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रण ये कुल छे मरनार तो ॥ जो० ॥ १६६ ॥ करुणा जाव मन लायने, दोडी या तिए कने तत्काल तो ॥ कटावी कहाढी करे थकी, ते फांसीनो किनो निकाल तो ॥ मधुर बचने संतोषी - यो, विश्वासीने मिलाइ छे तोल तो ॥ अति दुल्लन नर देह मिली, कि कारण एथी करे टाल तो ॥ जो० ॥ १६७ ॥ नृपती वीति वारता, संप मा किया योग्य हाल तो || सेठ कहे इम मत करो, सहास राखो धैर्यनी धर ढाल तो ॥ सहास श्रीरामजी, सीता पाइ करी अँरीका कू· हाल तो ॥ नल दमयंतीने मिल्या, गयो थको पाछो मिल्यो थाल तो ॥ जो० ॥ १६८ ॥ हरिश्चंद्र बेंच्या पुत्र नारने, सहासथी टल्यो दुःख विक्राल तो || पांडव चाकर रह्या परघरे, तेरे बर्षे
१ हाथसे. २ हाथ ३ वैरीका.