ष सिधाय तो ॥ नीमऋपीना पुन बंध्या, पधार्या सर्वार्थ सिद्ध माय तो॥ दोनो सती नारी लिंग तजी, स्वर्ग बारमें सामानिक थाय तो ॥ महा विदेहमें सहु उपजी, करगणीकर अकय सुख पाय तो॥ध० ॥ २८७ ॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपसंहार. ॥ हरी गीत.॥ ये कर्मकी रचना रची, सुणीसार ग्रहो श्रोता सहु ।। दगा दानंत्रायसें, नीमसेण सही विपति बहु ॥ इम जाण डरीये कर्मसें, गत कर्मसें होजो लहु ॥ तो तिणपरे सुख पावसो, ये सार थोडा में कहुं॥१॥ अल्प बुद्ध अनुसार, कथा अाधार ए रचना करी॥ युक्त सम्मास मिलाइयो, इण माय जो मिथ्याचरी॥ तो मिथ्या दुष्कृत दे कहूं, कोविद शुद्ध कीजोखरी॥ श्रोतागण दो नेट तो, शक्तयनुसार लो व्रत वरी॥२॥ श्री वीरके पटानु पाट, ज्ञानी गुणी हुवा महा मुनी। गुज्य श्री कहानजी ऋषी, सम्प्रदाय श्रादी में सुनी॥ तेमां श्री खूबाऋषीजी, उत्कृष्ट क्रिया घर गुनी ॥ मम गुरु श्री चेना ऋषीजी, नमत हूं में पुनी पुनी॥३॥ महा उपकारी महात्मा,रत्नऋषीजी मुज पढावीयो॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१४) तस्स सरण रही ग्रंथ ए, अमोलऋषी बणावीयो ।। *संवत् रवी पूरन तपन, महावृत काया अावीयो॥ बडो मास ने बरे वारे, पूर्णस्थिती जोग थावीयो॥४॥ दक्षिण देश श्रेष्ट में, श्रावलकुटी ग्रामें रही ॥ रचना करी ये ढालकी, श्रोता सुणीने गह गही ॥ गावे गवावे सुणे सुणावे, ही श्री ते लही ॥ जयजय रहो जैन धर्मकी जिहांलगरवी इंदू मही।।५।। परम पुज्य श्री कहानजी ऋषिजीके सम्प्रदाय के महंत मुनी श्री खूबा ऋषीजी तस्य शिष्य आर्य मुनी श्री चेना ऋषीजी तस्य शिष्य बाल ब्रम्हचारी श्री अमोलख ऋषीजी विरचित शुनाशुन कर्भ फलका बताने वाला जीमसेण हरसेिण चरित्र समाप्त. * संमस् १९५६ ज्येष्ट वदी अमावस्या गुरुवार Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११५) अथ पुण्य प्रभावक श्री लक्ष्मीपती चरित्र प्रारंभः लावणीकी चाल. पुण्य चीज है बडी जक्तमें, सुख मिलते अपरंपारे । लक्ष्मीपती शुभ पुण्य उदयसे, तिर गय सागर संसारे ॥ ए टेर ॥ अंग देशमें चंपानगरी, कौणिक वहांका था राजा। न्याय नीतीवंत परजापालक, रुपतज अंगमें ताजा ॥ धन्ना सेठजी वहांपर रहते, *वसू इभ धन घरमाही । नगर सेठकी पद्वी उनको, नृपने दीधी हित लाइ ॥ पांचलाख दुकानो जिनकी, अंग मुलकमें फेलाइ । लाखो मुनीम गुमास्ते जिनका, काम काज रहे चलाइ ॥ दशबोल सम्पूर्ण घरमें, ऊणा नहीं सुख लगारे॥ लक्ष्मी. ॥१॥ चौथा अनुत्तर विमानसे चव्याहै, पुण्यवंत उत्तम प्राणी। गर्भ धरीहै पुण्य उदयसे, कमलप्रभा थी सेठाणी ॥ लक्ष्मी स्वपना देखा सुन्दरी, प्रीतमसे कहा जोड पाणी। . * हाथीको सुवर्णके ढगलेसे ढकदेवें उसे १ इभका द्रव्य कहते है ऐसा ८ ईभका धन वसुपत नीका था. १ हाथ... Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६ ) सेठ कहे तुम पुत्र जमांगा, काला मुग दिल हरषाणी ॥ .. सवानव मासे बालक जाया, तेजपुंज्य जिम दिनकारे।। लक्ष्मी.॥२॥ कुल देवीका आसण कम्पा, अवासे जो झट वहां आइ । ससकोट विच मेहल बणाया, पटऋतू सुख जिस माइ ॥ उस्में वृद्धी होवे कुंवरजी, लक्ष्मीपत नाम दीया ठाइ। वय आये बहोत्तर कला पुरुषकी, महेल अन्दर देबी भणाइ। .. रुपवंत आठ नारी परणाइ, देवी पूरे इच्छित सारे ॥ लक्ष्मी.॥३॥ आठ महीला संग सुख भोगवे, जातो जाणे नही काल । प्रहरा देवी रक्खा दरवज्जे, भीतर पुरुष न आवे चाल ॥ एक दिन आयु पूर्ण हुवेसे, धन्ना सेठ गये दूजे महाले । दासी जाके कहे कुमरको, तुम पिताजी मरगये हाल ॥ कुंवर कहे मरेपीछे आयंगे, मरणकी समजण नही ज्यारे।लक्ष्मी.॥४॥ श्रीमती स्त्री दासोपे, आँख निकाल दीवी धमकी । दासी भगगइ मेहलके नीचे, अती वो दिल अन्दर चमकी । गुमास्ता मिल किया मृत्यू कारज, कुंवरकी खबर कुछ नही पाइ॥ सेठ विना कोन काम चलावे, फीकर पड़ा है. सबताइ । पुरुष अन्दर जाने नही पावे, कुंवर बाहिर नहीं आतारे लक्ष्मी,॥५॥ सबी गुमास्ते दकानो बन्धकर, चपा नगरीमें हुवे भेले । १ सूर्य. २ परभवमें. - - - - Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७ ) सेठजीके पुत्र के नाहीं. इसकी खबर कोण जाके ले ॥ भीतर पांव रक्खा नहीजाबे, सबी देखके घबराये । कोणिक राजा खबर सुणके, सवारी सज्ज वहांपे आये ॥ सबीजणेसे पूछी हकीकत, कुंवरजीका नहीं पत्तारे ॥ लक्ष्मी.॥ ६॥ बीछयत बिछाके बेठे सबजणे, माहेसे दासी बुलवाइ । . धमकी देके पूछी हकीकत, कुंवर साहेब हैके नाहीं ॥ दासी कहती कुंवर मोजमें, जगकी खबर उनको नाहीं। सबी सुण अश्चर्य हुये दिल्ल, देखनकी लगी अतीं चाही ॥ दासीसे कहे लावो बुलाकर, देर करो मत लम्गारे॥लक्ष्मी ॥७॥ दासी जाके लगी काममें, भूलगइ पीछी नहीं आई। दो तीन दासी इस्तरे होगइ, कुंवरकी खबर कुछ नहीं पाई ।। राजा उसदिन गया जो घरको, दूसरे दिन आये चलाइ । मेहनत करनेमें कसर न रक्खी, कुंबर मिला नही तिण ताइ ।। बहोत दिन हुये गोतेखाते, दिल्लमें रहे सब घबरे॥ लक्ष्मी. ॥८॥ एक दिन एक दासीको मारी, कहते जल्दी ला खबर।। नहींतो तोप से मेल उडावु, धमकी बतलाइ उसको जबर । दासी रोती गइ कुंवरपे, कुंवर देख अश्चर्य पाया । यह क्या गायन नवीन देखा, इसके आँख पाणी आया ।। कुंवराणीने पूछी हकीगत, दासी तब यों उच्चारे। लक्ष्मी.॥९॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११८ ) राजा गुमास्ते भेले होके, याद करते कुंवरजीको । आपके डरसे हम नहीं कहती, मारमारी मुज चेटीको ।। जो कुंवरसाब नही जावेतो, तोपसे मेहलकों उडावे । यह समाचार देनेकों आइ, मेरा जीव बहु दुःख पावे ॥ कुंवर कहे हम मिलेंगे राजासे, देखेंगे वो कैसारे ॥ लक्ष्मी. ॥१०॥ कुंवराणी कहे साथ आयंगे, दासी कहे यों नहीं होवे । अब्बी कुंवर मिल पिछे आयंगे, सबी रस्ता इनका जोवे ॥ लक्ष्मीपतजी चले मिलनको, कुवराणीके आंश्रू आया। सुखे २ मेहल बाहिर पधारे, सबी देख अश्चर्य पाया ॥ सूर्य सरीखा तेज उनोका, गुलाबी पडते उजीयारे॥लक्ष्मी.॥११॥ सबी जणा बहोत आदर देके, उंचे ठिकाने बेठाया। चेहरा तोर खुबसूर्त देखके, कौणिक राय दिल्ल सरमाया । पुरंद्र सरीखा तेजपुंज्य महा, ऐसा पुरुष मेने नहीं देखा। टुक लगाके देखे सामने, दिल्लमें पुन्यका करे लेखा ॥ सबकी द्रष्ट अचूक कुंवरपे, इनने पुण्यकिया पुरारे॥लक्ष्मी.॥१२॥ भूपत कहता अहो कुंवरजी, तुम पिता गये परभव मांहीं । ये सबी गुमास्ते आपके काम बन्धकर आये ह्यांही ॥ दुकानदारी किस्तरे चलाना, इनको हुकम तुम फरमावो ॥ नगर सेठकी पद्दी संभाली, बापके नामको बडावो । Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इत्ना जबाप राजाका मुनके, लक्ष्मीपती कहता तारे।।लक्ष्मी.॥१३॥ बाप साहेब परभवसे आबे, तब वो कहेसो तुम करना। . राजा कहे मरे पीछे न आते, हंसने लगे लोक जे भरना ॥ . कुंवर कहे कहगये पिताजी, जिसी मुजब सब करे जावो । में जानूंगा मेहेलके अन्दर, गरमीसे लगा घबरावो । फूल तरहसे सूर्त कमलाइ, पसीनेका उतरा रेलारे।लक्ष्मी.॥१४॥ कुंवर उठकर गये मेहलमें, सबी कहे यह पुण्यवंता । मरण दुःखकी बात न समजे, पूर्व पुण्य किया वे अंता ।। सेठ जा बेठे सेजके उपर, कपडे किये अंगसे दूरे । पगडी उतार रक्खी एकंतमे, घबरावटे उतरा नूरे ।। शिखा पडीआ मुखके आगे, जिसमे धोला बाल निहारे ल.॥१५॥ टुक लगाके देखे सामने, यह क्या कहांसे आया । अती उंडा विचार करतवो, “ जाती समरण" जब पाया। अहो ! २ मेनें जन्म चिंतामणी, कंकर साठे गमाया ॥ काल दूतका यह हलकारा, मुजसिरपर डाली छाया । इसी तरहसे पडे फिकरमें, वैराग्य भाव दिल विचारे ॥ल.॥१६॥ श्रीमती यों चेहरा देखके, दस्त जोड इसतरह बोले। कायको फिकर करतेहो सेठजी, अपनेपास धन बे तोले ॥ टोटा दुकानका में पुरूंगी, पीयरसे धन में संगलाइ । Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२० ) वसुकोटी रक्खा एक ठिकाणे, लगे जित्ता दंगा चाइ । बेफिकरसे भोग भोगवो, अपने सहाय है देवतारे।ल.॥१७॥ सेठजो कहते मुणो सुन्दरी, यह फीकर नही मेरे मनमें । कोइ वक्त करतांत आयक, ले जावे परभव छिनमें ॥ धन दौलत सब धरी रहेगा, विप्त पडेगा इस तनमें । इतने दःखसे में घबराया, क्या करूंगा कहो उस दिनमें । येही सोच मेरेकों पडा है, दिल्लबीच अती बहुत सारे लक्ष्मी.॥१८॥ कुंवराणी कहे फीकर न करना, इसका उपाव मैने पहले करा । अमुल्य रत्नकी एक मूदडी, द्वार उपर बहु धन धरा ॥ आते पहली यम रायकों, लांच देवेंगे मनचाह। खुशी होयगा अपने उपर, जब मांगेंगे इत्नाइ॥ सेठसाहिब और सब परिवारकों,अमर रखो अहो करतारेल.॥१९॥ लक्ष्मोपती जरा मुल्कके बोले, अहो भोली उण तूं मेरी । कालराय जो लेवे लांच तो, मोत न होवे किण केरी ॥ शक्ती मुजब सब कर निजराणा, यमराणाकों समजावे । जीव सबीतो जीवणा इच्छे, मरणा नहीं कोइ मन चावे ॥ मेरे पिताज्योंगये परभवकों, विसी तरह कालमुजे मारेल. ॥२०॥ खिश्याणीहो बोली सेठाणी, मेरी वात हंसीमें डाली। तो उस जागा चलो सेठजी, जहां नहीं आवे यम काली ॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२१ ) तुम जीते रहो हम मरें नही, दःख किसीको ना होवे । जोडी शाश्वती सदा बनीरहे, कोडी मात्र नहीं धन खोवें। ऐसा सवाल मर्मका सेठ मुण, सेठाणीसे कहे तारे ॥ल. ॥२१॥ कहना तो यह सहज है सुन्दर, करती वक्त मुशकिल भारी । कालका जोरतो जब मिटेगा, छोडेंगे सागर संसारी ॥ इसका उपाव जिणेश्वरका मारग, हम लेवें संजम धारी। शिव पाटणमें जाय बिराजें, जहां नहीं काल करारी । जो तुम्हारकों अम्मर होनातो, आजावो संग हमारे॥ ल. ॥ २२॥ आठ भामा करजोडी बोले, जन्म मरणेसे हम डरती। जो रस्ता आप धारण करोगे, वोही धारण हम करती ॥ ऐसा विचार हुवा सबीका, सासण देवीका अंग फरका । ओग्न मुपती वस्त्र पात्र, नवी जणोंका वहां रख्खा ॥ सेठ स्वयमेव लोचन करके, धारलिया संजम भारेल.॥२३॥ फिर दो चोक भामनी लोचकर, आरज्यांका भेष, पेहर लिया। लक्ष्मी ऋषिजी अपने मुखसे, आठोंको पंच महाव्रत दिया। आठों जणीको साथ लेके, आप आगे पग उठाया। . अपूर्व श्रेणी चडे मुनीवरजी, घनघाती कर्म क्षपाया ॥ अपडवाइ अतीही निर्मल, केवल ज्ञान उपज्या ज्यारे॥ ल.॥२४॥ मासणके अनुरानी देवता, केवल मौच करने आया । Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२२ ) जय २ कार होरहा गगनमें. नृपादी देख अश्चर्य पाया ॥ ह्यां किसीने दान दिया नहीं, ना कोइ किसने केवल लिया। किस कारण सुर मौत्सब करते, ऐसा दिलमें अचंभा भया । इत्नोमें तो मेहल भीतरसे, लक्ष्मी ऋषिजी पधारे॥ल.॥२५॥ देख साधूका भेष सबी लोक, समजे यह केवल धारी। राजादिक सक करी वंदणा, बेठे सिंघासण अणगारी ॥ सबी लोक दिल्ल हर्ष अचंभा, आ बेठे जिनके सामें। सुरनरकी वहाँ भरी परषदा. मुनीवर अवसर जद पामें ॥ संसार सागर तारण कारण उपदेश इणीपरे उच्चारेल.॥२६॥ अहो ! भव्य लोक अपार संसारमें, मुशकिल है नरदेह पायो । दश दृष्टीत दश बोल दुर्लभ, मिल्या इसका लेलो लहावो ॥ तन धन कन जन संतती संपती, अनित्य सबी छेडके जाना। तप संयम ज्ञान ध्यान कियेसे, मिलता अवीछल ठिकाणा ॥ इसी बातका उद्यम करो सब, यह हमारा कहनारे।ल.॥२७॥ सुण उपदेश केवल ज्ञानीका, अष्टोत्तर शत गुमास्तारे । छोड संसारकी ममत्व जालको, लीना जिन संयम भारे । केइने श्रावक व्रत धारण किया, केइने समकित धारलीवी ॥ पीछे सोलेसे सेठाणी. मुमास्ताणीको दिक्षा दिवी। सबी मिलके जिन पदमें विचरे. किया बहुतसा उपकारेल.॥२८॥ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२३ ) अंत अवसर आलोय निन्दके, किया सबनि संथारा। आठों स्त्री अनुत्र विमाने, केवली निरंजन पद धारा ॥ और जणे गये देवलोकमें, साठ भक्त अणसण आया। पूर्ण पुण्यसे लक्ष्मी ऋषिजी. किंचित मात्र नहीं दुःख पाया ॥ ऐसी जाणके निर्वद्य पुन्यमें, दरिल करो मत लगारे॥ल.॥ २९ ।। यह अधीकार कथा ग्रन्थमें सुणाहै जैसा बणाया। जिनाज्ञासे विरूध होयतो, मिच्छा दुकृत दं भाया । उनासो छप्पनके साले, अहमदनगर चौयासा ठया। सर्द पूनमके दिन सम्पूर्ण, पुण्यरास उमंगे गाया ॥ जय २ रहोसदाजैनधर्मकी, अमोलख ऋषियों कहतारे। ल.॥३०॥ श्री कहानजी ऋषिजी महाराजके सम्प्रदायके बालब्रम्हचारी मुनी श्री अमोलख ऋषिजी कृत, पुण्यप्रभावक श्री लक्ष्मी ऋषिजीका चरित्र सम्पूर्ण. N Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खुश खबर. ON बालब्रम्हचारी श्री अमोलख ऋषिजी महाराजका बनाया हुवा " ध्यान कल्पतरू" नामका 400 पृष्टका बडा पुस्तक थोडेही मासमें छपके प्रसिद्ध होने वाला है. इसमें अर्त. रूद्र, धर्म, ओर सुक्ल इन चार ध्यानका वरणव बहुतही विस्तारके साथ किया हैं. यह पुस्तक मुमुक्षुवोंकी इच्छा पूरण करणेवाला बनेगा ऐसी उम्मेद है. इसके साथ चार ध्यानके वृक्ष रंगरंगीत लगाया जायगा. ओर सर्वश्री सिंघको अमुल्य भेट किया जायगा. दुसरी खुश खबर, EST बालब्रम्हचारी श्री अमोलख ऋषिजी महाराजके प्रतिबोधक श्रावक गुलाबचंदजी गणेशमलजीका बनाया हुवा "गणेश बौध" नामे 200 पृष्टका पुस्तकभी थोडेही मासमें श्री सिंघको अमुल्य भेट दी जायगा. इसमें अठरह पाप, मोक्ष मार्ग. बारे भावना ओर धर्म कथा यों चार प्रकरण किये हैं. धर्ममार्गमें प्रवेशकको यह पुस्तक बहुत उपयोगी होगी.