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गया वन तो ॥ पाछी सार लीधी नही, दया न चाइ अपने जरा मन तो ॥ पुत्र पिताजी नणी कहे, म्हाने दुःख दीयो सेठाणी रन तो ॥शु० ॥ ॥ २२७॥ धायाजी म्हाने वास्ते, दुःख नूख सहीने सुखाव्यो छे तन तो ॥ आपतो म्हाने तनी गया, महाणे पास कछू रह्यो नही धन तो॥ राणीने धीरज दइ, आपणो वित्यो कह्यो मंडन तो ॥ अानंद पाया चारी घणो, ते सुख जाणे केवली नगवन तो॥ शु० ॥ २२८ ॥ भोजन तैयार हुयो तिहां, कांसो मंगाइ जीम्या तिहां तर तो ॥ सनामे विराज्या नूपती, दोइ राजा वीतक बात कर तो ॥ विजयजी पुछे अापने, कित्ता दिन हुया इण नगर तो ॥ नीम कहे तीन वर्ष पहले, इहां रह्यो थो हूं वर्षगर तो॥ शु० ॥ ॥ २२९ ॥ और वीती बात सह कही, बालक