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( २४ ) ॥ ५६ ॥ सुरसुन्दरी हरसिणने, कहे कोइ छानो उनो इहां होय तो॥ चेतावे जेठने जायने, सजन सामंत तिणरा कोय तो॥ ते बंदोबस्त करे रातमें, अथवा नागी चाल्या जासी सोय तो ।। अन्य राजाने मिलायने, राज लेसी पछे थे रेसो रोय तो॥ त्रि० ॥ ५७॥ पाछे थे पस्तावसो, इसडो वेम पडे छे मोय तो॥ हरीसेण नंनो बजायने, पांचसे शिपाइ बुलावे तोय तो ॥ नटं ते तक्षिण अविया, पूछे हुकम फरमावो छ सोय तो ॥ किण कारण बोलाइया, इणहजि वक्त करां ते चोर्यंतो ॥ त्रि० ॥ ५८ ॥ हरीसेण कहे राय मेहलने, जल्दी जाइ देवो घेरोय तो ॥ मेहेल बाहिर जो नीकले, तेहना प्राण देवो जट खोय तो॥ शर्म केहनी रखजो मती, नहीतो हड्डी तुम न्हांख १ बुगल. २ शिपाई. ३ प्रेरना-हुकम.