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इत्ना जबाप राजाका मुनके, लक्ष्मीपती कहता तारे।।लक्ष्मी.॥१३॥ बाप साहेब परभवसे आबे, तब वो कहेसो तुम करना। . राजा कहे मरे पीछे न आते, हंसने लगे लोक जे भरना ॥ . कुंवर कहे कहगये पिताजी, जिसी मुजब सब करे जावो । में जानूंगा मेहेलके अन्दर, गरमीसे लगा घबरावो । फूल तरहसे सूर्त कमलाइ, पसीनेका उतरा रेलारे।लक्ष्मी.॥१४॥ कुंवर उठकर गये मेहलमें, सबी कहे यह पुण्यवंता । मरण दुःखकी बात न समजे, पूर्व पुण्य किया वे अंता ।। सेठ जा बेठे सेजके उपर, कपडे किये अंगसे दूरे । पगडी उतार रक्खी एकंतमे, घबरावटे उतरा नूरे ।। शिखा पडीआ मुखके आगे, जिसमे धोला बाल निहारे ल.॥१५॥ टुक लगाके देखे सामने, यह क्या कहांसे आया । अती उंडा विचार करतवो, “ जाती समरण" जब पाया। अहो ! २ मेनें जन्म चिंतामणी, कंकर साठे गमाया ॥ काल दूतका यह हलकारा, मुजसिरपर डाली छाया । इसी तरहसे पडे फिकरमें, वैराग्य भाव दिल विचारे ॥ल.॥१६॥ श्रीमती यों चेहरा देखके, दस्त जोड इसतरह बोले। कायको फिकर करतेहो सेठजी, अपनेपास धन बे तोले ॥ टोटा दुकानका में पुरूंगी, पीयरसे धन में संगलाइ ।