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( ४९ ) न खमाणो रायथी जब तो ॥ उठी चल्या चारी तदा, सेठ गुप्ते थयो लारे तब तो॥ ढोर बांधणका नो रा विषे,कूपडीमें बेठाया तस गब तोक०॥ १२३॥ तिहां ते चारी रह्या, चिंता माहे डुब्या अब थब तो ॥ सेठजी दया लायने. जरण पोषणनी जमावे ढब तो ॥ घरे अाइ घडो लियो, सेठाणी पत्थर मार्यो ऊन तो ॥ थाली अाटो दाल ले चल्या, दी थापकी वीखेरी दी सब तो॥क० ॥१२४॥ तिणरा कपडारी पोटली, लेइ शिघ्र चाल्या ते छब तो ॥ नद्रा पीछे अायने, बलती लकडी लगाइ णन तो ॥ सेठ करे गरमी लगी, न्हाख दीवी मन हुइ अचंब तो ॥ बेठ्या दुकाने प्रायने, चिंता करे ऐसी हुइ नहीं कब तो ॥ क० ॥ १२५ ॥ नीमजी आया दुकानपे, सेठथी मांगे सराजाम तो ॥ दुकानमें थी देवा तणो, मन नही होवे नि