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(७४ ) सोमण लोवो उनो करी, एक बिन्दू रस तिगमें डालंत तो॥ सर्व सुवर्ण उत्तम हवे, नीमजी सुणी दिल अती हर्षत तो॥ाया दितीप्रतिष्ट कने, सिद्ध पुरुषनो मन बदलंत तो॥ यो धन इणने कि म देउं, इम चिंतवी नूपतसे बोलंत तो ॥ जो० ॥ ॥१८८ ॥ नाइ तुज ग्राम प्रावीया, माल लेइ तु जतूं घर जाय तो॥ फिर मिलाप कब होयगा, गांममें जाइ पक्कान ले अाय तो॥ खावां नेलां आपां बेसने, रुप्यो दियो जल्दी तुम लाय तो ॥ राजा नद्रिक नावमें, तुम्बा तिहां रख चाल्यो उमाय तो ॥ जो० ॥१८९॥ शेहर माहे राजा गया, सिद्ध पीछेसें तुंबा ते उठाय तो॥ उजड रस्ते कट गयो, लोन थकी नर कृतघ्न थाय तो॥राय मीठाइ लेइ फिर्या, सिद्ध बेठोथो आयो तिण ठाय तो॥ तुम्बा जोगी दीठा नहीं, नूपने धस्को पडयो मन