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( ४८ ) धरती फटे तो माये नरूं फाल तो॥ लोक किस्यो मन जाणसी, ये होसी ऐसा कर्म चंडाल तो ॥राय राणीना नेत्रथी, प्रांचं पडे चिंते कब अावे काल तो॥ क० ॥१२० ॥ सेठ समजावे नारीने, तिम २ अधिक होवे विक्राल तो॥ घरमे लेवे खेचने, धको देइ सेठने दीया डाल तो ॥ लोक सहू हांसी करे, हुरर राट्यो देइ कूटे छे ताल तो॥ सेठ शरमी घरमे गयो, बेठो हाथ देइने कपाल तो ॥ क० ॥ ॥१२१॥ नद्रा रीसे बलती थकी, चारीने कहे निकलो घरथी अब तो॥सेठने सुसरा साला मिली, कहे ताणी निकलो क्योंनी सब तो॥सेठ कहे जोवो शाहाजी, ये पुनवंत आया कम दब तो।। सती सतवंत दोइ अछे अन वस्त्रमें नहीं मुंगा नब तो।। क०॥ १२२ ॥ कंकाली नद्रा कहे, हां में जाणू डूं यारो सबब तो ॥ रंडा घालणी घर विषे, वचन