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विहां, अपत कर्या शीतल पायो तोय तो ॥ शु. ॥ २२४ ॥ जयसुन्दरी इम सांगली, पटेलने घरे पेी तदिन तो ॥ बेनने जोइ धट्टी पीसती, पेहरवा छे फाटो वस्त्रनो खन्न तो ॥ तंतू टुकडो मसतकपरे, दुःखथी हुयो छे कृष्ण वदन तो ॥ राणी बेन नही अोलखी, सुशील तबही पहचानी बेन तो ॥ शु०॥ २२५ ॥ घट्टी छोड दूरी हुइ, शरम प्राइ करवा सागी रुदन तो ॥ जयसुन्द्री बेठी पास जा, दुःख नाग ले दे विश्वास बचन तो ॥ उत्तम वस्त्र पेहरावीया, म्याने बेसाइ अाया राजन तो ॥ राजनवन माहे अावीया, ज्युदा मेहलमें चारी गया मिलन तो ॥ शु०॥ २२६॥ बेठा अन्यो अन्य जोवता, नेत्र नीर परनाल पतन तो ॥ राणीजी कहवा लग्या, स्वामी म्हानें छोडी