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काला दाम तो || पाछे उत्तर आप्पो नही, तब राजा कहे सेठी ग्राम तो ॥ चडी नोकरी मुजने देवो, जिथी चला टक्यो काम तो ॥ क० ॥ ॥ १२६ ॥ दो रुपया दिया सेठजी, घर विखेरो लीयो सराजाम तो || लेइ याया बाडा विषे, रा णी निपाइ रसोइ ताम तो ॥ इम चारूं इहां रहे, देखा कर्मगतीना काम तो ॥ तीजो अधिकार कर्म तणो, रिख अमोल कह्यो इ ठाम तो ॥६०॥१२७॥ ॥ दुहा !
जे जे दिशा जब प्रगटे, बधे तेहनो जोश ॥ सकर्मी ते अनुभवे, न दो किलरो दोश ॥१॥ कुबेर चाले जे चल्या, ते कृपण न थाय ॥ जे अटूट ध न वावर्यो, दो रुपिये सी थाय ॥ २ ॥
ढाल - सतीने सिरोमण अंजणा || यह देशी ॥ जे सामान लाया हूंता, ते खूट गयो थोडा काले