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तो || खुशी होइ निज घर गया, इतरे उगाया छे दिनराजं तो ॥ त्रि० ॥ ७५ ॥ तिसमे उज्जेणी नगर में, हरीसेण राय हुवा जाग्रत तो ॥ नंगो खड्ग लीयो हाथमें, क्रोध नर्यो आयो जीम घरात तो ॥ उंचो नीचो फिर जोइयो, चार में को कोइ द्रष्टी न यत तो ॥ किहां पतो लायो नही. दास्याने पूछयो ते नाही बतात तो ॥ त्रि० ॥ ७६ ॥ एकही उत्तर सहु तणो, 'खबर नही' सुती निद्रामें रात तो ॥ फिर आयो निज मेहेलमें, नट दोडाइने नृप जोवात तो ॥ किहां पतो लाग्यो नही, तबतो हर्ष हिये न समा त तो ॥ सेहजेइ पापो कट्यो, निज तेज प्रताप जाणी पोमात तो ॥ त्रि ० ॥ ७७ ॥ सब सामंत बुलाइया, मोछेब मांडयो जोइ सुमुहुरत तो ॥ १ सूर्य.