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माय तो॥ जो० ॥१९०॥ चारू कानी जोइया, पता न लाग्यो अतीही पस्ताय तो ॥ धिक्क २ मुज जीतब नणी, में सुख नणी किया नाना उपाय तो ॥ ते दुःखदाता सहू नया, मेहनत निर्फल हो मिटे औडाय तो ॥ कर्म निकाचित मुज बंध्या, अंत्राय दी किना बीछोवाय तो॥ जो०॥ १९१ ॥ पाणी सोस्या सरोवर तणा, लगावी में कंतारमें लाय तो॥ मन तपाया अन्य तणा, थापण अोलवी कूटा दावा कर्याय तो॥ मार्ग लूटया धाडा पा. डीया, इत्यादि वाया तें फल खाय तो॥ दोष नहीं अन्य कोइनो, किधा नोगवू क्यों घोटाय तो॥ ॥जो०॥ १९२ ॥ व्यर्था जीतब माहेरो, अकृत्पु. नीयों में निराधार तो॥ पापीथी पापी अती, मुज सम को नही दुःखी संसार तो॥ सहाय देणे वाला मिले, ते पण बदले कर्मानुसार तो ॥ तस प्रणाम