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गावता, लाज न आई मुजने लगार तो॥ मुज मार्याथी आपणी, सात पीडीनो होसी उद्धार तो॥ इम अनेक तरह विलविले, अश्रूसे चरण करे पखार तो ।। नीमजी चिंते मन विषे, नहीं दोसे इणरो दोष लगार तो॥ ए० ॥२५४॥ अशुनोदय म्हारे नयो, तेहथी दुःखको सह्यो प्रहार तो ॥ शुनोदय सुधर्या सहू, इम चिंतवी कर्यो तस सत्कार तो॥ किंचित दोष न थांयरो, मुज पुन्योदय मिल्योपरखार तो ॥ इत्यादि मधुर वचनथी, हरीसेणनो कलेजो दियो ठार तो ॥ पु० ॥२५५॥ फिर नोजाइ चरणे पडयो, माताजी म्हारो करोसंहारतो॥ नीच कर्म में प्राचर्या, राणी कर्म दोष कायो उचार तो ॥ देवरने संतोषीयो, नतीजाने जाइ कयो नमस्कार तो ॥ प्रातम निंद्या घषी करी, तिल पण संतोष दीयो अपार तो ॥ पु० ॥