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हतो खरी, नही देख्या थारां सुख में धाप तो || त्रि० ॥ ४८॥ हरसेिण राणीने लेयने, प्राय बेठ्या बार गोखडा माय तो ॥ सुरसुन्दरी पाछी चली, हाथ पकड तस पास बेठाय तो।। राज पाठ में नोगवू, नीमसेणने पैठाणे को नाय तो ॥ बिख्यात छ हूं विश्वंमें, स्ववस छु में करूं जे चाय तो ॥ त्रि० ॥ ४९ ॥ और राजा कहो किम हुवे, तुं पटराणी प्यारी सवाय तो ॥ उणारथ नहीं किजिये, मरबाकी न निकालणी वाय तो ॥ ते कहे राजा यों नहीं बजे, व्यर्थी क्यों थे रह्या फुलाय तो ॥ नोकर छो जेठजी तणा, अहोनिश थारां हम्मालीमें जाय तो ॥ त्रि० ॥ ५० ॥ काण राखो बडा नाइकी, वां पण थाने दिया पोमाय तो॥ देवा जिसा सुख भोगवे, सारी फिकर थारे लार १ जगतमें.