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(४०) गाममें, एक वाणिककी देखी दुकान तो ॥ तिहां जाइ बेठा नूपती, वैपार तिणरे चाल्यो असमान तो ॥ थोडी देररे मायनें, खपी गयो घणो माल ने धान तो ॥ लक्ष्मीपत राजी हुया, जाण्यो ए नर छ पुनवान तो॥ क० ॥९८ ॥ कर्म गतीये घेर्यो थको, उदास दीसे छे मुखको नान तो॥ विदेशे फिरवा निकल्या, इम चिंती नूपने पूछे स्थान तो ॥ किहां रहो कांइ जात छे, प्रदेश नमोछो किण कारणान तो॥राय कहे दत्री अ. छं, कर्मसें नटका पेट नरान तो ॥क०॥९९ ॥ सेठ कहे हम घर रहो, राय कहे हम छां चार प्राण तो ॥ सेठ कहे पाछी कही, में पण ऐसो जोतो ठिकान तो॥नलो हये थे सेजे आया, कारण सुणो मुज कर्मनी कहान तो ॥ नाइ नोजाइ म
१ घणो.