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(३२) राज गादीपे बिराजीयो, दुवाइ फेराइ पोतानी तुरत तो ॥ सजन तेहना राजी हुवा, जय २ कार नगरमें करत तो ॥ न्यायवंत दुःख दिल धरे, अरर काइ कियो अकरत तो॥त्रि०॥७॥ तात समा जेष्ट बन्धूने, निर अपराध काडया घर बार तो । केइकहे नारीनो मोलीयो, केई कहे राजको लोन अपार तो ॥ केइ निंद्या कोइ गुणकरे, दुनिया दुरंगी विचित्र प्रकार तो ॥ हरीसेण सुरसुन्दरी मिली, गर्वी कहे कयो पाड्यो पार तो॥ ॥ त्रि० ॥७९॥शाबासी देवापसमें, दासी पण हर्षी मन मकार तो ॥ जोवो त्रिया चरित्रने, सहजमें अनर्थ करे अधार तो ॥ इम जाणी बचो नारीथी, तो सुख पासो शिव श्रेयकार तो ॥ श्रा गे चरित्र जीमजी तणो, ऋषी अमोलिक करे उचार तो॥ त्रि० ॥८॥