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री पती हाथथी, बजार माहे दीधा छे चाय तो॥ इणने निकालो घर थकी, जो मुजने घर राखी चाय तो॥ क. ॥ ११७ ॥ सेठ कहे ये ऐसा न ही, कूटो नही दीजे माथे बाल तो ॥ वक्त पड्या बाया इहां, इण तणी कीजे प्रतिपालतो ॥ नद्रा सुणी क्रोधे नरी, श्राख्या तक्षिण कधिी लाल तो ॥ अरडाइ बोलन लगी, फूगाइ मुंडाने दोनो गाल तो ॥ क० ॥ ११८ ॥ हां में जाणी मन तणी, तिणने थे लेसो घरमें घाल तो ॥ चिन्ह देखी में जाणथी, या अवदिशा घर अाइ छिनाल तो॥ तुम पण तेहथी मोहीया, न बोली इत्ता दिन देखी चाल तो ॥ हाक सुणी रस्ता विषे, थट्ट जम्यो लोकको तत्काल तो ॥ ॥क० ॥ ११९ ॥ तर्जनिये दाखे राणी नणी, राणीने अंगे उठे काल तो॥ शरमाइ बोले नही,