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नही, सुख दुःख तो नुक्त्याही छुटंत तो ॥ संपत सहु छ कारमी, पुन्यथी मिले पापथी वीछडंत तो॥ मूर्ख जन चिंता करे, मरनेसे कुछ दुःख न ढलंत तो॥ जो०॥ १८५॥ अब मेरे संग चाली ये, धन्न दिलावू तुजने अखुटंत तो ॥ फिर दुःख कुछ रहगा नही, इम सुण नृपती संग चलंत तो॥ तुम्बा बडा चार संग लिया, दोय तुम्बा माहे तेल नरंत तो ॥ मोठा पहाड पास श्रावीया, मशा ल कर वन्हीथी प्रजालंत तो ॥ जो०॥ १८६ ॥ गिरी किन्नरी में पेसीया, अागे चाल्या अाइ जडी जल झरंत तो ॥ दो तुम्बा तेहथी नर्या, मंत्रादिक करी साथे Jहत तो ॥ रस लेइ पाछा फीर्या, गिरी बारे सुखे २ श्रावंत तो॥ गुण तिण रस सिद्धी तणा, सिद्ध पुरुष नूपने बतावंत तो ॥जो०॥१८७॥
अग्नि. २ गुफा ३ लिया.