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(४५) जासी टूट तो॥ क० ॥१११॥ सेठ नेजे उगाइ रायने, जोजन केइ जावे नित्य ऊठ तो॥ मांगता पूरो श्रावे नही, बचन न बोले कोइथी तूट तो॥ मीठा बोल्या कुण देवे, लडता शरमाय तिणथी दे पूठ तो ॥ वीती बात कहे सेठने, न समजे बोलणो किम कूट तो॥ क० ॥ ११२॥ सेठ सुणी क्रोधातुर हूवे, अरे बोलतां न आवे हीया फूट तो॥ गाल्या देवे अलखामणी, बोले नही सेठजी जावे रूठ तो ॥ करजोडी नमे नरपति, नेत्र नीर ला कहे सरण ठूट तो ॥ निनावो मुज कृपा करी, इण परे दंपती दिन जावे खूट तो॥क०॥११३॥ एक दिन नद्रा बेठी गौखमें, सेठजी उना चोकरे माय तो॥ हाथ नर्या कु पुद्गले, राणीने कहे मारा हाथ धोवाय तो ॥ राणी लज्जाथी धातू घटे, पा
१ निवृद्धी.
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