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________________ ( ६६ ) मिल्यो पाछो माल तो॥ ब्रह्मदत्त वन परघर वस्या, माताए किधा कर्म चंडाल तो ॥ दुःख मिट्या सु. खीया थया, इत्यादी बडा २ नूपाल तो॥ जो०॥ ॥ १६९ ॥ दुःख सुख ढलती छांयडी, प्रायने जाय येही एनी चाल तो ॥ जैसा कर्म जीव बांधीया, तैसाही नोगवे छे निश्चील तो ॥ जुगत्या बिन छु. टको नही, इणनवे अथवा नव पराल तो ॥ तेहनो फिकर नहीं किजीये, समताथी शिघ्र टूटे कर्म जाल तो ॥ जो० ॥ १७० ॥ महारे साथ चालीये, धन्नापन्नाने देश हम जात तो॥ तिहां जवेरनी खाणी छे, घणा किंमतको निकले जवारात तो ॥ में धन देवस्यूं तुम नणी, अच्छी अ. वैनी देखीने खोदात तो ॥नशीब प्रमाणे निकलसी, इम सुणी नीमजी हरषात तो॥जो०॥१७१॥ १ निश्चय. २ परभवं. ३ पृथ्वी. -
SR No.006294
Book TitleBhimsen Harisen Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal
Publication Year1909
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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