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________________ ( २३ ) हुवे, कोइ करवा समर्थ न उत्पात तो॥ हम छां दत्रीनी जातडी, राज कारण मारा बापने भ्रात तो ॥ तो लांछन नही हम नणी, ऐमी रीत पूर्व चली बात तो ॥ त्रि० ॥५४॥ जसोदा विरतंत सांनली, मनमाहे कांपी अंग थररात तो ॥त. दिण दोडी तिहां थकी, राजा राणीने भाइ जगात तो ॥ नृप पूछे केम जगावियो, ते हरीसेणनी बात चेतात तो।। शिघ्र हुशार होवो हवे, करो उपाय जिम बचे चउगात तो ॥ त्रि० ॥५५॥ बंधव बदल्यो में खरी कहूं, चारांने मारणो दिलमाहे चहात तो ॥ बुलावो आप मंत्री नणी, जो अाप करे सहाय तात तो ॥ नूप कहे म्हारो को नहीं, स्नेही ते बदल्यो हिवणात तो ॥ नागवानी इच्छा करी, रथ मंगाइने माल नरात तो ॥ त्रि०॥ १ चारांका सरीर. २ अब्बी.
SR No.006294
Book TitleBhimsen Harisen Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year1909
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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