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वसुकोटी रक्खा एक ठिकाणे, लगे जित्ता दंगा चाइ । बेफिकरसे भोग भोगवो, अपने सहाय है देवतारे।ल.॥१७॥ सेठजो कहते मुणो सुन्दरी, यह फीकर नही मेरे मनमें । कोइ वक्त करतांत आयक, ले जावे परभव छिनमें ॥ धन दौलत सब धरी रहेगा, विप्त पडेगा इस तनमें । इतने दःखसे में घबराया, क्या करूंगा कहो उस दिनमें । येही सोच मेरेकों पडा है, दिल्लबीच अती बहुत सारे लक्ष्मी.॥१८॥ कुंवराणी कहे फीकर न करना, इसका उपाव मैने पहले करा । अमुल्य रत्नकी एक मूदडी, द्वार उपर बहु धन धरा ॥ आते पहली यम रायकों, लांच देवेंगे मनचाह। खुशी होयगा अपने उपर, जब मांगेंगे इत्नाइ॥ सेठसाहिब और सब परिवारकों,अमर रखो अहो करतारेल.॥१९॥ लक्ष्मोपती जरा मुल्कके बोले, अहो भोली उण तूं मेरी । कालराय जो लेवे लांच तो, मोत न होवे किण केरी ॥ शक्ती मुजब सब कर निजराणा, यमराणाकों समजावे । जीव सबीतो जीवणा इच्छे, मरणा नहीं कोइ मन चावे ॥ मेरे पिताज्योंगये परभवकों, विसी तरह कालमुजे मारेल. ॥२०॥ खिश्याणीहो बोली सेठाणी, मेरी वात हंसीमें डाली। तो उस जागा चलो सेठजी, जहां नहीं आवे यम काली ॥